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चुनावी चौपाल: जनता बोली, ईको सेंसिटिव जोन पर नेताओं ने रखा अंधेरे में

दैनिक जागरण ने उत्तरकाशी जिले के गर्मपानी में चुनावी चौपाल का आयोजन किया। जिसमें ईको सेंसिटिव जोन को लेकर लोगों का दर्द छलक उठा।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 02 Apr 2019 06:05 PM (IST)Updated: Tue, 02 Apr 2019 08:33 PM (IST)
चुनावी चौपाल: जनता बोली, ईको सेंसिटिव जोन पर नेताओं ने रखा अंधेरे में
चुनावी चौपाल: जनता बोली, ईको सेंसिटिव जोन पर नेताओं ने रखा अंधेरे में

उत्तरकाशी, जेएनएन। टिहरी संसदीय क्षेत्र के उत्तरकाशी जिले के 88 गांवों में साल 2012 से ईको सेंसिटिव जोन एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। पंचायत से लेकर लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे पर जमकर सियासत हुई। सभी दलों ने इसको लेकर खूब राजनीतिक रोटियां सेंकी और वोट बटोरे। ईको सेंसिटिव जोन जनमानस के लिए कहां सेंसटिव है इस पर यहां के नेताओं ने जनता को अंधेरे में रखा है। ईको सेंसिटिव जोन के मूल बिंदुओं के बारे में तक इनको जानकारी नहीं दी गई है और जनसुनवाई में आपत्तियां दर्ज कराने का समय नहीं दिया। लिहाजा आज बिना संशोधन के लिए इको सेंसटिव जोन लागू हो चुका है। इसके प्रभाव भी सामने आने लगे हैं।  

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उत्तरकाशी के ईको सेंसिटिव क्षेत्र गर्मपानी में दैनिक जागरण की ओर से चौपाल का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोगों और स्थानीय निवासियों ने इसे नेताओं और अब तक की सरकारों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने इस बात की पुरजोर वकालत की है कि ईको सेंसिटिव जोन की फिर से जनसुनवाई होनी चाहिए। 

पलायन का कारण बन सकता है सेंसिटिव जोन 

गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित व मुखवा गांव निवासी राजेश सेमवाल ने कहा कि इसके समाधान के लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए। उन्होंने बताया कि ईको सेंसिटिव जोन को रद्द करने की मांग को लेकर वो केंद्र सरकार के पास गए थे, लेकिन अधिकारियों ने साफ इनकार कर दिया कि लागू हो चुका ईको सेंसिटिव जोन रद्द नहीं हो सकता है। इसके कारण गंगोत्री में घाटों तक का सही निर्माण नहीं हो पा रहा है। इसी तरह से गांवों में भी विकास कार्य नहीं हो रहे हैं। यहां ईको सेंसिटिव जोन पलायन का कारण बन सकता है। जोशियाड़ा निवासी अनुराग रांगड़ कहते हैं कि ईको सेंसिटिव जोन का सबसे ज्यादा असर यहां के रोजगार पर पड़ा है। पलायन रोकने वाली जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण भी अधर में है। 

जनता को नहीं दी गई जानकारी 

गणेशपुर की प्रधान व महिला अधिकारों को लेकर काम कर रही पुष्पा चौहान कहती हैं कि ईको सेंसिटिव जोन के गजट नोटफिकेशन में आपत्तियां दर्ज कराने का पूरा समय दिया गया था। इस बात की जानकारी सांसद, विधायकों को थी, लेकिन नेताओं ने जनता को आपत्ति दर्ज कराने के लिए जानकारी तक नहीं दी।

ग्रामीण कहते हैं काला कानून है ये  

पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुमन प्रदीप सिंह ने कहा कि आज भी इस क्षेत्र के लोगों को कुछ भी पता नहीं है, किसी ग्रामीण से पूछो तो सिर्फ कहते हैं काला कानून है। इसमें गलत क्या है और सही क्या है किसी को पता नहीं है। इसका विरोध करने से पहले इसको समझना जरूरी है। उनका कहना है कि ईको सेंसिटिव जोन की फिर से जनसुनवाई होनी चाहिए, जिसमें जल, जंगल, जमीन के हक-हकूक की रक्षा हो। ईको सेंसिटिव कमेटी में स्थानीय लोगों का सीधा नियंत्रण होना चाहिए। जिसमें प्रकृति की रक्षा के एवज में यहां के लोगों रसोई गैस, बिजली, पानी पर पूरी तरह से छूट मिलनी चाहिए। कुल मिलाकर ईको सेंसिटिव जोन की शर्ते दिल्ली में बंद कमरे में नहीं गांव में बैठकर तैयार हो। 

ईको सेंसिटिव को समझना बेहद जरूरी 

सेवानिवृत तहसीलदार बुद्धि सिंह कुमांई और श्रीभुवनेश्वरी महिला आश्रम के पीएम अजय पंवार कहते हैं कि ईको सेंसिटिव जोन में क्या-क्या मानक हैं। क्यों लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इसको समझना बेहद जरूरी था। विरोध के बजाय फिर से जन सुनवाई की जानी बेहद जरूरी थी। सरकारें अगर चाहे तो ये सब अब भी हो सकता है। बस नेताओं की जनता के प्रति मंशा साफ होनी चाहिए।

इस तरह की कठोर शर्तों में संशोधन होना जरूरी 

ट्रैकिंग व्यापारी विष्णु सेमवाल कहते हैं कि ईको सेंसिटिव जोन की शर्तों से यहां पर्यटन रोजगार पर ब्रेक लग रहा है। इस तरह की कठोर शर्तों में संशोधन होना जरूरी है। स्थानीय लोगों के लिए यहां कई तरह के बंदिशें है और दिल्ली-मुंबई की एजेंसियां यहां गंदगी फैलाकर जा रही हैं। उन पर कोई रोक नहीं है। इसके लिए यहां केवल स्थानीय लोगों को पर्यटन रोजगार संचालन की अनुमति मिलनी चाहिए। 

परियोजनाओं और ऑलवेदार पर प्रभाव 

उत्तरकाशी में अधूरी पड़ी 600 मेगावाट की बहुप्रतिक्षित लोहारीनाग पाला, 480 मेगावाट की पाला मनेरी परियोजना के निर्माण की अनुमति नहीं मिल पा रही है। इसके अलावा दिसंबर 2012 में ईको सेंसटिव जोन लागू होने के बाद 14 जल विद्युत परियोजना के निर्माण की कार्यवाही भी ठंडे बस्ते में चली गई है। इसके अलावा चुंगी बड़ेथी से लेकर गंगोत्री तक 110 किलोमीटर लंबे गंगोत्री हाईवे के ऑलवेदर निर्माण की कवायद पर ईको सेंसिटिव जोन का ब्रेक लगा है।

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