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बिहार की इस सीट पर अजेय रही है भाजपा, यहां जातीय समीकरण पर भारी राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे, जानिए इस बार क्या है माहौल

Bihar Lok Sabha Election 2024 नए परिसीमन के बाद पटना साहिब संसदीय क्षेत्र जब से अस्तित्व में आया सीट भाजपा के पास ही रही। 2009 और 2014 में भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव जीते। 2019 में पार्टी ने रविशंकर प्रसाद को मैदान में उतारा और वह भी जीते। जानिए सीट पर इस बार क्या है समीकरण और स्थानीय लोगों के मुद्दे।

By anil kumar Edited By: Sachin Pandey Tue, 28 May 2024 09:32 AM (IST)
बिहार की इस सीट पर अजेय रही है भाजपा, यहां जातीय समीकरण पर भारी राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे, जानिए इस बार क्या है माहौल
Lok Sabha Election 2024: पटना साहिब संसदीय क्षेत्र जब से अस्तित्व में आया, सीट भाजपा के पास ही रही।

अनिल कुमार, पटना। पटना साहिब, सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह महाराज का जन्मस्थल। ऐतिहासिक भूमि है। आस्था और श्रद्धा का केंद्र, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। नए परिसीमन के बाद पटना साहिब संसदीय क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में आ चुका है। 2009 में लोकसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा चुनाव जीते। 2014 का चुनाव भी जीता।

2019 में पार्टी ने रविशंकर प्रसाद को मैदान में उतारा और वह भी जीते। यानी, यह क्षेत्र जब से अस्तित्व में आया, सीट भाजपा के पास ही रही। यह यहां का राजनीतिक परिदृश्य है। शत्रुघ्न सिन्हा बालीवुड स्टार थे, पर भाजपा में रहते हुए राजनेता के रूप में कहीं अधिक चर्चित हुए। पार्टी छोड़ी, कांग्रेस से चुनाव लड़ा और 2019 में रविशंकर प्रसाद से पराजित हो गए।

अभिनेताओं की लड़ाई

इससे पहले के दो चुनावों में भाजपा प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा के सामने भोजपुरी अभिनेता कुणाल सिंह और टीवी स्टार शेखर सुमन भी उतारे गए, पर पार नहीं पा सके। भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले चुनाव में 61.85 प्रतिशत था। पिछले चुनावों की अपेक्षा बढ़ गया। इस बार के चुनाव में एनडीए से भाजपा प्रत्याशी पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ही मैदान में हैं।

आईएनडीआईए से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अंशुल अविजित हैं। रविशंकर पटना में छात्र राजनीति से ही सक्रिय रहे। यहीं पढ़े और वकालत करते हुए राजनीति की राह पकड़ी। चारा घोटाला में लालू प्रसाद के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में बहस भी की। रामजन्म भूमि मामले में भी पक्ष रखा। राज्यसभा के सदस्य रहे और जनता ने लोकसभा भी भेजा। अंशुल पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के पुत्र हैं। ये भी उच्च शिक्षित हैं, विदेश से पढ़ाई की है। मुख्य मुकाबले में यही दोनों हैं।

अन्य सीटों से अलग तस्वीर

इस संसदीय सीट की बात करें तो बिहार के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा परिदृश्य थोड़ा बदला हुआ है। यहां भी जातीय समीकरण से इन्कार नहीं किया जा सकता, पर मुद्दे भी हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर वोटिंग ट्रेंड रहा है। राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे प्रभावी हैं, भाजपा ने इसे केंद्र में रखा है। दूसरी ओर कांग्रेस संविधान खतरे में जैसे मुद्दों के साथ पैठ बनाने के प्रयास में है।

इस क्षेत्र में मुद्दों की बात करें तो क्षेत्रीय और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हुए विकास कार्य गिनाए जा रहे हैं, स्थानीय समस्याएं भी हैं और लोग इस पर बात भी कर रहे। ग्रामीण क्षेत्र भी शहरीकरण की ओर हैं। यहां की राजनीति पर भी इसका प्रभाव है। हालांकि, शहरी विकास को बहुत नियोजित नहीं कहा जा सकता है। इतना जरूर है कि खेतों में अपार्टमेंट बन रहे हैं और बाद में नाली-सड़क की चिंता। इसलिए, लोगों की अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं।

बदला परिवेश

कई योजनाओं ने क्षेत्र के आर्थिक परिवेश को भी बदला है। गंगा पर महात्मा गांधी सेतु के समानांतर पुल का हो रहा निर्माण इसमें महत्वपूर्ण है। गंगा पाथ वे हो या गांधी सेतु का कायाकल्प। अनिसाबाद से दीदारगंज फोरलेन के ऊपर एलिवेटेड रोड भी प्रस्तावित है। यहां के आर्थिक परिवेश में बदलाव की बात करें तो पटना-बख्तियारपुर फोर लेन बनने से क्षेत्र गोदाम हब के रूप में विकसित हो रहा है। इससे देश के दूसरे हिस्से से भी संपर्क तेजी से बढ़ा है।

आम जन की अपेक्षाएं

स्थानीय पप्पू गुप्ता कहते हैं कि इन सबके बीच, छात्राओं के लिए कॉलेज, पूर्वी भारत के बड़े व्यावसायिक केंद्र के रूप में मारूफगंज मंडी में सुविधाएं आम जन की अपेक्षाओं में शुमार हैं। बलराम चौधरी को अस्पताल की चिंता है तो मो. जावेद को यहां केंद्रीय विद्यालय नहीं होने का मलाल है।

अमित कानोडिया कहते हैं कि मेट्रो का विस्तारीकरण श्री हरिमंदिर तख्त पटना साहिब तक हो रहा है, यह बड़ी बात है। राजेश चौधरी और ललित अग्रवाल कहते हैं कि हर गली-सड़क पक्की की गई हैं। विकास के सवाल पर लोग कार्यों को गिना रहे तो समस्याओं का निदान नहीं होने की भी बात भी कर रहे हैं। औद्योगिक विकास की इच्छा प्रमुखता में है।

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15 वर्षों से भाजपा के पास है सीट

राजनीति भले ही कुनबाई समीकरण में ठिकाना ढूंढ़ती हो, पर यहां इन सब पर मुद्दे ही भारी हैं। 1952 में पहला चुनाव हुआ तो पाटलिपुत्र लोकसभा हुआ करती थी। फिर पटना और 2009 में दो भागों में विभक्त होकर पटना साहिब और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र बने। पहले आम चुनाव में कांग्रेस का झंडा लहराया। आगे भी कांग्रेस की सीट बरकरार रही।

सीपीआई ने भी 1967 से लगातार दो बार जीत दर्ज की। कांग्रेस के गढ़ में कम्युनिस्ट की भी धमक रही। 1989 में पहली बार भाजपा का जीत के रूप में प्रवेश हुआ। राजनीति ने यहां से करवट ली। जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को भी पटना ने सिर-आंखों पर बिठाया, पर एनडीए के गठन के बाद राजनीति तेजी से बदलती जा रही थी। जब 2009 में परिसीमन के बाद नया संसदीय क्षेत्र बना तो पटना साहिब में पिछले 15 वर्षों से मतदाताओं ने भाजपा को ही प्रतिनिधित्व दिया।

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पिछले तीन चुनाव का परिणाम

2009

  • शत्रुघ्न सिन्हा (भाजपा) : 316549
  • विजय कुमार (राजद) : 149779
  • शेखर सुमन (कांग्रेस) : 61308

2014

  • शत्रुघ्न सिन्हा (भाजपा) : 485905
  • कुणाल सिंह (कांग्रेस) : 220100

2019

  • रविशंकर प्रसाद (भाजपा) : 607506
  • शत्रुघ्न सिन्हा (कांग्रेस) : 322849

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