बिहार चुनाव में विधायकों के टिकट कटेंगे? NDA और महागठबंधन में बढ़ी सियासी सरगर्मी की Inside Story
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर महागठबंधन और एनडीए में कई विधायकों का टिकट कट सकता है। राजद लगभग एक दर्जन विधायकों को टिकट नहीं देगी जबकि भाजपा और जदयू में भी कुछ विधायकों पर संशय है। निष्क्रियता और पाला बदलने वाले विधायकों पर कार्रवाई की जा सकती है।

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। क्षेत्र में सक्रियता और संगठन की कसौटी पर खरा नहीं उतरने वाले अपने एक तिहाई विधायकों को राजद इस बार बेटिकट करने का मन बना चुका था। उन्हें चेतावनी भी दी जा चुकी थी, लेकिन बदली परिस्थिति में उनमें से अधिसंख्य आश्वस्त होने लगे हैं। फिर भी दर्जन भर विधायकों का पत्ता कट सकता है। नौ तो पहले ही किनारा कर चुके हैं।
कमोबेश यही स्थिति भाजपा की भी है। इधर-उधर करने वालों के साथ कुछ उम्रदराज विधायकों से वह मुक्ति पाने वाली थी। हालांकि, 75 की उम्र में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बने रहने से उन्हें अब साहस मिल रहा। इसके बावजूद उन विधायकों को टिकट मिलने से रहा, जिनसे नेतृत्व का विश्वास उठ चुका है।
लोकसभा चुनाव में राजद उन 21 विधानसभा क्षेत्रों में भी एनडीए से पिछड़ गया था, जहां 2020 में उसे जीत मिली थी। उनमें पांच तो प्रत्याशी ही थे।
अवध बिहारी चौधरी, ललित यादव, आलोक कुमार मेहता, कुमार सर्वजीत और चंद्रहास चौपाल। चुनाव परिणाम के बाद 20 जून को समीक्षा बैठक में विधायकों को प्रदर्शन में सुधार के लिए दो माह की मोहलत दी गई थी।
10 सितंबर को कार्यकर्ता संवाद यात्रा पर निकलते समय तेजस्वी यादव ने कहा था कि वे फीडबैक के आधार पर कड़े निर्णय लेंगे। बाद में हुए सर्वे में ढाई दर्जन विधायक निष्क्रिय पाए गए।
उनको दोबारा चेतावनी माह भर पहले दी गई थी। उनमें से कई विधायकों ने क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाई और राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में दम-खम दिखाकर नेतृत्व को प्रसन्न कर दिया।
दूसरी बात यह कि उन क्षेत्रों में कई दावेदारों केे होने से बगावत की आशंका भी है। ऐसे में निष्क्रिय विधायकों को नवरात्र तक की एक मोहलत और मिली है। इस बीच पैमाने पर खरे नहीं उतरे तो राजद दांव लगाने से रहा।
महागठबंधन में कांग्रेस और वाम दलों को अपने सभी सिटिंग विधायकों पर भरोसा है। वामदलों को अगर पिछली बार से अधिक सीटें मिलीं तो उन्हें कुछ और योग्य प्रत्याशियों की आवश्यकता होगी।
पुराने चेहरे धुरंधर और आजमाए हुए हैं, लिहाजा वे फिर मैदान में जाएंगे। कांग्रेस के दो विधायक सत्ता के करवट बदलने के समय ही किनारा कर गए थे।
बचे 17 में से दो-तीन के विधानसभा क्षेत्रों को लेकर खींचतान है। यह खींचतान कांग्रेस मेंं प्रत्याशियों से अधिक सहयोगी दलों के बीच सीटों की अदला-बदली को लेकर है।
कांग्रेस अपना रुख कड़ा किए हुए है। ऐसे में सिटिंग सीटोंं पर वह मोल-तोल करने से रही। वीआइपी के टिकट पर विजयी रहे चार विधायकों में से मुसाफिर पासवान की मृत्यु ही हो गई थी।
बचे तीन बहुत पहले भाजपा के हो चुके हैं, लिहाजा मुकेश सहनी के पास काटने-छांटने के लिए कुछ बचा नहीं। एआइएमआइएम के पांच में से एक अख्तरूल ईमान को छोड़ चार विधायक राजद का झंडा उठा चुके हैं। उनकी सीटों पर राजद में बड़ा उठापटक है।
एनडीए में भाजपा के सात-आठ विधायकों की छुट्टी होनी है। कुछ संदेह में और कुछ शिथिलता के आधार पर नपेंगे। जदयू की कसौटी पर भी उसके अपने पांच-छह विधायक खरे नहीं।
कुछेक की सीटों पर स्वजनों या पसंदीदा चेहरे का ध्यान रखा जा सकता है। लोजपा अपनी खीझ मटिहानी में राजकुमार सिंह पर उतारेगी, जो चुनाव जीतते ही जदयू के हो गए थे।
उपेंद्र कुशवाहा अपने राष्ट्रीय लोक मोर्चा के इकलौते जन-प्रतिनिधि ठहरे और जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा में स्वजनोंं के बाद पारिवारिक मित्र ही बचते हैं। जायज बात है कि दोनों को इस पचड़े में पड़ना ही नहीं।
इस बार विश्वास खो चुके
हसनपुर के विधायक तेजप्रताप यादव को राजद बाहर का रास्ता दिखा चुका है। प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा कर नवादा की विभा देवी और रजौली के प्रकाश वीर एनडीए से प्रेम सार्वजनिक कर चुके हैं।
शिवहर से चेतन आनंद, मोकामा से नीलम देवी, मोहनिया से संगीता कुमारी, भभुआ से भरत बिंद और सूर्यगढ़ा से प्रह्लाद यादव 2024 में विश्वासमत के दौरान ही पाला बदल लिए थे।
तब राजद के इन विधायकों के साथ कांग्रेस के दो विधायकों (बिक्रम के विधायक सिद्धार्थ सौरव और चेनारी से मुरारी गौतम) की भी निष्ठा बदल गई थी। मन तो एनडीए के भीतर भी डोला था।
रामनगर की भागीरथी देवी, नरकटियागंज की रश्मि वर्मा और अलीनगर के मिश्रीलाल यादव को भाजपा पहचान चुकी है। जदयू छोड़ बीमा भारती अपनी विधायकी तक नहीं बचा पाईं।
पिछली बार हुए थे बेटिकट
2020 में राजद ने सर्वे रिपोर्ट में नकारात्मक छवि वाले 18 विधायकों को टिकट से वंचित किया था। चार विधायकों के स्वजनों को टिकट दिया था, जबकि सात पहले ही पार्टी छोड़ गए थे।
जदयू ने दो मंत्रियों (मदन सहनी और कृष्णदेव प्रसाद वर्मा) का क्षेत्र बदला और 12 विधायकों को बेटिकट किया था। भाजपा ने अपने आठ विधायकों की छुट्टी की थी।
उनमें से दो को इसलिए सिंबल नहीं मिला, क्योंकि अदला-बदली में उनकी सीटें (सुगौली और झाझा) सहयोगी दलों के हिस्से में चली गई थीं।
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