Bihar Assembly Election 2025: बोधगया विधानसभा की मतदाता हर दल को आजमाया, क्या 2025 में बदलेगा समीकरण?
बोधगया विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण बदलते रहे हैं। यहाँ जनता ने अलग-अलग विचारधाराओं को आजमाया है। अनुसूचित जाति की आबादी यहाँ निर्णायक भूमिका निभाती है। 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए को मिली बढ़त ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। देखना होगा कि क्या राजद अपनी जीत बरकरार रख पाती है या नहीं।

संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। राजनीति में बोधगया विधानसभा का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही रोचक भी है। 1957 में स्थापित यह सीट अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए आरक्षित है और गया लोकसभा क्षेत्र में से एक है।
बोधगया की सात, टनकुप्पा की 10 और फतेहपुर प्रखंड की 18 पंचायत एवं एक नगर पंचायत मिलाकर विधानसभा क्षेत्र बनाया गया है।
यहां की राजनीति हमेशा उतार-चढ़ाव भरी रही है, क्योंकि जनता ने कभी किसी एक दल पर लगातार भरोसा नहीं जताया।
वैचारिक विविधता की मिसाल
बोधगया विधानसभा ने बीते 18 चुनावों में कभी वामपंथ को चुना तो कभी दक्षिणपंथ को, तो कभी मध्यमार्गी और समाजवादी दलों पर भरोसा जताया।
इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सबसे ज्यादा पांच बार विजयी रही है, जिनमें 2015 और 2020 के चुनाव शामिल हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने तीन बार जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस और भाजपा ने दो-दो बार। इसके अलावा भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, जनता पार्टी, लोक दल, लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और निर्दलीय उम्मीदवार भी एक एक बार जीत चुके हैं।
यह इतिहास बताता है कि बोधगया के मतदाता किसी एक विचारधारा से बंधे नहीं हैं, बल्कि समय और परिस्थिति के आधार पर फैसला करते हैं। यही कारण है कि यहां का चुनावी समीकरण हर बार अलग कहानी कहता है।
मतदाता समीकरण
बोधगया की राजनीति में जातीय और सामाजिक संरचना अहम भूमिका निभाती है। यहां अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 35.72% है, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय करने में निर्णायक होती है।
मुस्लिम मतदाता करीब 7.03% हैं, जबकि शेष वोटर अन्य पिछड़ा वर्ग और सवर्ण समुदायों में बंटे हुए हैं। विधानसभा का 92.03% वोटर गांवों से आता है और मात्र 7.97% शहरी मतदाता हैं।
यही वजह है कि चुनावी मुद्दे भी गांवों की बुनियादी सुविधाओं पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के इर्द-गिर्द घूमता हैं।
2025 के विधानसभा चुनाव में बोधगया के मतदाता विकास के अधूरे वादों और बुनियादी सुविधाओं की कमी को सबसे बड़ा मुद्दा बना सकता हैं।
वर्तमान विधायक कुमार सर्वजीत लगातार दो बार (2015 और 2020) राजद पार्टी की टिकट से विजयी हुए। इससे पहले वे लोजपा पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं।
2024 के लोकसभा चुनावों में बोधगया खंड से एनडीए को बढ़त मिली, जिसने 2025 में दिलचस्प मुकाबले के संकेत दिए हैं। बोधगया विधानसभा सिर्फ एक राजनीतिक सीट नहीं, बल्कि बिहार की सियासत का आईना है।
बोधगया, टनकुप्पा और फतेहपुर प्रखंडों में फैला यह क्षेत्र हर चुनाव में नई दिशा और नया संदेश देता है। 2025 में जब चुनावी बिगुल बजेगा, तब यहां मुकाबला और ज्यादा दिलचस्प होगा।
महागठबंधन की राजद अपनी जीत की हैट्रिक बचाने की कोशिश करेगी, वहीं एनडीए गठबंधन इस सीट को अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत झोंकेगा। दलित और ग्रामीण मतदाताओं के मुद्दे तय करेंगे कि बोधगया विधानसभा से इस बार कौन विजयी होगा।
पिछले चुनावों के नतीजे (1977-2020 तक)
बोधगया के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो हर बार जनता ने अलग अलग दलों को आजमाया है।
1977 | जनता पार्टी (जेएनपी) से रामकृष्ण राम |
1980 | कांग्रेस (आईएनसी) से महावीर पासवान |
1985 | कांग्रेस (आईएनसी) से महावीर पासवान |
1990 | जनता पार्टी (जेपी) से सिधेश्वर पासवान |
1995 | बसपा से सुरेश पासी |
2000 | बसपा से सुरेश पासी |
2005 | राजद से सुरेंद्र प्रसाद यादव |
2010 | भाजपा से श्यामदेव पासवान |
2015 | राजद से कुमार सर्वजीत |
2020 | राजद से कुमार सर्वजीत |
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