वादों की बाढ़ में डूबा पानी, राजनीतिक दलों की चुप्पी; दिल्ली में जल संकट का क्या है समाधान
दिल्ली में पानी की किल्लत और गंदे पानी की आपूर्ति एक गंभीर समस्या है लेकिन राजनीतिक दल इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। चुनावी मौसम में भी पानी की समस्या पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। इस लेख में हम दिल्ली में पानी की समस्या के कारणों भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन की भूमिका और इस संकट के समाधान के लिए आवश्यक उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली।delhi vidhan sabha chunav 2025: बरसात के दिनों में दिल्ली की सड़कों पर जलभराव के रूप में विकास बह रहा होता है। और गर्मी के दिनों में दिल्ली टैंकरों के आगे कतार में रहती है या साफ पानी की आपूर्ति के लिए जूझ रही होती है। कई जगह तो पानी का टैंकर सप्ताह में दो ही दिन पहुंच पाता है। अब विधानसभा चुनाव में दिल्ली चाहती है कि पानी की किल्लत और गंदे पानी की आपूर्ति पर कोई तो राजनीतिक दल बात करे।
साल भर जिस संकट से दिल्ली जूझती है उसे मुद्दे पर राजनीतिक दल बात करें। उसमें सुधार के वादे के साथ वोट मांगने आएं। लेकिन, सब राजनीतिक दल मौन हैं सिर्फ रेवड़ी से बजट बिगाड़ने को सब एक-दूसरे से बड़ी योजना की घोषणा कर रहे हैं। राजनीतिक दल बढ़ाचढ़ा कर पानी मुहैया कराने या मुफ्त देने के वादों को प्रबलता से बढ़ा रहे हैं।
आखिर सालभर पानी के लिए किसी न किसी तरह से त्रस्त दिल्ली की कौन सुनेगा? ऐसे में सवाल ये उठता है कि पानी के मामले में राजधानी में देश के किसी दूरदराज के क्षेत्र जैसी स्थिति क्यों है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसे दूर करने में राजनीतिक दल और जल बोर्ड कैसे लापरवाही बरत रहे हैं, इसका क्या है इस संकट को दूर करने के लिए क्या होने चाहिए ठोस उपाय? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :
क्या आप मानते हैं कि दिल्ली में पेयजल किल्लत और गंदे पानी की आपूर्ति एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है?
हां : 91
नहीं : 9
क्या दिल्ली में पेयजल किल्लत दूर करने और गंदे पानी की आपूर्ति रोकने के लिए प्रभावी उपायों का अभाव है
हां : 97
नहीं : 3
मुद्दा : मुख्य आलेख
राजनीतिक लाभ का साधन बनने से बढ़ा भ्रष्टाचार
सभी पार्टियों के बीच चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की सुविधाएं और पैसे देने की होड़ लगी हुई है, लेकिन दिल्ली वासियों को शुद्ध पेयजल मिले इसकी चिंता किसी को नहीं है। वर्षों से यही स्थिति है। प्रत्येक चुनाव में इसे लेकर सिर्फ राजनीति होती है। दिल्ली में पेयजल समस्या का यही सबसे बड़ा कारण है।
न तो दिल्ली के लिए जीवनदायिनी यमुना को स्वच्छ व अविरल करने पर ध्यान दिया गया और न जल संरक्षण एवं जल वितरण की कमियों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए गए। प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा इसे लेकर वादे बहुत किए गए।
सत्ता में आने के बाद किसी ने भी समस्या के समाधान के लिए काम नहीं किया। यमुना और गंदी होती चली गई। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। भ्रष्टाचार के कारण समस्या और गंभीर हो गई। दिल्ली के कई क्षेत्रों में नल से जल नहीं पहुंच रहा है। या तो पानी आता नहीं है या फिर दूषित जल पहुंच रहा है। देश की राजधानी में कितनी ही जगहों पर तो पाइपलाइन तक नहीं पहुंची है।
दिल्ली में जल आपूर्ति व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए जल प्रबंधन को ठीक करना होगा। पिछले डेढ़ दशक में दिल्ली में पानी बर्बादी के आंकड़े में सुधार क्यों नहीं हुआ इसकी जांच होनी चाहिए। पानी बर्बादी का मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। दिल्ली में 58 प्रतिशत पानी बर्बाद हो रहा है।
यदि रिसाव के कारण यह होता तो यहां का भूजल स्तर बढ़ना चाहिए था। इससे स्पष्ट है कि रिसाव नहीं यह पानी चोरी हो रहा है। इसका एक बड़ा कारण है कुप्रबंधन। पानी की बर्बादी रोकने का काम संभालने वाली कंपनियों की जवाबदेही तय नहीं की गई। विफलता के कारणों की पड़ताल, जांच और सुधार जरूरी है।
लोगों के घरों में पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पानी नहीं पहुंच रहा और भारी भरकम बिल भेज दिया जाता है। यह भ्रष्टाचार ही तो है। वर्ष 2013 में शुद्ध जल आपूर्ति, उपभोक्ताओं को भेजे गए गलत बिल, गलत रीडिंग राजनीतिक मुद्दा बना था। इस समय भी यह मुद्दा बरकरार है। 12 वर्षों के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी। स्पष्ट है कि इस दिशा में अपेक्षित प्रयास नहीं हुए हैं।
निश्शुल्क पानी योजना लागू करने के बाद उसकी समीक्षा नहीं की गई। जरूरत के अनुसार निश्शुल्क पानी देने की जगह इसे राजनीतिक लाभ का साधन बना लिया गया है। इस कारण भी पेयजल का दुरुपयोग हो रहा है। इस नीति की समीक्षा होनी चाहिए। क्या सभी को प्रति माह 20 हजार लीटर निश्शुल्क जल की आवश्यकता है? इसकी पड़ताल जरूरी है।
इसके बाद ही इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए। पानी चोरी व बर्बादी को रोकने के लिए ठोस पहल की जरूरत है। इसके लिए सरकार, दिल्ली जल बोर्ड व संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। यदि उपलब्ध पेयजल उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा तो समस्या बहुत हद तक अपने आप दूर हो जाएगी।
भविष्य को ध्यान में रखकर यमुना नदी को उसके मूल स्वरूप में लौटाना होगा। यमुना से ही अधिकांश दिल्लीवासियों की प्यास बुझती है। इसे स्वच्छ व अविरल बनाने के लिए ईमानदारी से काम करने की जरूरत है। इसे लेकर राजनीति अधिक हो रही है। इस कारण यमुना पहले से अधिक दूषित हो गई है।
यदि इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में समस्या और विकराल हो जाएगी। दिल्ली के पास अपना कोई जल स्रोत नहीं है। पूरी तरह से पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है। इसे ध्यान में रखकर वर्षा के जल को संरक्षित कर भूजल स्तर को ऊपर उठाने के लिए गंभीरता से काम करना होगा। इस दिशा में सार्थक पहल करनी ही होगी।
पानी का दुरुपयोग रोकने और जल वितरण प्रबंधन को भ्रष्टाचार से मुक्त करके दिल्लीवासियों को उनकी आवश्यकता के अनुसार पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है। दूषित जल की समस्या भी गंभीर है। इसके लिए पुराने व क्षतिग्रस्त पाइपलाइन के कारण यह समस्या हो रही है। पाइपलाइन की निगरानी प्रक्रिया में सुधार व पुराने व क्षतिग्रस्त पाइपलाइन को समय पर बदलकर इसका समाधान हो सकता है।
एसए नकवी (संयोजक, सिटिजंस फ्रंट फॉर वॉटर डेमोक्रेसी)
जैसा बातचीत में संतोष कुमार सिंह को बताया
मुद्दा : दूसरा आलेख
उपलब्धता से ज्यादा, प्रबंधन की है समस्या
दिल्ली में पेयजल आपूर्ति की समस्या का मुख्य कारण राजनीति है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की और हरियाणा में भाजपा की सरकार है। केंद्र में भी भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है। इस कारण पानी की समस्या के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। पेयजल आपूर्ति को बेहतर करने के लिए जल प्रबंधन पर ध्यान देना होगा।
दिल्ली जल बोर्ड एक हजार एमजीडी पेयजल उपलब्ध कराने का दावा करता है। दिल्ली की आबादी तीन करोड़ तक पहुंच रही है। इस तरह से प्रति व्यक्ति प्रति दिन 190 लीटर पानी की उपलब्धता है।
केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार महानगर में प्रति व्यक्ति 150 लीटर पानी मिलना चाहिए।
इस तरह से दिल्ली में मानक से 40 लीटर अधिक पानी की उपलब्धता है। इससे दिल्लीवासियों को 24 घंटे पानी मिल सकता है। फिलिपिंस में प्रति व्यक्ति 90 लीटर पानी की उपलब्धता पर 24 घंटे आपूर्ति की जा रही है, लेकिन दिल्ली में मानक से अधिक पानी होने के बावजूद समस्या है।
कुप्रबंधन के कारण पानी का असामान्य वितरण हो रहा है। सिविल लाइंस, प्रशांत विहार जैसे कुछ क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति तीन सौ एमजीडी पानी दिया जा रहा है और कई क्षेत्रों में नियमित पानी नहीं मिलता है। पानी की बर्बादी भी अधिक है। उपलब्ध एक हजार एमजीडी पानी में से लगभग 52 प्रतिशत या तो चोरी या बर्बाद हो रहा है।
20 प्रतिशत बर्बादी रोकने पर 200 एमजीडी पानी उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध होगा। इसके लिए पाइपलाइन के निगरानी तंत्र को बेहतर बनाने के साथ उपभोक्ताओं को जागरूक करना होगा। कई स्थानों पर पाइपलाइन टूटी हुई हैं जिन्हें ठीक नहीं किया जाता, पानी चोरी का माध्यम बनी हुई हैं।
कई स्थानों पर जमीन के अंदर रिसाव होता रहता है जिससे होने वाले नुकसान का पता नहीं चलता है। यूरोप, अमेरिका, सिंगापुर, जापान में बर्बादी रोकने के लिए प्रत्येक स्तर पर पानी का आडिट होता है। उपभोक्ताओं द्वारा पानी की खपत का भी ऑडिट किया जाता है जिससे घरों में होने वाली बर्बादी का पता लगाकर उसे रोकने के लिए कदम उठाए जाते हैं।
पानी आपूर्ति को बेहतर बनाने के लिए जलाशयों की संख्या बढ़ानी होगी। स्थानी स्तर पर जलाशय बनाकर वहां से पानी आपूर्ति की जानी चाहिए। इससे पानी का दबाव ठीक रहेगा और लोगों को घरों में पानी के मोटर नहीं लगाने पड़ेंगे, जिससे बिजली की भी बचत होगी।
24 घंटे पानी उपलब्ध कराने में भी मदद मिलेगी। पानी आने का निर्धारित समय नहीं होने से लोग बार-बार मोटर चलाते हैं, इससे क्षतिग्रस्त पाइपलाइन से गंदगी अंदर आती है। परिणामस्वरूप घरों में दूषित पेयजल पहुंचता है।
दिल्ली में 70 प्रतिशत पानी का उपयोग सिंचाई, वाहनों की सफाई, शौचालय जैसे गैर पेयजल के लिए होता है। वहीं, एसटीपी से मिलने वाला पानी नाले में बहाया जा रहा है। यदि एसटीपी से मिलने वाले शोधित जल का उपयोग गैर पेयजल कार्यों में किया जाए तो पेयजल की उपलब्धता बढ़ेगी।
एसटीपी से मिलने वाले लगभग छह सौ एमजीडी शोधित जल में से सिर्फ 90 एमजीडी का उपयोग हो रहा है। इस पानी का उपयोग सिंचाई, वाहनों को धोने, मेट्रो व रेलवे के कार्य में, सड़कों पर छिड़काव व अन्य कार्यों में होना चाहिए। रिज क्षेत्र में इस पानी को संग्रहित किया जाना चाहिए जिससे भूजल स्तर बढ़ेगा। इन कार्यों के मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।
आरएस त्यागी, पूर्व तकनीकी सदस्य, दिल्ली जल बोर्ड
जैसा संतोष कुमार सिंह को बातचीत में बताया
पानी की ‘फ्री’ बोली
क्षमता से तीन गुना आबादी को लेकर बढ़ रही दिल्ली वादों के बोझ में ही अधिक दबी जा रही है। यहां सब फ्री देने की प्रवृत्ति का ही फर्क है कि चार-पांच साल में ही उपभोक्ता तीन गुणा तक बढ़ जाते हैं।
90 प्रतिशत तक पानी की आपूर्ति के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर दिल्ली में प्रतिमाह 20 हजार लीटर तक प्रति परिवार पानी दिया जाता है और इतने समय में ही पानी का बजट भी तीन गुणा बढ़ा है।
बजट तो बढ़ा लेकिन देश की राजधानी की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां आज भी पानी की आपूर्ति को पाइपलाइन नहीं है सिर्फ टैंकर माफिया का ही दबदबा है। दिल्ली की ये दो तस्वीर विचलित करती हैं एक तरफ पाइपलाइन नहीं दूसरी तरफ मुफ्त पानी?
- निर्भरता : 90% पेजयल की जरूरत पूरी करने के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर।
- दावा : 93.5% घरों में पाइपलाइन से पानी पहुंचाने का है दिल्ली सरकार का दावा।
- 1799 अनधिकृत कालोनी, जिनमें 1,638 में पाइपलाइन से होती है पानी की आपूर्ति।
- 161 अनधिकृत कालोनी पूरी तरह वाटर टैंकर पर आश्रित।
- 52.35% यानी लगभग आधा से अधिक पानी व्यर्थ जा रहा है, उसका वितरण लोगों तक नहीं हो पा रहा।
- 550 एमजीडी उपचारित अपशिष्ट जल, 100 एमजीडी का उपयोग किया जा रहा।
-नोट : दिल्ली जल बोर्ड के आउटकम बजट (2023-24) के अनुसार
जल बोर्ड बजट
- वर्ष 2020-21 में : 4,301 करोड़ रुपये था।
- वर्ष 2024-25 में : 7,195 करोड़ रुपये हो गया।
- प्रतिशत : पांच साल में 67% बढ़ गया बजट।
6 लाख उपभोक्ताओं को 20 हजार लीटर पानी प्रतिमाह दिया जा रहा था 2020-21 तक
- 17.1 लाख उपभोक्ता हो गए वर्ष 2024-25 में
- प्रतिशत : 285% पांच साल में तीन गुणा वृद्धि
पेयजल उपलब्धता बढ़ाने को प्रस्तावित योजनाएं
- रेणुकाजी बांध (हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में दधाऊ नदी पर, 2028 तक बनने की उम्मीद)
- किशाऊ बांध (उत्तराखंड के देहरादून और हिमचाल प्रदेश के सिरमौर जिले में यमुना की सहायक नदी टोंस पर प्रस्तावित)
- लखवार बांध (उत्तराखंड के देहरादून जिले में यमुना पर प्रस्तावित) से दिल्ली को जल मिलेगा।
एक सहयोग ये भी
वर्ष 1994 में दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के बीच समझौते के अनुसार दिल्ली को यमुना से 1,005 एमजीडी पानी मिलता है। इस समझौते की अवधि इस वर्ष समाप्त हो रही है।
- 2,000 लीटर का टैंकर जिसकी कीमत सामान्य दिनों में होती है 700 रुपये तक।
- 200% गुणा वृद्धि हो जाती है गर्मी के दिनों में टैंकर की कीमत में। 2000 रुपये से अधिक में मिलता है।
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