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Rajendra Nagar By Election: भाजपा रणनीतिकारों की असफल रही रणनीति, न सधे पंजाबी और न पूर्वांचली

Delhi Rajendra Nagar Bypoll Result राजेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र कभी भाजपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था लेकिन अब यह आम आदमी पार्टी के कब्जे में है। उपचुनाव में अपने इस पुराने दुर्ग पर एक बार फिर से कमल खिलाने का सपना भी बिखर गया है।

By Geetarjun GautamEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2022 05:44 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jun 2022 09:03 AM (IST)
Rajendra Nagar By Election: भाजपा रणनीतिकारों की असफल रही रणनीति, न सधे पंजाबी और न पूर्वांचली
दिल्ली में उपचुनाव में भाजपा रणनीतिकारों की असफल रही रणनीति।

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। राजेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र कभी भाजपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब यह आम आदमी पार्टी के कब्जे में है। उपचुनाव में अपने इस पुराने दुर्ग पर एक बार फिर से कमल खिलाने का सपना भी बिखर गया है। इस चुनाव में पार्टी के रणनीतिकारों की रणनीति पूरी तरह से असफल रही है। न तो बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार काम आया और न बाहरी कार्यकर्ताओं की भीड़ का लाभ मिला।

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बूथ प्रबंधन को लेकर किए जा रहे बड़े-बड़े दावों की असलियत भी सामने आ गई है। नेताओं की गुटबाजी, स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और पिछला निगम चुनाव जीतने वाले पार्षदों को लेकर जनता में नाराजगी ने इस हार को और बड़ा कर दिया।

शुरू से ही इस विधानसभा क्षेत्र में पंजाबी मतदाताओं की संख्या ज्यादा रही है। इनके समर्थन से भाजपा ने 1993 से 2003 तक यहां से जीत दर्ज की और पूरन चंद योगी विधायक रहे।

वर्ष 2008 में कांग्रेस के रमाकांत गोस्वामी ने भाजपा से यह सीट छीन ली थी, लेकिन 2013 के चुनाव में आरपी सिंह फिर से यहां कमल खिलाने में सफल रहे थे। उसके बाद से पार्टी को जीत नसीब नहीं हुई है। अब इस सीट का समीकरण भी बदल चुका है। पंजाबियों के साथ ही यहां पूर्वांचलियों की अच्छी खासी संख्या है।

पार्टी ने पंजाबी मतदाताओं को ध्यान में रखकर उपचुनाव में राजेश भाटिया को मैदान में उतारा था। केंद्रीय राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी के ससंदीय क्षेत्र में राजेंद्र नगर आता है। पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर यहीं के रहने वाले हैं और उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सांसद हंसराज हंस भी चुनाव प्रचार कर रहे थे।

पंजाबी उम्मीदवार और इन बड़े पंजाबी नेताओं के दम पर पार्टी को इस समाज का भारी समर्थन मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। भाजपा उम्मीदवार को अपने वार्ड में भी हार का सामना करना पड़ा। इसका एक बड़ा कारण पार्टी के पंजाबी नेताओं का जनता से जुड़ाव नहीं होना माना जा रहा है।

पूर्वांचली मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टी ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी व गोरखपुर के सांसद रवि किशन को चुनाव प्रचार के लिए उतारा गया, लेकिन मतदाताओं पर इनका जादू नहीं चला।

झुग्गी बस्तियों में भी एक बार फिर से पार्टी का प्रदर्शन निराश करने वाला रहा है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक व अन्य बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार का कोई खास असर नहीं दिखा।

प्रदेश नेतृत्व ने चुनाव प्रबंधन के लिए दिल्लीभर के लगभग ढाई सौ नेताओं को टीम लगाई थी। प्रत्येक बूथ के लिए अलग-अलग प्रभारी थे। यह कदम नुकसानदेह रहा। बाहरी नेताओं को प्रभारी बनाने से स्थानीय नेता व कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस करने लगे।

इन नेताओं की नाराजगी और पार्टी के अंदर की गुटबाजी से पार्टी को नुकसान हुआ। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह, प्रदेश उपाध्यक्ष राजन तिवारी और महिला नेता सोनिया सिंह सहित कई नेता टिकट की दौड़ में थे। बताया जा रहा है चुनाव काम से इनके समर्थक अलग-थलग रहे।

प्रदेश नेतृत्व का दावा रहा है कि पूरी दिल्ली में प्रत्येक बूथ पर 21 समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम तैनात है जिससे कि मतदाताओं तक पार्टी की नीति पहुंचाने के साथ ही उन्हें चुनाव में मतदान केंद्र तक पहुंचाने में मदद मिलती है। कम मतदान और पार्टी की हार से इसकी पोल खुल गई है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि हार की समीक्षा की जाएगी और सुधार के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे।

दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने बताया कि हार-जीत लोकतंत्र का अभिन्न अंग है, भाजपा इस जनादेश का सम्मान करती है। हमारे कार्यकर्ता इस चुनाव की भांति आगे भी और अधिक बल के साथ रणक्षेत्र में उतरेंगे।


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