क्या तेजस्वी यादव के उम्मीदवार लगा पाएंगे 'चौका'? समस्तीपुर विधानसभा सीट के लिए यक्ष सवाल
Bihar Assembly Election 2025: समस्तीपुर विधानसभा सीट पर इस बार भी मुकाबला दिलचस्प है। राजद विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन लगातार तीन बार से जीत रहे हैं, लेकिन इस बार समीकरण बदले हुए हैं। क्षेत्र में चीनी मिल का पुन: परिचालन और आरओबी का निर्माण जैसे कई मुद्दे अनसुलझे हैं, जिससे जनता में निराशा है। देखना यह है कि क्या शाहीन चौथी बार जीत दर्ज कर पाएंगे, या मतदाता बदलाव को चुनेंगे।

यह तस्वीर जागरण आर्काइव से ली गई है।
जागरण संवाददाता, समस्तीपुर। Bihar Assembly Election 2025: जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे सियासी समीकरण और उसके गुणा-भाग का ख्याल रखने का काम शुरू हो गया है। समस्तीपुर सीट उन्हीं हॉट सीटों में है। यहां के विधायक अपनी चौथी पारी के लिए मैदान में डटे हैं।
समस्तीपुर विधानसभा सीट इस बार भी राजनीतिक उतार-चढ़ाव और पुरानी यादों के साथ प्रत्याशी-रणछोड़ का मैदान बनकर उभरी है।
ऐतिहासिक रूप से ध्यान देने वाली बात यह है कि 1985 से 1995 तक एक ही उम्मीदवार अशोक सिंह ने लगातार तीन बार (1985, 1990, 1995) यह सीट जीती, लेकिन चौथी बार वे हार गए।
इसके बाद 2000, 2005 के फरवरी और नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में रामनाथ ठाकुर (जदयू) ने सीट पर अपनी पकड़ बनाई और लगातार तीन चुनावो में यशस्वी रहे।
वहीं चौथी बार 2010 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल के विधायक अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने 2010, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार यह सीट जीती है और अब चौथी बार चुनाव मैदान में जीत के लिए जद्दोजहद में लगे हैं।
इस बार सवाल वही
क्या शाहीन चौका लगाएंगे या मौका गवाएंगे? 2020 के आंकड़े बताते हैं कि शाहीन ने 68,507 वोट पाकर अश्वमेघ देवी (जदयू) को मात्र 4,714 वोट से हराया था। यही नजदीकी अंतर इस चुनाव को और नाज़ुक बनाता है। क्षेत्र में कुछ बुनियादी विकास-मुद्दे वर्षों से अनसुलझे पड़े हैं।
समस्तीपुर चीनी मिल का परिचालन फिर से शुरू न हो पाना और भोला टॉकीज़ गुमटी पर आरओबी का निर्माण न होना ऐसे मुद्दे हैं जो जनता खासकर किसानों और छोटे व्यापारियों के बीच निराशा पैदा कर रहे हैं।
ट्रैफिक जाम और बुनियादी सुगमता न होने से भी लोग असंतुष्ट हैं। इसलिए शाहीन के लगातार जीतने के बावजूद इन स्थानीय मुद्दों को लेकर मतदाताओं में बदलाव की भावना भी दिख रही है।
बदलता समीकरण बना दिलचस्प
2020 के चुनाव में जदयू, भाजपा और वीआईपी पार्टी एक साथ लड़ी थीं, जबकि चिराग पासवान की लोजपा अलग मैदान में थी और उसने 12 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे।
इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। जदयू, भाजपा और लोजपा (रामविलास) एक साथ हैं, जबकि वीआईपी पार्टी अब राजद गठबंधन के साथ है। इससे मुकाबला और भी कड़ा हो गया है।
लोगों में मिश्रित रुझान देखने को मिल रहा है। कुछ मतदाता शाहीन को उनके कार्यों के आधार पर एक बार और मौका देना चाहते हैं, जबकि एक वर्ग विकास की धीमी गति को लेकर नाराज़ दिख रहा है। युवाओं के बीच बेरोज़गारी, ट्रैफिक और उद्योग की कमी जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं।
दायरा और पकड़ बदलते रहे
एक नेता ने तीन बार लगातार जीतकर रिकॉर्ड बनाया और अगली पारी में हार का सामना किया; फिर नए चेहरे उभरे। आज शाहीन का रिकॉर्ड भी इसी तरह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो सकता है।वे चौथी बार जीतकर एक और अध्याय जोड़ देंगे। अंतिम नतीजा यही तय करेगा कि वोटर विकास-आधारित फैसले करेंगे या पुराने जान पहचान पर भरोसा बनाए रखेंगे।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।