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    Paroo Election 2020: पारू में सीट व विरासत बचाने का दिख रहा संघर्ष

    By Murari KumarEdited By:
    Updated: Tue, 03 Nov 2020 06:27 PM (IST)

    Paroo Election News 2020 पारू विधानसभा से पिछले तीन बार से जीत का सेहरा बांधे अशोक कुमार सिंह चौथी बार चुनाव जीतने उतरे हैं। वहीं कांग्रेस ने पूर्व वि ...और पढ़ें

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    पारू विधानसभा से मैदान में प्रमुख उम्मीदवार

    मुजफ्फरपुर, जेएनएन। पर्यटन के क्षेत्र में असीम संभावनाओं को समेटे पारू विधानसभा क्षेत्र में बहुकोणीय मुकाबला है।  पिछले तीन बार से जीत का सेहरा बांधे अशोक कुमार सिंह चौथी बार चुनाव जीतने उतरें। वहीं 1995 से यहां मजबूती से लड़ते रहे राजद ने इसबार सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक उषा सिंह के पुत्र अनुनय सिन्हा को उम्मीदवार बनाया। वहीं पिछली बार राजद के टिकट पर चुनाव लड़े शंकर प्रसाद बगावत करते हुए निर्दलीय मैदान में हैं। भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम नीतीश कुमार व अन्य एनडीए नेताओं की सभा हो चुकी है। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार के लिए भी राजद नेता तेजस्वी प्रसाद, कांग्रेस नेता शत्रुघ्न सिन्हा समेत अन्य स्टार प्रचारकों की सभा हुई है।  यहां वोटिंग की प्रक्रिया पूरी हो गई है। इस विधानसभा क्षेत्र में रिकार्ड 60.00 फीसद  मतदान हुए। 

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    पारू विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन-तीन बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड राजद के मिथिलेश प्रसाद यादव व भाजपा के अशोक कुमार सिंह ने बनाया है। हालांकि, वीरेंद्र सिंह भी यहां से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। मगर, यह लगातार जीत नहीं थी। अशोक सिंह अगर चौथी बार चुनाव जीत जाते हैं तो ऐसा करने वाले पारू के वे पहले उम्मीदवार होंगे। आंकड़ा भी अब तक उनके पक्ष में हैं। चुनाव दर चुनाव उन्हेंं मिले वोटों की संख्या बढ़ती गई है। फरवरी 2005 के चुनाव में उन्हेंं जहां करीब 34 हजार वोट मिले।

     इस वर्ष वे राजद के मिथिलेश प्रसाद यादव से हार गए थे। मगर, इसी वर्ष अक्टूबर में हुए चुनाव में उन्होंने मिथिलेश को पराजित कर दिया। तब उन्हेंं 43 हजार से अधिक वोट मिले। इसके बाद हुए वर्ष 2010 व 2015 के चुनाव में उन्हेंं क्रमश: 53609 व 80445 वोट मिले। इस चुनाव में समीकरण बदले हैं तो विपक्ष दल भी। कांग्रेस के अनुनय सिंह का भी इस सीट से नाता रहा है। उनके पिता वीरेंद्र सिंह यहां से तीन बार व मां उषा सिंह एक बार विधायक रह चुके हैं। वहीं वे वर्ष 2000 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे थे। इसके बाद यह सीट राजद के कोर्ट में चली गई। इस बार उनके मैदान में रहने से चुनाव दिलचस्प हो गया है। वहीं पूर्व विधायक मिथिलेश प्रसाद यादव के भतीजे शंकर प्रसाद की नजर राजद के परंपरागत वोट पर है। इसमें सेंधमारी हुई तो अनुनय सिन्हा की राह मुश्किल होगी। वहीं जाप से रानू शंकर भी अनुनय सिन्हा के स्वजातीय हैं। 

    2020 के प्रमुख उम्मीदवार 

    अशोक कुमार सिंह  (भाजपा)

    अनुनय सिन्हा (कांग्रेस)

    शंकर प्रसाद (निर्दलीय)

    रानू शंकर (जाप)

    2015 के विजेता, उप विजेता और मिले मत 

    अशोक कुमार सिंह (भाजपा) : 80445

     शंकर प्रसाद (राजद) : 66906

    2010 के विजेता,उप विजेता और मिले मत 

    अशोक कुमार सिंह (भाजपा) : 53609

    मिथिलेश प्रसाद यादव (राजद): 34582

    2005 के विजेता, उप विजेता और मिले मत 

    अशोक कुमार सिंह (भाजपा) : 43569

    मिथिलेश प्रसाद यादव (राजद): 40489

    कुल मतदाता : तीन लाख 13 हजार 119

    पुरुष मतदाता : एक लाख 64 हजार 548

    महिला मतदाता : एक लाख 48 हजार 563

    अन्य : आठ

    अब तक चुने गए विधायक 

    1957 - चंदू राम (कांग्रेस)

    1957- नवल किशोर सिन्हा (कांग्रेस) 

    1962 - चंदू राम (कांग्रेस)

    1967-  एसएस सिंह (एसएसपी)

    1969 - वींरेंद्र कुमार सिंह (कांग्रेस)

    1972 - वीरेंद्र कुमार सिंह (कांग्रेस)

    1977 -  श्याम सुंदर प्रसाद सिंह (जनता पार्टी)

    1980 - नीतीश्वर प्रसाद सिंह (जनता पार्टी एसआर)

    1985 -  उषा सिंह (एलकेडी)

    1990 - वीरेंद्र कुमार सिंह (निर्दलीय)

    1995 - मिथिलेश प्रसाद यादव (जनता दल)

    2000 - मिथिलेश प्रसाद यादव (राजद)

    फरवरी 2005 - मिथिलेश प्रसाद यादव (राजद)

    जीत का गणित 

    पारू में यादव के साथ भूमिहार वोटरों की संख्या कमोबेश एक है। इसके अलावा यहां मुस्लिम व राजपूत वोटर भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि यहां 1969 के बाद से भूमिहार, यादव व राजपूत जाति के विधायक बनते रहे हैं।

    प्रमुख मुद्दे 

    1. भगवान महावीर जन्म स्थल बासोकुंड व अशोक स्तंभ जैसी धरोहर होने के बावजूद पर्यटन के दृष्टिकोण से क्षेत्र का विकास नहींं हो सका।

    2. बाया व झाझा नदी के कहर से हर वर्ष आती बाढ़, फसल से लेकर घर तक डूब जाते,  तटबंध की वर्षों से है मांग। 

    3. जलजमाव की समस्या गंभीर, सरकारी नलकूप वर्षों से खराब। सिंचाई की समस्या का निदान नहीं।

    4. भवन बनने के वर्षों बाद भी नहीं मिल सका रेफरल अस्पताल का दर्जा।