'कुर्ता फाड़' आंसू : चुनाव में बेटिकट क्या हुए, टूट गए-बिखर गए...सड़क पर
Bihar Assembly Election 2025: बिहार में चुनाव के दौरान टिकट न मिलने से कई नेता निराश हो गए। कुछ सार्वजनिक रूप से रो पड़े, तो कुछ ने पार्टी के खिलाफ नारे लगाए और सड़क पर धरने पर बैठ गए। नाराज कार्यकर्ताओं ने भी हंगामा किया और पार्टी कार्यालयों पर तोड़फोड़ की। एक नेता ने तो कुर्ता फाड़कर अपना दुख व्यक्त किया।

राजद से टिकट नहीं मिलने के बाद कुर्ता फाड़ कर रोते पूर्वी चंपारण के नेता। फोटो सौ. एएनआइ
अजय पांडेय, मुजफ्फरपुर। Bihar Election 2025 / Bihar chunav 2025 / Bihar vidhan sabha chunav 2025: इस चुनाव में सब है। ड्रामा, एक्शन, दांव-पेच, मनोरंजन और घात-भितरघात। हो सकता है, इन सब का दौर आपने पहले भले देखा हो, आंसू पालिटिक्स एकदम टटका है।
आंसू ट्रेंड में है, अलग-अलग स्टाइल और वेरायटी। कहीं भर-भर आंख तो कहीं सुबकते-सिसकते। सड़क पर लोट-पोट के साथ कुर्ता फाड़ आंसू भी। इसमें वर्षों की वफादारी बह गई।
कहीं मोटी रकम लेकर दूसरे को टिकट दे देने का आरोप हो तो कहीं गठबंधन में सीट ही बदल देने का दावा। इंटरनेट मीडिया पर पूरा मसाला है।
रील की टीआरपी छप्पर फाड़ के है, क्योंकि वहां हर दूसरे-तीसरे कंटेंट में आंसू कुर्ता फाड़ के है। पूर्वी चंपारण के नेताजी सर्वाधिक ट्रेंड में हैं। टिकट क्या कटा, टूट गए-बिखर गए...सड़क पर।
चैनलों ने हाथोंहाथ लिया, नेताजी का नाम हो गया। रील में सर्वाधिक बार उन्हें देखा गया। सिवान के अभिषेक दुबे लिखते हैं, नेताजी ने इससे पहले इतनी लोकप्रियता नहीं हासिल की होगी, जितनी पिछले चार दिनों में बटोर ली।
पार्टी को चाहिए था कि इंटरनेट मीडिया पर लोकप्रियता का सर्वे कराकर प्रत्याशी पर विचार करती। सारण के दिवाकर राय थोड़े उदार और गंभीर बात करते हैं, भाई किसी की भावना से इस कदर न खेलिए कि वह बिखर कर सड़क पर लेट जाए।
किसी भी पार्टी को याद रखना चाहिए कि जमे-जमाए कार्यकर्ता ही रीढ़ होते हैं और वही उसे ढोते भी हैं, नहीं तो पैराशूट प्रत्याशियों का क्या है...! आज इस दल में कल उस दल में, राजनीति का मूल तो इनकी वजह से खराब हो रहा।
यहां टिकट नहीं कटा, सीट ही कट गई
समस्तीपुर के मोरवा से टिकट की आस लगाए एक और नेताजी इस फ्रेम में हैं। बात टिकट की होती तो समझा भी जा सकता था, यहां तो सीट ही कट गई।
जिस पार्टी से पिछली बार ये लड़े थे, इस बार उसने पाला ही बदल दिया। अब इसका दर्द इंटरनेट मीडिया पर खूब छलका। पार्टी नेतृत्व के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी।
आंसू पालिटिक्स में महिला चेहरा भी है। खुद को जमीनी कार्यकर्ता बता गयाजी की बाराचट्टी सीट से दावेदार थीं। पार्टी के दरबार में पहुंचीं और आंचल फैला टिकट मांगने लगीं।
कटने की जानकारी मिली तो फूट-फूट कर रो पड़ीं। कहने लगीं, पार्टी हमारा घर है और बड़े साहब पिता समान। पिछली बातों का हवाला दे इमोशनल पालिटिक्स करने लगीं।
हमने तो दिन-रात मेहनत और पार्टी का झंडा उठाया। लोगों तक पार्टी की बात पहुंचाई, लेकिन आज हम बेघर हो गए। क्षेत्र में क्या मुंह लेकर जाएंगे। लोग ऊपर से आए और टिकट ले उड़े।
गयाजी के ही सुरेश कुशवाहा इससे इत्तेफाक नहीं रखते, लिखते हैं- उन्होंने टिकट मांगने की गलती कर दी, मांगने से मिल जाता तो अपना भुटेली (उनका सेवक) भी मैदान में होता। वह एक साल से टिकट मांग रहा है। फिलहाल, धनबाद के लिए ट्रेन का कन्फर्म टिकट लाकर दिया है, वह घर जा रहा है।
आपलोग क्या जानो, इन आंसुओं की कीमत...
सीतामढ़ी की एक और महिला हैं। पांच साल के राजनीतिक करियर में दो बार पार्टी बदल चुकी हैं। जिस पार्टी में अभी थीं, उसने बेटिकट किया तो निर्दल ताल ठोक दिया।
नामांकन के बाद संबोधित करते-करते रोने लगीं। वीडियो प्रसारित हुआ। महाराष्ट्र में रहने वाले बिहार के दीपक ने कहा, 10-10 करोड़ का चुनावी टिकट फोकट में कौन सी पार्टी देगी?
धर्मेंद्र कुमार जवाब लिखते हैं, अरे भाई वैसी बात नहीं है, इनको जितनी बार टिकट मिला, वह हार ही जाती हैं। पार्टी में और सिर्फ झंडा ढोने के लिए थोड़ी न हैं, मौका सबको मिलना चाहिए, यही बात है। सबसे ज्यादा लोगों ने पार्टी बदल लेने की सलाह दी। ज्योति कुमारी कहती हैं, इन आंसुओं की कीमत आपलोग क्या जानो...!
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