Bihar Politics: एक और 'लालू प्रसाद यादव', 25 सालों से चुनावी मैदान में डटे; अब भी नहीं टूटी जिद
मढ़ौरा में लालू प्रसाद यादव पिछले 25 सालों से चुनावी मैदान में सक्रिय हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है और उनका राजनीतिक संकल्प अभी भी दृढ़ है। मढ़ौरा की राजनीति में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है और वे क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं।

मढ़ौरा से लालू प्रसाद यादव ने दाखिल किया नामांकन पत्र। फाइल फोटो
पंकज कुमार पाण्डेय, मढ़ौरा (सारण)। प्रखंड के जादो रहिमपुर निवासी लालू प्रसाद यादव एक ऐसा नाम हैं जो पिछले 25 वर्षों से लगातार चुनावी मैदान में उतरते आ रहे हैं। पंचायत से लेकर राष्ट्रपति तक, शायद ही कोई चुनाव बचा हो जिसमें उन्होंने अपनी किस्मत न आजमाई हो। नतीजे हर बार हार के रूप में आए, लेकिन उनका जिद और हौसला कभी नहीं टूटा।
अब एक बार फिर उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी का नया अध्याय शुरू किया है। शुक्रवार को उन्होंने राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी के प्रत्याशी के रूप में मढ़ौरा विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल कर दिया है।
लालू प्रसाद यादव का कहना है कि वे तब तक चुनाव लड़ते रहेंगे जब तक जनता उन्हें अपना जनप्रतिनिधि नहीं बना देती। उनके शब्दों में, जनता का आशीर्वाद मेरा सहारा है। जब तक मैं जनता की सेवा के लिए चुना नहीं जाता, तब तक मैदान नहीं छोड़ूंगा।
पंचायत से राष्ट्रपति तक का सफर
लालू प्रसाद यादव ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 2001 में वार्ड पार्षद के चुनाव से की थी। इसके बाद उन्होंने मुखिया, सरपंच, एमएलसी, विधानसभा, लोकसभा और यहां तक कि राष्ट्रपति पद तक के लिए नामांकन दाखिल किया।
उन्होंने 2014, 2019 और 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ा, वहीं 2015, 2020 और अब 2025 में विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रहे हैं। 2020 में उन्होंने एमएलसी का भी नामांकन किया था। इतना ही नहीं, 2017 और 2022 में उन्होंने देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के लिए भी नामांकन दाखिल कर राजनीतिक हलकों में चर्चा बटोरी थी।
‘नाम एक, पर चेहरा दूसरा’
दिलचस्प बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें लगभग 10,000 मत मिले थे। उस समय कई मतदाता उन्हें राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव समझ बैठे थे। लालू यादव खुद मुस्कुराते हुए बताते हैं, “राबड़ी देवी के विरोध में लोगों ने मुझे वोट दिया, यह सोचकर कि मैं वही लालू यादव हूं। लेकिन मैं सारण का आम आदमी हूं, जो जनता की सेवा के लिए राजनीति में आया है।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें लगभग 6,000 मत मिले। इस बार मतदाताओं ने उन्हें रोहिणी आचार्य के विरोध में विकल्प के रूप में देखा।
हार के बाद भी अडिग इरादा
लगातार असफलताओं के बावजूद लालू प्रसाद यादव की ऊर्जा और आत्मविश्वास देखते ही बनता है। वे मानते हैं कि राजनीति सेवा का माध्यम है, न कि पद का लोभ। उनका कहना है कि “जो हारकर भी हार न माने, वही असली योद्धा है। मैं जनता के हक और आवाज उठाने के लिए हर चुनाव लड़ता हूं। जीत मेरी मंज़िल है, लेकिन संघर्ष मेरा धर्म है।
इस बार उम्मीद की नई किरण
मढ़ौरा विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरते हुए लालू प्रसाद यादव ने कहा कि उन्हें जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है। स्थानीय लोगों से संवाद, जनसंपर्क और लगातार समाजसेवा के माध्यम से वे इस बार बेहतर नतीजे की उम्मीद कर रहे हैं। उनकी उम्मीदों की डोर इस बार मढ़ौरा की जनता से बंधी है, जो शायद उनकी 25 वर्षों की राजनीतिक यात्रा का परिणाम बदल दे।
लालू प्रसाद यादव की कहानी भारतीय लोकतंत्र में एक अद्भुत उदाहरण है- जहां हार, निराशा और विफलता के बावजूद एक व्यक्ति अपने सपनों और जनसेवा की भावना को जिंदा रखता है। वे राजनीति को पेशा नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता मानते हैं। और शायद यही अडिगता उन्हें जनता की नजरों में हारने वाला नहीं, लड़ने वाला नेता बनाती है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।