Bihar Politics: मैथिली को लगाना ही होगा सही 'सुर', राजनीति में चूक की गुंजाइश नहीं
बिहार की राजनीति में मैथिली भाषा का सही उपयोग महत्वपूर्ण है। राजनीतिक दृष्टिकोण से, भाषा का सावधानीपूर्वक उपयोग आवश्यक है ताकि किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। मैथिली भाषा को राजनीति में सही तरीके से प्रस्तुत करना अनिवार्य है, क्योंकि यहां किसी भी प्रकार की चूक की कोई गुंजाइश नहीं है।
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यह तस्वीर जागरण आर्काइव से ली गई है।
ब्रज मोहन मिश्र, मधुबनी। Bihar Assembly Election 2025: बिहार में राजनीतिक शतरंज बिछ गई है। अब बारी चालों की है। एनडीए ने मिथिलांचल की सभी सीटों पर पहले ही अपने प्यादों को सजा दिया।
कुछ खींचतान को छोड़ महागठबंधन के लड़ाके भी तैयार हो चुके हैं। जन सुराज पार्टी ने भी पासे फेंक दिये हैं। ऐसे में दरभंगा की अलीनगर सीट से भाजपा प्रत्याशी लोकगायिका मैथिली ठाकुर को बागियों से निपटना होगा। भितरघात का मुकाबला करना होगा।
मिथिलांचल में कहीं पिता की विरासत का सहारा होगा तो कहीं जातीय समीकरण की जोड़ तोड़ पर भरोसा। कहीं भीतरघात का भय तो कहीं खुल्लम खुला चुनौती देते बागी होंगे।
मधुबनी की झंझारपुर सीट पर उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा को पिता से मिली राजनीतिक समझ और लंबे अनुभव पर भरोसा है, तो एनडीए की परंपरागत वोट बैंक के साथ बेहतर काम का दावा।
विरोध में खड़े सीपीआइ के रामनाराण यादव को महागठबंधन के जातीय समीकरण पर विश्वास है। वहीं, फुलपरास में परिवहन मंत्री शीला मंडल के सामने कांग्रेस ने पिछली बार की तरह ब्राह्मण चेहरा नहीं दिखा।
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुबोध मंडल को उतारा। धानुक के सामने धानुक को खड़ा किया। जबकि जन सुराज ने जलेश्वर मिश्रा को ब्राह्मण चेहरा के तौर पर उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
बिस्फी से राज्यसभा सांसद डा. फैयाज अहमद ने अपने बेटे आसिफ अहमद को राजद से खड़ा किया है। इस सीट से वे दो बार खुद विधायक रहे हैं। मुस्लिम आबादी प्रभावशाली है।
ऐसे में बिस्फी में ध्रुवीकरण बड़ा फैक्टर है। भाजपा के विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल को बिहार का गिरिराज सिंह समझा जाता है। उन्हें अपने काम और पार्टी की रणनीति पर यकीन है।
बाबूबरही सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव ने अपने बेटे आलोक यादव की इंट्री जन सुराज से करायी है। लड़ाई में तीसरा कोना बनाने का प्रयास किया है। देवेंद्र यादव झंझारपुर से पांच बार सांसद रहे।
2004 में इन्हें जीत दिलाने में बाबूबरही ने बड़ी भूमिका निभाई थी। अब देखना है कि क्या पिता की पुरानी ताकत मददगार होती है या नहीं। जदयू की मीणा कामत के बाद राजद ने अरुण सिंह कुशवाहा को उतारा है।
समस्तीपुर की वारिसनगर में तीन बार के विधायक अशोक कुमार मुन्ना ने अपने इंजीनियर बेटे डा. मृणाल को उतारा है। वह जदयू के लव-कुश की राजनीति के अहम किरदार हैं।
दरभंगा की अलीनगर सीट सबसे ज्यादा चर्चा में है। भाजपा ने मैथिली ठाकुर पर दांव लगाया है। उन्हें भीतरघात की चुनौती से उबरना होगा।
दरभंगा शहर की सीट पर मंत्री संजय सरावगी के सामने इस बार वीआइपी के उम्मीदवार उमेश सहनी कितनी मजबूती से लड़ते हैं देखना दिलचस्प होगा। यहां पूर्व आईजी आरके मिश्रा जन सुराज से ताल ठोक रहे हैं।
समस्तीपुर की सरायरंजन सीट पर मंत्री विजय चौधरी के सामने राजद के बड़े नेता आलोक मेहता गुट के अरविंद सहनी हैं। पिछली बार करीब 3000 हजार से हारे थे। वहीं, जन सुराज ने पूर्व मंत्री रामविलास मिश्रा के पुत्र सज्जन मिश्रा को खड़ा करके विजय चौधरी के लिये चुनौती को बढ़ा दी है।
कल्याणपुर से मंत्री महेश्वर हजारी की भी साख दांव पर है। दरभंगा की बहादुरपुर सीट पर जदयू के मंत्री मदन सहनी के सामने लालू यादव के खास भोला यादव इस बार हायाघाट से सीट बदलकर उतरे हैं।
जाले की सीट पर मंत्री जीवेश मिश्रा के सामने पार्टी बदलकर कांग्रेस से ऋषि मिश्रा उतरे हैं। वे भाजपा के मंत्री नीतीश मिश्रा के चचेरे भाई हैं। इस सीट पर कांग्रेस के डा. मशकूर अहमद उसमानी ने भी नामांकन किया था।
कांग्रेस से तो नामांकन रद्द हो गया मगर वे निर्दलीय लड़ रहे हैं। जीवश मिश्रा को सोशल मीडिया में उनकी दवा मामले में सजा के बिंदु पर ट्रोलिंग का भी सामना करना पड़ रहा है।
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