Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Bihar Assembly Elections: जनता को तांबा-पीतल, विधायक जी को सोना!

    By Vikash Chandra PandeyEdited By: Vyas Chandra
    Updated: Sat, 18 Oct 2025 03:59 PM (IST)

    इस लेख में बिहार के विधायकों और सांसदों के वेतन, भत्ते और सुविधाओं पर चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे विधायकों को वेतन और अन्य सुविधाएं मिलती हैं, जबकि राज्य में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है। लेख में यह भी बताया गया है कि कैसे विधायकों की संपत्ति जनता की औसत संपत्ति से बहुत अधिक है, और सरकार को प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।

    Hero Image

    विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। फरवरी 2005 में सत्ता की चाबी लेकर रामविलास पासवान ऐसे इतराए कि छह माह बाद नवंबर में दोबारा चुनाव की नौबत बन आई थी। परिणाम से पासवान तो पिटे ही, साथ में वे 70 प्रत्याशी भी मात खा गए, जो फरवरी में विजेता रहे थे। उनमें कई नए चेहरे भी थे, जिनके लिए वेतन-पेंशन की गुंजाइश ही नहीं बची। तब बिना शपथ लिए वेतन-पेंशन की व्यवस्था नहीं थी। नवंबर में नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली और एक अधिनियम से उन 70 लोगों को पूर्व विधायक का दर्जा दे दिया। फिर तो पेंशन और दूसरी सुविधाओं की गुंजाइश निकल आई।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोई सरकार जन-प्रतिनिधियों का इस हद तक ख्याल करती है। वैसे भी सबके लिए रोजी-रोटी की व्यवस्था से बढ़कर अच्छी पहल क्या होगी, लेकिन जनता के खाली पेट में पड़ोसी की भरी थाली देखकर उठने वाली मरोड़ स्वाभाविक है। बिहार को यह दंश इसलिए भी अधिक है, क्योंकि देश में प्रति व्यक्ति आय सबसे कम यहीं है, जबकि विधायकों को भुगतान के मामले में बिहार से आगे मात्र नौ राज्य हैं।

    महंगाई दर के अनुपात में सरकारी और निजी क्षेत्र में वेतन-वृद्धि प्राय: नहीं होती। इस कारण नौकरी-पेशा की आय में ठहराव की स्थिति बन जाती है। 2019 और 2023 के बीच विभिन्न क्षेत्रों में वेतन वृद्धि 0.8 प्रतिशत से 5.4 प्रतिशत तक रही, जबकि मुद्रास्फीति 3.73 और 6.7 प्रतिशत के बीच रही। इस कारण नागरिकों की क्रय शक्ति प्रभावित हुई। उसका असर बाजार के साथ अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा। निजी क्षेत्र तो दरकिनार, सरकारी क्षेत्र में भी होने वाली वेतन-वृद्धि सांसदों-विधायकों की तुलना में मामूली होती है। 2006 एक अपवाद है, जब सांसदों को 33.3 प्रतिशत वेतन-वृद्धि मिली, जबकि उसी दौरान छठे वेतन आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 54 प्रतिशत की वृद्धि को स्वीकृति दी।

    2018 में हुआ था समायोजन का निर्णय 


    सांसदों के वेतन को प्रति पांच वर्ष में मुद्रास्फीति सूचकांक के आधार पर समायोजित करने का निर्णय पहली बार 2018 में लिया गया था। उस समय उनका वेतन 50000 रुपये से दोगुना बढ़ाकर एक लाख रुपये किया गया था। देर-सबेर ही सही, बिहार ने भी कमोबेश उसी का अनुकरण किया। 2024 में सांसदों के वेतन में 24 प्रतिशत की वृद्धि के बाद उन्हें प्रति माह एक लाख की जगह 1.24 लाख रुपये वेतन मिलने लगा। भत्ता और सुविधाएं जोड़कर यह राशि लगभग पांच लाख हो जाती है। हालांकि, सांसदों का संशोधित वेतन भी देश के अफसरशाहों से काफी कम है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर ही कैबिनेट सचिव, चुनाव आयुक्त, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक 2.5 लाख रुपये प्रति माह मूल वेतन पाते हैं, जबकि विदेश सचिव और पुलिस महानिदेशक का मूल वेतन 2.25 लाख रुपये मासिक होता है। इस बीच, भारत की प्रति व्यक्ति आय 2024-25 में 17110 रुपये प्रति माह पर बनी हुई है। बिहार में यह मात्र 5569 रुपये ही है, जबकि यहां विधायकों पर वेतन के साथ भत्ता और दूसरी सुविधाएं जोड़कर लगभग तीन लाख रुपये प्रति माह खर्च हो रहा। पटना में नि:शुल्क मिलने वाला आवास इसके अतिरिक्त है। सांसदों के लिए आवास की यही व्यवस्था दिल्ली में है, अन्यथा किराया मिलता है।


    बिहार के 80 प्रतिशत विधायक करोड़पति

    राष्ट्रीय औसत से बिहार में प्रति व्यक्ति आय कम और बेरोजगारी दर अधिक है। ऐसे में विधायकों की शान-ओ-शौकत पर खजाने से बेहिसाब खर्च जनता को कुछ अधिक अखरता है। विधायकों की यह आय केवल आधिकारिक स्रोतों से है, जबकि कई विधायक व्यवसाय या अन्य स्रोतों से अतिरिक्त कमाते हैं। जनता की आय में भी असमानता है, जो पटना जिला में उच्चतम तो शिवहर में न्यूनतम है। बिहार की अर्थव्यवस्था में असमानता भी एक प्रमुख मुद्दा है, जबकि सांसद-विधायक प्राय: समृद्ध पृष्ठभूमि से आते हैं। एडीआर के अनुसार, बिहार के 80 प्रतिशत विधायक करोड़पति हैं। सबसे अमीर विधायक की संपत्ति 80 करोड़ से अधिक है। यह जनता की औसत संपत्ति से सौ गुना से भी अधिक है। ऐसे में सरकार को प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने पर फोकस करने की आवश्यकता है। औद्योगिक निवेश और कौशल विकास से ऐसा संभव होगा।

    सांसद को सुख-सुविधा भरपूर

    सांसद को प्रति महीने 2.54 लाख रुपये मिल रहे। वार्षिक आधार पर यह राशि 30.48 लाख बनती है। यह देखते हुए कि 2024-25 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2.05 लाख रुपये (वर्तमान मूल्य पर) थी। एक सांसद की आय नागरिकों से औसतन 15 गुना से भी अधिक है। यह सांसदों को मिलने वाले लाभों और सुविधाओं का एक हिस्सा है। हर सांसद को अपने और अपने परिवार के लिए नि:शुल्क चिकित्सा सेवा, आवास या दो लाख रुपये प्रति माह आवास भत्ता मिलता है। 50000 यूनिट नि:शुल्क बिजली, 4000 किलोलीटर पानी और फोन-इंटरनेट की सुविधा है। वे अपने और स्वजनों के लिए वाषिक 34 घरेलू हवाई यात्राओं, प्रथम श्रेणी ट्रेन यात्रा और निर्वाचन क्षेत्रों के भीतर सड़क यात्रा के लिए प्रति किलोमीटर की दर से अतिरिक्त भुगतान होता है।


    ब्रिटेन की व्यवस्था अनुकरणीय

    ब्रिटेन में सांसदों का वेतन और पेंशन निर्धारित करने के लिए एक आयोग का गठन होता है। आयोग को स्थायी रूप से आदेश है कि सांसदों को वेतन और सुविधाएं इतनी न दी जाएं, जिससे लोग उसे अपना करियर बनाने का प्रयास करें और न ही इतना कम हो, जिससे उनके कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुंचे। इसीलिए सांसदों का वेतन-भत्ता निर्धारित करते समय आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखा जाए। आयोग की अनुशंसाओं पर वहां का हाउस आफ कामन्स विचार करता है।


    पारदर्शी निकाय की अपेक्षा

    देश में राजनीतिक सुधारों के लिए काम करने वाले संगठन एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की मांग है कि विधायकों के वेतन-भत्तों के निर्धारण और उसकी नियमित समीक्षा के लिए कोई स्वतंत्र और पारदर्शी निकाय बनाया जाना चाहिए। उसका कहना है कि जनता को दो जून की रोटी के लिए दिन-रात पसीना बहाना पड़ता है और सांसद-विधायक अपना वेतन-भत्ता बढ़ाने के लिए स्वयं ही विधेयक पास कर लेते हैं।



    विधायक निधि से लोकप्रियता

    विकास कार्यों (सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य आदि) के लिए विधायकों को वार्षिक चार करोड़ रुपये की निधि मिलती है। यह 2022 में तीन करोड़ से बढ़ाई गई। यह निधि कमाई का हिस्सा नहीं है, लेकिन विधायक इसे अपने निर्वाचन क्षेत्र के कार्यों के लिए उपयोग करते हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से उनकी लोकप्रियता बढ़ाता है।


    बिहार में कब-कब हुई विधायकों की वेतन-वृद्धि

    2011, 2014, 2018, 2022, 2025 : चुनाव की घोषणा से पहले राज्य व उप मंत्रियों के वेतन-भत्ते में वृद्धि की गई। वेतन 50000 से बढ़ाकर 65000 किया गया। क्षेत्रीय भत्ता 55000 से बढ़ाकर 70000 किया गया। दैनिक भत्ता 3000 से बढ़ाकर 3500 और आतिथ्य भत्ता 24000 से बढ़ाकर 29500 किया गया। सरकारी कर्तव्य के लिए यात्रा पर 15 रुपये प्रति किलोमीटर की जगह 25 रुपये प्रति किलोमीटर की दर तय हुई।