Bihar Election 2025: आसान नहीं होगी महागठबंधन में सीट बंटवारे की राह, कांग्रेस की मजबूत सीटों की मांग से राजद हुई बेचैन
बिहार महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर रार मची है। कांग्रेस अपनी मजबूत सीटों पर दावा कर रही है जिससे राजद की बेचैनी बढ़ गई है। कांग्रेस चाहती है कि सीटों का बंटवारा बराबर का हो। वामदलों और अन्य दलों के लिए भी सीटें चाहिए। पिछली बार के प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस इस बार बेहतर सीटें चाहती है जबकि राजद उसे कम सीटें देने पर अड़ा है।

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार जीते राजेश राम (कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष) की सीट पर राजद ने सुरेश पासवान को आगे कर दिया है, यह जानते हुए भी कि यह उसके हिस्से में आने से रही।
महागठबंधन में सीटों के लिए मची रार का यह एकमात्र उदाहरण नहीं। आधी से अधिक सीटों पर यही खींचतान है और इसका महत्वपूर्ण कारण कांग्रेस द्वारा की जा चुकी मजबूत और कमजोर सीटों की पहचान है।
अब तक यह पहचान एकमात्र राजद और माले को थी। समझौते की मेज पर कांग्रेस गच्चा खाती रही। अब उसने साफ कह दिया है कि ऐसा नहीं हो सकता कि सभी मजबूत सीटें एक दल को मिलें और कमजोर दूसरे को।
बंटवारा बराबर का होगा। अंदरखाने राजद की बेचैनी बढ़ी हुई है। कांग्रेस को पर्याप्त संख्या में पसंदीदा सीटें चाहिए।
उसकी पसंद सहयोगी दलों, विशेषकर राजद की पसंद से टकरा रही। इसलिए सीट बंटवारे की जो बात 15 सितंबर से शुरू होने वाली थी, वह नवरात्र तक के लिए टल गई है।
कांग्रेस ने की कमजोर सीटों की पहचान
पिछली बार महागठबंधन में सबसे खराब प्रदर्शन कांग्रेस का रहा था। उसका कारण वे 43 कमजोर सीटें थीं, जिन्हें कांग्रेस अब जाकर पहचान पाई है।
राजद के लिए वह पिछली बार लड़ी गई उसकी 52 सीटों को कमजोर मानती है, जहां पराजय मिली। संख्या में कमजोर सीटें राजद के पास इसलिए अधिक हैं, क्योंकि पिछली बार कांग्रेस से दोगुने से अधिक सीटों पर उसके प्रत्याशी थे।
कांग्रेस को 50 सीट पर रोकेगी राजद
राजद की उन कमजोर सीटों में एक दर्जन पर इस बार कांग्रेस दावा कर रही। दावे का आधार उन सीटों का सामाजिक समीकरण और मजबूत अभ्यर्थियों की उपलब्धता है। उन सीटों का मोह राजद को भी कम नहीं। पेच स्वाभाविक है।
वामदलों पर विशेष कृपा के साथ नए साथियों (वीआईपी, रालोसपा, झामुमो) के लिए लगभग 30 सीटें चाहिए। ऐसे में पसंद को वरीयता देते हुए इस बार 60 सीटें मिलें तो कांग्रेस को कोई आपत्ति नहीं।
राजद उसे 50 सीटों पर रोकना चाह रहा। इसलिए बात नहीं बन रही। पिछली बार राजद ने अपने हिस्से में ग्रामीण पृष्ठभूमि और मुस्लिम-यादव समीकरण वाली सीटें रखकर कांग्रेस को शहरी परिक्षेत्र की वैसी सीटें थमा दी थीं, जिनपर एनडीए की स्थिति मजबूत थी।
सवर्ण और अति-पिछड़ा वर्ग की सीटों पर कांग्रेस की हालत खराब
सवर्ण और अति-पिछड़ा वर्ग की दमदार उपस्थिति वाली उन सीटों पर कांग्रेस निपट गई। उन कमजोर सीटों में लगभग डेढ़ दर्जन के बदले कांग्रेस उतनी ही संख्या में उन सीटों को मांग रही, जिनमें से 14 पर पिछली बार महागठबंधन पराजित रहा था।
उनमें से 12 सीटें राजद के खाते की हैं। जैसे कि मोहनिया में उसकी प्रत्याशी संगीता कुमारी विजयी रही थीं। संगीता अब भाजपा की हो चुकी हैं। अनुसूचित जाति की बहुलता के कारण कांग्रेस वहां अपनी संभावना देख रही, जबकि राजद अपनी पिछली जीत के आधार पर अड़ा हुआ है।
कांग्रेस की पसंदीदा बनियापुर में पेच भी कुछ ऐसा ही है, जहां पिछली बार राजद विजयी रहा था और वीआइपी निकटतम प्रतिद्वंद्वी।
अच्छी-बुरी सीटें
राजद : 92 सीटें मजबूत। 75 जीती और हारी हुई 17 सीटें। पिछली बार की शेष 52 सीटें कमजोर।
कांग्रेस : 27 सीटें मजबूत। 19 जीती और हारी हुई आठ। पिछली बार की बाकी 43 सीटें कमजोर।
माले : 14 सीटें मजबूत। 12 जीती हुई और हारी हुई दो। पिछली बार की बाकी सात सीटें कमजोर।
भाकपा-माकपा : 03-03 सीटें मजबूत। दोनों की दो-दो जीती हुई और एक-एक हारी हुई सीट।
पहचान का पैमाना
जिनपर विजयी रहे और जहां पांच हजार से कम मतों से हार मिली, वे मजबूत सीटें। जहां पांच हजार से अधिक मतों से हार मिली, वे कमजोर सीटें। इनमें वैसी सीटें भी, जहां महागठबंधन को जीत एनडीए के वोटों के विभाजन के कारण मिली।
पिछली बार की हिस्सेदारी
2020 में महागठबंधन में राजद 144, कांग्रेस 70, माले 19, भाकपा छह और माकपा चार सीटों पर लड़ी थी। तब वीआईपी एनडीए में थी और उसके 11 में से चार प्रत्याशी सफल रहे थे।
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