बिहार चुनाव: चुनावी मौसम में नेताओं के बोल पर है सबकी नजर: एक गलत शब्द पड़ सकता है भारी
बिहार में चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद नेताओं को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। आरोप-प्रत्यारोप महंगा पड़ सकता है खासकर दल बदलने वालों को। चुनावी सभाओं में मर्यादा भंग होने और जुबान फिसलने की आशंका है जैसे शराबबंदी पर। गलत बयानबाजी पर चुनाव आयोग सख्त कार्रवाई कर सकता है।

दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार में चुनाव आचार संहिता लागू है। अगर माननीयों की अब जुबान फिसली तो लेने के देने पड़ जाएंगे। इस मामले में माननीयों को एक-दूसरे के विरुद्ध बिना साक्ष्य के आरोप-प्रत्यारोप मढ़ना, महंगा पड़ सकता है। यह उन नेताओं पर भी लागू होगा जो एक दल से फिसल कर दूसरे-तीसरे दल में चले जा रहे हैं। यहां तक ठीक है।
अगर बदले हुए दल में पुराने दल की तरह जुबान चली तो लेने के देने पड़ जाएंगे। खतरा यह है कि कहीं भाषण देने के जोश में मंच पर यह न भूल जाएं कि अभी किसके बारे में क्या कहना है। चुनाव आयोग द्वारा तिथियों की घोषणा से पहले नेताओं द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ खूब आरोप लगाये जा रहे थे, लेकिन जिस दिन चुनाव आचार संहिता लागू हुई है उसी दिन से नेताओं की जुबान पर बंदिश लग गया है। किंतु आगे क्या गारंटी है कि चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं की जुबान नहीं फिसले और आरोपों की सीमा न लांने?
अक्सर होता यह है कि चुनावी सभाओं में भाषण के दौरान नेता मर्यादा लांघ जाते हैं, जब वो भाषण के जोश में होते हैं। खतरा यह है कि मंच पर मर्यादा न भूल जाएं कि अभी किसके बारे में क्या कहना है। जुबान फिसलने की कई वजहें हैं। मसलन, जनहित से जुड़े मुद्दे। शराबबंदी, भ्रष्टाचार, अपराध और दब-बदल जैसे मुद्दों पर भाषण के क्रम में कई नेताओं की जुबान फिसले हैं।
नीतीश कुमार का एक और प्रिय विषय है-शराबबंदी। लेकिन, कई नेताओं के पास शराबबंदी के बारे में मौलिक चिंतन है। कुछ नेताओं ने कई बार कहा भी है-''दारू कभी-कभी दवा के रूप में पेश की जाती है। थोड़ा कम शराब पीना काम करने वाले श्रमिकों के लिए संजीवनी की तरह है।
शराबबंदी कानून सिर्फ गरीब, दलित, पिछड़ों और आदिवासियों को प्रताड़ित करने के लिए बना है। इसी तरह दलबदल करने वाले नेताओं की कई बार जुबान फिसल जाती है। जबकि उन नेताओं को इस चुनाव में भी संभलकर बोलना होगा।
गलत या भ्रामक बयानबाजी पर दर्ज हो सकता है एफआइआर
चुनाव आयोग के पास चुनाव आचार संहिता (मोडल कोड आफ कंडक्ट-एमसीसी) लागू होने के दौरान नेताओं की गलत या भ्रामक बयानबाज़ी पर सख्त कार्रवाई करने की शक्ति होती है। चुनाव आयोग ऐसे मामलों में संबंधित नेताओं को नोटिस जारी कर सकता है और नेता से स्पष्टीकरण मांग सकता है। चेतावनी दे सकता है या चुनाव प्रचार से कुछ समय के लिए रोक सकता है।
गंभीर मामलों में एफआइआर दर्ज कराने की सिफारिश कर सकता है। लेकिन अगर कोई नेता संसद/विधानसभा के बाहर राजनीतिक भाषणों में झूठ बोलता है और वह सीधे चुनाव नियमों का उल्लंघन नहीं करता, तो चुनाव आयोग की शक्ति सीमित होती है। उस स्थिति में मामला अदालत या संबंधित कानून (जैसे मानहानि, आइपीसी की धाराएं आदि) के तहत आता है।
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