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    Bihar Election 2025: अंधेरे से उजाले की ओर बिहार की स्वास्थ्य सेवा, गांव-गांव पहुंच रही चिकित्सा सुविधाएं

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 08:40 AM (IST)

    बिहार की चिकित्सा व्यवस्था में सुधार हो रहा है। सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को गांवों तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है। डिजिटल हेल्थ मिशन मुफ्त दवाएं और डॉक्टरों की उपलब्धता से स्थिति बदल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के पहुंचने से लोगों को समय और पैसे की बचत हो रही है और उन्हें बेहतर इलाज मिल रहा है।

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    अंधेरे से उजाले की ओर बिहार की स्वास्थ्य सेवा

    राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार की चिकित्सा व्यवस्था हमेशा से चर्चा का विषय रही है। नीति आयोग की रिपोर्ट हो या फिर विरोधी दलों की राजनीति, चिकित्सा व्यवस्था पर हमेशा सवाल खड़े होते रहे हैं। यहां लोगों ने वह दौर भी देखा है जब अस्पतालों में डाक्टर नहीं होते थे। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक में सुविधाएं नगण्य थीं।

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    मेडिकल कॉलेज में टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन की तस्वीरें अखबार के पन्नों में प्रमुखता पाती थीं। परंतु, समय के साथ जब शासन बदला और सरकार ने विकास के अपने एजेंडे में स्वास्थ्य सेवा को केंद्र में रखा तो बदलाव दिखने लगा। अब चिकित्सा सुविधाएं धीरे-धीरे गांव-गांव तक पहुंच रही हैं।

    डिजिटल हेल्थ मिशन, और तकनीक आधारित ऑनलाइन डॉक्टरी परामर्श, अस्पतालों में मुफ्त दवाएं, डॉक्टरों की मौजूदगी, नए बनते अस्पताल और स्वास्थ्य सुविधाओं की ऑनलाइन मॉनिटरिंग से तस्वीर बदलनी शुरू हो गई। बिहार की चिकित्सा सेवा पर प्रधान संवाददाता सुनील राज की रिपोर्ट।

    दो दशक पूर्व गांव का व्यक्ति अपनी या परिवार के किसी सदस्य की मामूली सी मामूली बीमारी के उपचार लिए भी शहर भागता था। समय, पैसा और मेहनत तीनों खर्च होते थे।

    इसके बावजूद सुविधाएं नहीं मिलती थीं। छोटी से छोटी जांच के लिए महंगे जांच केंद्रों, पैथोलॉजी लैब में मोटी रकम खर्च करना, महंगी दवाओं का बोझ उठाना, गांव से अस्पताल तक लाने में मोटी रकम खर्च करना नियति बन थी।

    समय के साथ बदलती गई व्यवस्था

    बिहार में जब बदलाव शुरू हुआ तो राज्य और केंद्र की सरकारों ने अपनी नीतियों में स्वास्थ्य सेवा और आमजन के हित को प्राथमिकता दी।

    मेडिकल कालेजों से लेकर ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बजट में बड़ी रकम के प्रविधान किए गए। नागरिक का डिजिटल हेल्थ आईडी की योजना लागू हुई।

    अस्पतालों में छह सौ से अधिक तरह की दवाएं मरीजों के लिए मुफ्त उपलब्ध कराने की नीति लागू हुई। एक्स-रे, स्कैनिंग, सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड, पैथोलाजी जांच जैसी अनेक सुविधाओं को नि:शुल्क कर दिया गया।

    जांच की सुविधाओं का विस्तार

    आज राज्य के सभी जिला अस्पताल, रेफरल अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पीपीपी मोड में 255 और इन हाउस मोड में 174 संस्थानों में एक्स-रे की सुविधा उपलब्ध है।

    जबकि मेडिकल कालेज अस्पतालों में 161, जिला अस्पताल में 148, अनुमंडलीय अस्पतालों में 91, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं रेफरल अस्पताल में 75, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 66, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 66, जबकि वेलनेस सेंटरों पर 14 तरह की जांच सुविधाएं दी जा रही हैं।

    अस्पतालों को नए, आधुनिक उपकरणों से किया गया लैस

    मरीजों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों के चक्कर न लगाने पड़े, इसके लिए अस्पतालों को आधुनिक उपकरणों से लैस किया गया। मरीजों को अस्पताल तक लाने के लिए एंबुलेंस के बेड़ों में वाहनों की संख्या बढ़ाई गई। आज 102 एंबुलेंस के बेड़े में 1536 एंबुलेंस शामिल हैं। इसके अलावा 50 शव वाहन भी हैं।

    इस वर्ष और 292 एंबुलेंस खरीदने की सरकार की योजना है। कोविड के बाद मोबाइल एप और टेली मेडिसीन से हुए बड़े बदलावकोविड काल शुरू होने के बाद राज्य की स्वास्थ्य सेवा में व्यापक बदलाव का काम शुरू हुआ।

    ई-संजीवनी सेवा की शुरुआत हुई। यह सेवा अब ग्रामीण बिहार में नई आशा बनकर उभरी है। गांव के कॉमन सर्विस सेंटर या पंचायत भवन में बैठ लोग वीडियो कॉल के जरिए डॉक्टर से सीधे जुड़कर परामर्श ले सकते हैं।

    कई जिलों में चलित अस्पताल की तरह वैन उपलब्ध कराई गई हैं, जिनमें डाक्टर, नर्स और दवाएं रहती हैं। ये वैन गांव-गांव जाती हैं और मरीजों का उपचार होता है।

    मेडिकल कॉलेज अस्पतालों की संख्या बढ़ाने पर जोर

    आज सरकार का सर्वाधिक फोकस प्रत्येक जिले में एक-एक मेडिकल कॉलेज अस्पताल खोलने पर है। वर्तमान में प्रदेश में 12 सरकारी, जबकि आठ निजी मेडिकल कालेज हैं।

    अगले कुछ वर्षो में यह संख्या बढ़कर 22 हो जाएगी। इसी तरह एमबीबीएस सीटें की जो संख्या आज 2870 है, वह बढ़कर 5220 हो जाएगी।

    बेड की संख्या 9900 से बढ़कर 28884 हो जाएगी। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार से हुए लाभ समय और पैसे की बचत। सही दवा और उपचार की सलाह। विशेषज्ञों तक आसान पहुंच।

    ग्रामीण क्षेत्रों में हुए प्रमुख सुधार

    गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं का पहुंचना सिर्फ बीमारी के उपचार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता को भी बदल रहा है। अब लोग छोटी बीमारी के लिए झोलाछाप डॉक्टरों पर निर्भर नहीं।

    गर्भवती महिलाओं और बच्चों को बेहतर देखभाल मिल रही है। कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ी है। ऑनलाइन परामर्श ने ग्रामीण और शहरी मरीज के बीच का अंतर कम किया है।

    आम लोगों की राय

    बिहार के गांवों तक चिकित्सा सेवाओं का पहुंचना एक सकारात्मक बदलाव है। आनलाइन डाक्टरी परामर्श ने मरीजों को समय और पैसे दोनों की बचत दी है।

    हालांकि, चुनौतियां अब भी मौजूद हैं, लेकिन अगर सरकार, समाज और तकनीक तीनों मिलकर काम करें तो आने वाले समय में बिहार का ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा देश में मिसाल बन सकता है।

    चुनौतियां भी कम नहीं

    भविष्य का सपना यही है कि बिहार का कोई भी ग्रामीण मरीज सिर्फ इसलिए अपनी जान न गंवाए कि उसे समय पर उपचार नहीं मिला, और यही बदलाव धीरे-धीरे जमीनी हकीकत में परिणत होता दिख रहा है।

    नए अस्पतालों का निर्माण हो रहा है। मुफ्त दवाओं की सुविधा के तहत नई-नई और जीवन रक्षक दवाएं आवश्यक दवा सूची में शामिल हो रही हैं। हालांकि चुनौतियां कम नहीं।

    चिकित्सकों की कमी और अनुपस्थिति, आधुनिक उपकरणों की कमी, उपचार के प्रति उदासीनता जैसी शिकायतें अब आती हैं। सरकार इन शिकायतों के प्रति गंभीर है।

    डाक्टर और नर्सों के साथ अन्य पारा मेडिकल स्टाफ की कमियों की दूर करने के लिए नियमित और संविदा आधारित नियुक्तियां हो रही हैं।

    अनेक योजनाओं का सूत्रपात किया गया, जिससे गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों को बड़ी राहत मिली है।

    कुछ उपलब्धियां

    संस्थागत प्रसव की दर 2015-16 की अपेक्षाकृत आज 63.8 से बढ़कर 89.02 प्रतिशत तक पहुंच गई है।

    त्रैमास में प्रसव पूर्व जांच कराने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या 2015-16 की अपेक्षा 34.6 से बढ़कर 61.32 प्रतिशत हो गई है।

    नवजात शिशु मृत्यु दर एसआरएस 2008 और 2020 के अनुसार 75 थी, जो अब घटकर 21 हो गई है।

    कुल प्रजनन दर 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार 3.4 थी, जो घटकर 3 पर आ गई है। - गर्भ निरोधक प्रचलन दर 23.2 थी, जो आज बढ़कर 44.7 हो गई है।

    2005 में पूर्ण टीकाकरण की आच्छादन दर 18 प्रतिशत थी, जो आज 93 प्रतिशत तक पहुंच गई है।