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    Bihar Chunav: बिहार में 15 साल में चार गुना हुए राजनीतिक दल, 94 प्रतिशत का नहीं खुला खाता

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 07:18 PM (IST)

    बिहार में चुनाव दर चुनाव राजनीतिक दलों की संख्या में वृद्धि हो रही है परन्तु सफलता कुछ ही दलों को मिल पा रही है। पिछले 15 वर्षों में दलों की संख्या लगभग चार गुना हो गई है लेकिन 94% दल खाली हाथ रह जाते हैं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में 211 दलों ने भाग लिया जिनमें से 199 को कोई सीट नहीं मिली।

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    बिहार में 15 साल में चार गुना हुए राजनीतिक दल, 94 प्रतिशत का नहीं खुला खाता

    कुमार रजत, पटना। बिहार में चुनाव दर चुनाव राजनीतिक दलों की संख्या तो बढ़ रही मगर कामयाबी का स्वाद महज कुछ ही चख पा रहे। पिछले 15 सालों में राजनीतिक दलों की संख्या करीब चार गुना हो गई है, मगर इनमें 94 प्रतिशत दलों की झोली खाली ही रह जा रही।

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    छोटे और गुमनाम दलों की बात कौन करे, दूसरे राज्यों के प्रमुख दल भी बिहार में अपना खाता नहीं खोल पा रहे हैं। चुनाव दर चुनाव इनका वोट बैंक भी सिमटता जा रहा है।

    राज्य में अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में महज 58 राजनीतिक दलाें ने अपनी किस्मत आजमाई थी जिनमें 46 दलों को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। राजनीतिक दलों की संख्या 2010 में बढ़कर 90 और 2015 में बढ़कर 156 तक पहुंच गई।

    वर्ष 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 211 दलों ने चुनावी महासमर में अपनी किस्मत आजमाई थी मगर इनमें से 199 दलों को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। तीन दर्जन से अधिक राजनीतिक दल ऐसे रहे जिन्हें कुल एक हजार वोट भी पूरे चुनाव में नहीं मिले।

    पिछले चुनाव (2020) में रालोसपा और जन अधिकार पार्टी ऐसे दो दल रहे जिन्हें एक प्रतिशत से अधिक वोट तो मिला मगर सीट नहीं मिली। द प्लुरल्स पार्टी भी जोर-शोर से लांच हुई और 102 सीटों पर किस्मत आजमाई मगर महज 0.3 प्रतिशत वोट मिले। कोई उम्मीदवार दूसरे स्थान पर भी नहीं आ सका।

    पड़ोसी राज्यों के दलों का जलवा हुआ फीका:

    बिहार चुनावों में पड़ोसी राज्यों उत्तरप्रदेश से सपा एवं बसपा, झारखंड से झामुमो जैसे दल भी लगातार किस्मत आजमाते रहे हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र की शिवसेना और राकांपा भी चुनाव लड़ती है, मगर इनका प्रदर्शन भी चुनाव दर चुनाव फीका हो रहा है। पिछले चार चुनावों में सपा को सिर्फ एक बार 2005 के चुनाव में दो सीटों पर जीत मिली।

    झामुमो को 2010 के चुनाव में एक जीत नसीब हुई। राकांपा को 2005 में एक सीट मिली मगर इसके बाद झोली लगातार खाली चल रही। बिहार में बसपा के लिए 2005 का चुनाव सबसे अच्छा था जिसमें चार विधायकों ने हाथी की सवारी की थी। इसके बाद बसपा ने 2010 में 239 जबकि 2015 में 228 सीटों पर चुनाव लड़ा मगर एक भी सीट नसीब नहीं हुई। शिवसेना जैसे दल तो दूसरा-तीसरा स्थान भी हासिल नहीं कर पा रहे।

    गठबंधन में AIMIM और BSP को मिली जीत:

    पिछले विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की तत्कालीन पार्टी रालोसपा, ओवैसी की एआइएमआइएम और बसपा समेत पांच दलों ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा तो छह सीटों पर जीत मिली। इसमें ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम बहुल पांच सीटें जीतकर चौंकाया।

    इसके अलावा, बसपा को चैनपुर की एक सीट मिली। इसके अलावा, रालोसपा 99 सीटों पर चुनाव लड़कर भी खाली हाथ रही। उसे महज 1.8 प्रतिशत वोट मिले।

    वर्ष राजनीतिक दल शून्य सीट वाले दल
    2005 (फरवरी) 65 54
    2005 (अक्टूबर) 58 46
    2010 90 83
    2015 156 147
    2020 211 199

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