Bihar Assembly Election 2025: एकदम झक्कास...विवाद, रूठना-मनाना, बगावत, अफरातफरी और नामांकन
Bihar Assembly Election 2025:बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन में राजनीतिक महत्वाकांक्षा और टिकट के लिए मारामारी दिखी। गठबंधन में रूठने-मनाने का दौर चला और सिंबल बंटने के बाद बगावत हुई। कई प्रत्याशियों ने अफरातफरी में नामांकन किया। वीआइपी को राजद की गढ़ वाली दो सीटें मिलीं, जबकि भाजपा में बगावत देखने को मिली।

इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है।
प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। Bihar Assembly Election 2025: राजनीतिक महत्वाकांक्षा किस तरह से बढ़ती जा रही है, यह बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन तक सामने आ गया। पार्टी का सिंबल लेने के लिए पहले मारामारी।
गठबंधन में रहने और नहीं रहने पर रूठने-मनाने का दौर। सिंबल बंटने के साथ बगावत के स्वर। इसके बाद सिंबल लेकर दस्तावेज तैयार कराने और अफरातफरी के बीच नामांकन।
कई के दस्तावेज भी पूरा नहीं हो सके। अंतिम-अंतिम समय तक नामांकन के लिए लोग समाहरणालय परिसर पहुंचते रहे। हजारों की भीड़ में शामिल कई ने यही कहा, ऐसा टिकट का बंटवारा और नामांकन नहीं देखा था।
एक प्रत्याशी तो दोपहर तीन बजकर दो मिनट पर नामांकन कराने आई, मगर तब तक निर्वाची पदाधिकारी का गेट बंद हो गया। इससे वह नामांकन नहीं कर सकी।
पिछले कई माह से विधानसभा चुनाव को लेकर संभावित प्रत्याशियों ने अपने लिए फील्डिंग लगाई थी। कोई कमजोर नहीं दिखे इसके लिए गायघाट, कुढ़नी से लेकर बोचहां तक मंच पर बवाल हुआ।
इसमें जो भारी पड़े उनके नाम सिंबल हाथ आया। गायघाट इसका उदाहरण रहा। वहीं रूठने-मनाने का दौर जिला से लेकर राजधानी तक चला। इसमें किसी को फायदा हुआ तो कई चूक गए।
सबसे बड़ा फायदा लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट कटने पर कांग्रेस में गए अजय निषाद को हुआ। उनकी भाजपा वापसी के साथ पत्नी को औराई से सिंबल मिल गया, मगर इससे सीटिंग विधायक रामसूरत राय रूठ गए। कुछ यही कहानी मुजफ्फरपुर सीट पर रही।
पूर्व मंत्री सुरेश कुमार शर्मा की जगह पूर्व जिलाध्यक्ष रंजन कुमार को भाजपा ने टिकट दिया, मगर यहां बाहर नहीं आई। पूर्व मंत्री ने खुद को पार्टी के साथ जाने की बात कही। इससे पार्टी को राहत मिली।
दूसरी ओर पारू में पार्टी विधायक अशोक कुमार सिंह को नहीं मना सकी। उन्होंने बगावत कर दी। निर्दलीय मैदान में उतरे हैं। इससे एनडीए का समीकरण यहां प्रभावित होने की संभावना है।
कुढ़नी से भी पार्टी के नेता धर्मेंद्र कुमार ने निर्दलीय नामांकन किया है। वहीं बोचहां सीट पर रूठने-मनाने के खेल में बोचहां की बेबी कुमारी को भी लाभ मिला।
अंतिम समय में उन्हें लोजपा से सिंबल के लिए काल आया। गुरुवार देर रात सिंबल लेकर लौंटी और नामांकन किया। लोजपा ने वर्ष 2015 में उनसे सिंबल वापस ले लिया था।
तब निर्दलीय लड़कर वह जीत गई थीं। अब फिर उसी पार्टी से ही मैदान में हैं। आइएनडीआइए में रूठने-मनाने के खेल के कारण ही नामांकन की अंतिम तिथि पर दो सीटों से प्रत्याशियों को मौका मिला।
वीआइपी सुप्रीमो मुकेश सहनी अचानक रूठ गए। देर रात जिले की दो सीट वीआइपी को मिली। बरूराज से राकेश राय को सिंबल मिला। राजद की यह परंपरागत सीट है।
राजद की ओर से मदन केसरी की उम्मीदवारी के बीच राकेश निर्दलीय उतरने की तैयारी में थे। सीट वीआइपी के खाते में आते ही राकेश ने बाजी मार ली।
दूसरी ओर औराई से माले की सीट छिन गई और मनाने में वीआइपी को मिल गई। इससे माले के पूर्व प्रत्याशी रूठ गए। वह आइएनडीआइए गठबंधन से बाहर जाकर मैदान में उतर गए हैं।
बगावत के सुर राजद और कांग्रेस में पहले तो उठे, मगर सिंबल के बाद यह शांत ही रहा। कांग्रेस से संभावित उम्मीदवार गौरव वर्मा, मयंक कुमार मुन्ना ने नामांकन नहीं किया। राजद में भी बगावत की आशंका कई सीटों पर थी, मगर सिंबल वितरण के बाद यहां भी शांति रही।
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