बिहार चुनावः पहले फेज की पांच सीटों पर महागठबंधन, दूसरे चरण में नौ सीटों पर NDA की परीक्षा
बिहार विधानसभा की सबसे अधिक 14 सीटें पटना जिले में हैं। पहले चरण की पांच सीटों पर महागठबंधन जबकि दूसरे चरण की नौ सीटों पर एनडीए की परीक्षा होगी। राजधानी की शहरी सीटों पर भाजपा-जदयू मजबूत दिखती है ग्रामीण इलाकों की अधिसंख्य सीटों पर महागठबंधन मजबूत चुनौती दे रहा है।
श्रवण कुमार, पटना। बिहार विधानसभा की सबसे अधिक 14 सीटें पटना जिले में हैं। पहले चरण की पांच सीटों पर महागठबंधन जबकि दूसरे चरण की नौ सीटों पर एनडीए की परीक्षा होगी। राजधानी से सटी शहरी सीटों पर भाजपा-जदयू मजबूत दिखती है, जबकि ग्रामीण इलाकों की अधिसंख्य सीटों पर महागठबंधन मजबूत चुनौती दे रहा है। पिछली बार जदयू-राजद एक साथ थे जबकि भाजपा अकेले, बावजूद जिले की आधी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। तब साथ चुनाव लड़ रहे जदयू-राजद-कांग्रेस के खाते मे छह सीटें गई थींं। इसमें राजद को चार जबकि कांग्रेस व जदयू को एक-एक सीट मिली थी। मोकामा की सीट पर निर्दलाय प्रत्याशी के रूप में अनंत सिंह ने जीत दर्ज की थी।
255 प्रत्याशी आजमा रहे किस्मत
पटना जिले के 14 विधानसभा क्षेत्रों से 255 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। संसदीय क्षेत्र के लिहाज से पाटलिपुत्र और पटना साहिब के साथ ही मुंगेर का हिस्सा भी पटना जिले से जुड़ा हुआ है। दानापुर, मनेर, फुलवारी शरीफ, मसौढ़ी, पालीगंज और बिक्रम विधानसभा क्षेत्र पाटलिपुत्र का हिस्सा हैं। वहीं बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब और फतुहा पटना साहिब लोकसभा के अंतर्गत आते हैं। मोकामा और बाढ़ विधानसभा मुंगेर संसदीय क्षेत्र में हैं। तीनों ही संसदीय क्षेत्र में एनडीए का कब्जा है।
वामदलों के साथ नए चेहरों को तवज्जो
पटना में भाजपा के बढ़ रहे जनाधार को रोकने के लिए महागठबंधन ने इस बार वामदलों को खास तवज्जो दी है। पटना के करीब दीघा और फुलवारीशरीफ सीट वामदलों को दी गई है। एनडीए भी महागठबंधन से मुकाबला करने के लिए फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है। पुराने धुरंधरों के साथ ही जीत की रणनीति के तहत दूसरे दल से आए प्रत्याशियों को भी तरजीह दी गई है। जदयू ने पिछले चुनाव में राजद के टिकट पर विधायक बने जयवद्र्धन यादव को पालीगंज से टिकट थमाया है, तो भाजपा ने पिछली बार लोजपा से लड़े सत्येंद्र कुमार को फतुहा से। राजीव लोचन, निखिल आनंद और अतुल जैसे नए चेहरे पर भी एनडीए ने दाव खेला है।
पटना में सीधी लड़ाई
14 विधानसभा सीटें हैं पटना जिले में
255 प्रत्याशी आजमा रहे हैं किस्मत
2015 के चुनाव का परिणाम
07 सीटें जीती थीं भाजपा ने
04 सीटें मिली थीं राजद को
01 सीट कांग्रेस के दामन में
01 सीट जदयू के कब्जे में
01 सीट पर निर्दलीय को जीत
मोकामा में आर-पार की लड़ाई में जाति का गणित
मोकामा में यूं तो आठ प्रत्याशी हैं, मगर मुख्य मुकाबला राजद के अनंत सिंह और जदयू के राजीव लोचन नारायण सिंह के बीच ही दिख रहा है। लोजपा ने यहां से सुरेश निषाद को प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश है, मगर ज्यादा असर नहीं दिखा पा रही। जीत की हैट्रिक लगा चुके अनंत सिंह ने पिछली बार निर्दलीय चुनाव जीता था। इस बार लालटेन के साथ हैं, मगर इससे जातीय समीकरण प्रभावित होता दिख रहा। राजद का दामन थामने के बाद उन्हें जाति विशेष की नाराजगी का खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। एनडीए ने अनंत के वोट बैंक में सेंधमारी के लिए ही उनके स्वजातीय प्रत्याशी राजीव लोचन को मैदान में उतारा है।
बाढ़ विधानसभा में है सीधा मुकाबला
बाढ़ विधानसभा क्षेत्र से जीत की हैट्रिक लगा चुके भाजपा के ज्ञानेंद्र कुमार सिंह को महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी सत्येंद्र बहादुर चुनौती दे रहे हैं। यहां से कुल 18 प्रत्याशी भाग्य आजमा रहे हैं। 2015 के चुनाव में ज्ञानेंद्र ने जदयू प्रत्याशी मनोज कुमार को महज 8359 वोटों से हराया था। इस बार जदयू और भाजपा साथ है। ऐसे में महागठबंधन की ओर से कांग्रेस को सीट दी गई है। इस नई जमीन पर कांग्रेस के उम्मीदवार की कड़ी परीक्षा होगी।
पालीगंज में बागी उम्मीदवारों की परीक्षा
पालीगंज विधानसभा सीट पर कब्जा जमाने के लिए जदयू ने जयवद्र्धन यादव को मैदान में उतारा है। तब राजद में रहे जयवद्र्धन ने 2015 के चुनाव में भाजपा के रामजनम शर्मा को 24,453 वोटों से पराजित किया था। इससे पहले 2010 में भाजपा प्रत्याशी उषा विद्यार्थी इस क्षेत्र की विधायक बनीं थी। इस चुनाव में पालीगंज सीट एनडीए की ओर से जदयू और महागठबंधन की ओर से भाकपा माले के खाते में है। सीटों की अदला-बदली के साथ ही समीकरण भी बदल गए हैं। राजद के टिकट पर विधायक बने जयवद्र्धन अब जदयू प्रत्याशी हैं और कभी भाजपा विधायक रहीं उषा विद्यार्थी लोजपा के टिकट पर मैदान में हैं। माले प्रत्याशी के रूप में संदीप सौरभ ताल ठोक रहे हैं। पालीगंज से इन तीन प्रत्याशियों के अलावा भी 22 प्रत्याशी मैदान में हैं।
बिक्रम में दिख रही त्रिकोणीय लड़ाई
बिक्रम विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने अतुल कुमार के रूप में नए चेहरे को मैदान में उतार कर प्रयोग किया है। भाजपा से बागी होकर ताल ठोकने वाले अनिल कुमार उनको चुनौती दे रहे हैं। इन सबके बीच महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ सौरभ को फिर फायदा मिल सकता है। 2015 के चुनाव में सिद्धार्थ ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में खड़े अनिल को 44,311 वोटों से हराया था। उससे पहले 2010 में अनिल लोजपा से खड़े सिद्धार्थ को पराजित कर विधायक रह चुके हैं। चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे 15 प्रत्याशियों के बीच बिक्रम में त्रिकोणीय संघर्ष के आसार नजर आने लगे हैं।
मसौढ़ी में पुराने चेहरों के बीच नई लड़ाई
मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र से 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। सीधा मुकाबला राजद और जदयू के बीच दिख रहा है। राजद ने 2015 के चुनाव में जीत हासिल करने वाली रेखा देवी पर फिर से दांव खेला है, तो जदयू ने पिछली बार हम से खड़ी हुई नूतन पासवान को मैदान में उतारा है। रेखा से 39,186 वोटों से पराजित हुई नूतन पासवान इस बार कड़ी टक्कर दे रही हैं। हालांकि लोजपा यहां भी प्रत्याशी खड़ा कर मुकाबले को त्रिकोणीय करने की मशक्कत कर रही है।
बख्तियारपुर में कांटे की टक्कर
बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र में मुकाबला कांटे का है। वर्तमान विधायक रणविजय सिंह के सामने 2010 में विधायक रहे अनिरूद्ध कुमार ताल ठोक रहे हैं। इन दोनों के अलावा एक दर्जन अन्य प्रत्याशी भी मैदान में हैं। 2015 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रणविजय, राजद के अनिरूद्ध को 7902 वोटों से हराकर विधायक बने थे, जबकि 2010 में अनिरूद्ध ने भाजपा के विनोद यादव को 14,745 वोटों से हराकर जीत का ताज पहना था।
बदहाल स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था
दीघा में परिसीमन के बाद नई विधानसभा सीट बनी दीघा में अब तक भाजपा का ही झंडा फहरता रहा है। पिछली बार यहां जदयू-भाजपा की टक्कर थी जिसमें भाजपा के संजीव चौरसिया ने जदयू के राजीव रंजन प्रसाद को शिकस्त दी थी। इस बार भाजपा की ओर से संजीव चौरसिया हैट्रिक की राह पर है। महागठबंधन ने उनका रास्ता रोकने के लिए भाकपा माले प्रत्याशी शशि यादव को उतारा है। देखना होगा कि शहरी सीट पर भाकपा माले कितना जादू चला पाती है। फिलहाल मुकाबला सीधा दिख रहा। इसके अलावा 16 अन्य प्रत्याशी भी चुनावी मैदान में हैं।
बांकीपुर में युवाओं की टक्कर
भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली बांकीपुर सीट से नितिन नवीन हैट्रिक लगा चुके हैं। वह चौथी बार दावेदारी कर रहे। उन्हें दो युवा उम्मीदवारों से मुख्य रूप से चुनौती मिल रही है। कांग्रेस ने फिल्म स्टार और पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को मैदान में उतारा है। कायस्थ बहुल इस सीट पर दोनों ही मुख्य गठबंधनों के उम्मीदवार कायस्थ जाति से हैं। लड़ाई आमने-सामने की मानी जा रही। इसके अलावा प्लूरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी भी निर्दलीय मैदान में हैं।
कुम्हरार में भाजपा की राजद से सीधी रार
भाजपा के सबसे पुराने गढ़ कुम्हरार (पहले पटना मध्य) विधानसभा क्षेत्र में भी सीधी लड़ाई दिख रही। 1990 से 2000 तक इस सीट पर भाजपा के सुशील कुमार मोदी ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2005 से भाजपा के अरुण कुमार सिन्हा का कब्जा रहा है। इस चुनाव में भी भाजपा ने पुराने योद्धा अरुण कुमार सिन्हा पर ही दांव खेला है। महागठबंधन की ओर से यह सीट कांग्रेस की होती थी मगर इस बार राजद के धर्मेंद्र कुमार मैदान में हैं। इन प्रत्याशियों के अलावा 22 अन्य प्रत्याशी भी ताल ठोक रहे हैं।
पटना साहिब में नई चुनौती से राह आसान
पटना साहिब विधानसभा से भाजपा के नंद किशोर यादव छह बार जीत चुके हैं। पिछले चुनाव में उन्हें राजद के संतोष मेहता टक्कर दी थी। इसबार कांग्रेस ने प्रवीण सिंह को उतारा है। दोनों प्रत्याशियों के अलावा दस अन्य उम्मीदवार यहां से भाग्य आजमा रहे हैं।
फतुहा में राजद-भाजपा के बीच मुकाबला
राजधानी का औद्योगिक इलाका फतुहा 2010 से ही राजद के कब्जे में है। राजद ने इस बार भी अपने विधायक रामानंद यादव को ही मैदान में उतारा है। भाजपा ने 2015 में लोजपा से चुनाव लडऩे वाले सत्येंद्र कुमार सिंह को मैदान में उतारा है। इस बार जदयू के एनडीए में आने के कारण बदले समीकरण में राजद के लिए राह आसान नहीं होगी। राजद-भाजपा की टक्कर के बीच 17 अन्य प्रत्याशी भी फतुहा के मैदान में हें।
दानापुर में दिलचस्प दिख रहा मुकाबला
दानापुर विधानसभा से हैट्रिक लगा चुकी भाजपा की आशा देवी को राजद के रीतलाल राय से टक्कर मिल रही है। हालांकि 2010 के चुनाव में भी रीतलाल और आशा के बीच सियासी लड़ाई हुई थी जिसमें आशा जीत गई थीं। उस समय रीतलाल निर्दलीय थे जबकि इस बार राजद की लालटेन थामे हुए हैं। यादव बहुल इस इलाके में भाजपा के लिए सीट बचाना बड़ी चुनौती होगी।
मनेर में राजद के गढ़ में भाजपा की चुनौती
मनेर विधानसभा क्षेत्र पर 2005 से लगातार राजद का कब्जा रहा है। 2005 में यहां से राजद के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने श्रीकांत निराला 2010 में जदयू और 2015 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े। हालांकि दोनों ही बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। 2010 से भाई वीरेंद्र लगातार मनेर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस बार भाजपा ने उनसे मुकाबले के लिए नए चेहरे निखिल आनंद को मैदान में उतारा है। श्रीकांत निराला बगावत कर निर्दलीय मैदान में कूद चुके हैं। राजद के इस गढ़ को भेदना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।
फुलवारी में रोचक दिख रही लड़ाई
राजधानी से सटे फुलवारीशरीफ सीट पर मुकाबला दिलचस्प दिख रहा है। 1995 से इस सीट पर लगातार श्याम रजक का कब्जा रहा। 2009 में उनके पार्टी बदलने के बाद हुए उपचुनाव में वे एक बार पराजित हुए। महागठबंधन में यह सीट भाकपा माले को मिलने के कारण श्याम बेटिकट हो गए हैं। अब इस सीट पर मुकाबला माले के गोपाल रविदास और जदयू के अरुण मांझी के बीच है। पटना जिले के सर्वाधिक 26 उम्मीदवार फुलवारीशरीफ सीट से मैदान में हैं।