Alauli Assembly seat: राजद की सीट पर पशुपति पारस ने ठोका दावा, बेटे को सेट करने का कर रहे प्रयास
खगड़िया जिले की अलौली विधानसभा सीट 2025 के चुनावों को लेकर चर्चा में है। रामविलास पासवान जैसे नेताओं ने यहाँ से अपनी राजनीतिक शुरुआत की। 2020 में राजद के रामवृक्ष सदा ने यह सीट जीती। वर्तमान में लोजपा दो गुटों में विभाजित है और दोनों गुटों के साथ-साथ जदयू भी इस सीट पर अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

निर्भय, खगड़िया। अलौली (सुरक्षित) विधानसभा खगड़िया जिले की सर्वाधिक चर्चित सीट बन चुकी है। अलौली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र का गठन 1962 में हुआ था। अलौली विधानसभा हर हमेशा चर्चा में रही है।
यहां से देश के प्रसिद्ध दलित नेता रामविलास पासवान 1969 में संयुक्त समाजवादी पार्टी से कांग्रेस के दिग्गज मिश्री सदा को हराकर पहली बार बिहार विधानसभा पहुंचे थे। मालूम हो कि 1962 और 1967 में मिश्री सदा कांग्रेस से यहां पर परचम लहरा चुके थे।
1972 के विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान को कांग्रेस के मिश्री सदा से हार का सामना करना पड़ा। बाद में रामविलास पासवान केंद्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए। केंद्र सरकार में वे कई बार मंत्री भी रहे।
1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी से रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने कांग्रेस के मिश्री सदा को शिकस्त दी। 1980 में पशुपति कुमार पारस कांग्रेस के मिश्री सदा से चुनाव हार गए। परंतु 1985 में पशुपति कुमार पारस पुन: यहां से विजयी रहे।
1990, 1995, 2000, 2005 (फरवरी और अक्टूबर में हुए चुनाव) में भी पशुपति कुमार पारस ने ही यहां से विभिन्न दलों के उम्मीदवार के रूप में परचम लहराया। 2005 में पारस लोजपा से लड़े। जिसकी स्थापना उनके बड़े भाई रामविलास पासवान ने 28 नवंबर 2000 को थी।
लाेजपा के पशुपति कुमार पारस के रथ को 2010 में जदयू के रामचंद्र सदा ने रोका। फिर 2015 में भी लोजपा उम्मीदवार पशुपति कुमार पारस को राजद के चंदन कुमार से हार का सामना करना पड़ा। 2020 में पारस इसलिए चुनाव नहीं लड़े, क्योंकि 2019 में हाजीपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीत कर सांसद बन चुके थे।
2020 के अलौली विधानसभा चुनाव में राजद के रामवृक्ष सदा ने कड़े मुकाबले में जदयू की साधना देवी को हराया। लोजपा की टिकट से रामचंद्र सदा लड़े और तीसरे स्थान पर रहे।
2020 से 2025 तक राजनीति में बहुत परिवर्तन हुआ है। लोजपा विभक्त हो चुकी है। लोजपा(रामविलास) का नेतृत्व चिराग पासवान कर रहे हैं। पशुपति कुमार पारस राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के सुप्रीमो हैं। रामचंद्र सदा अब जदयू में हैं।
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी महागठबंधन का हिस्सा है, जबकि चिराग पासवान एनडीए से केंद्र में मंत्री हैं। पारस यहां से अपने पुत्र यशराज पासवान को चुनावी मैदान में उतारना चाहते हैं। लेकिन राजद भी जीती हुई सीट को छोड़ना नहीं चाह रही है।
राजद विधायक रामवृक्ष सदा नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के काफी निकट और फायर ब्रांड माने जाते हैं। दूसरी ओर एनडीए में भी इस सीट को लेकर जदयू और लोजपा(रामविलास) में अंदर ही अंदर ‘किचकिच’ है। दोनों की अपनी-अपनी दावेदारी है।
जदयू की साधना देवी 2020 में काफी कम मतों से राजद के रामवृक्ष सदा से हारी थी। रामवृक्ष सदा को 47,183, साधना देवी को 44,410 और लोजपा के रामचंद्र सदा को 26,386 मत प्राप्त हुआ था।
इस आंकड़े पर गौर करें, तो जदयू और लोजपा के बीच मतों का बहुत बड़ा गैप है, परंतु कहीं न कहीं चिराग पासवान के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय भी है। अब देखना होगा कि, एनडीए और महागठबंधन से यह सीट किस राजनीतिक दल के खाते में जाती हैं।
इधर राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के खगड़िया जिलाध्यक्ष शिवराज यादव ने कहा है कि, अलौली से हर हाल में पार्टी लड़ेगी।हमारे नेता पशुपति कुमार पारस यहां से सात बार विधायक रहे हैं।उम्मीदवार कौन होंगे, यह राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करेंगे। साथ ही यह भी कहा कि, महागठबंधन पूरी मजबूती से एक हैं।
वहीं राजद विधायक रामवृक्ष सदा ने कहा कि, राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का निर्णय है कि, अलौली से राजद ही चुनाव लड़ेगी। किन्हीं का कोई दावा नहीं चलेगा।
इधर एनडीए से लोजपा(रा) के जिलाध्यक्ष मनीष कुमार ने कहा है कि, अलौली से पार्टी हर हाल में चुनाव लड़ेगी। उम्मीदवार पार्टी नेतृत्व तय करेगी।
वहीं जदयू जिलाध्यक्ष बबलू कुमार मंडल ने साफ-साफ कहा है कि, खगड़िया जिला की सभी चार विधानसभा क्षेत्र से जदयू चुनाव लड़ेगी। 2020 में भी जदयू सभी चार विधानसभा सीट पर लड़ी थी। शेष, पार्टी नेतृत्व का जो फैसला होगा वह सर्वमान्य होगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।