Bihar Chunav 2025: महिला वोटर 'किंगमेकर', उम्मीदवार 'साइडलाइन', आंकड़े तो देख लीजिए
बिहार में 2025 के चुनावों में महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगी। पिछले चुनावों में उनकी बढ़ती भागीदारी ने उन्हें 'किंगमेकर' बना दिया है। राजनीतिक दलों को महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए रणनीति बदलनी होगी, क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि वे परिणामों को प्रभावित कर रही हैं। महिला उम्मीदवारों को अक्सर 'साइडलाइन' किया जाता है, लेकिन यह प्रवृत्ति बदल सकती है।

पटना के एक बूथ पर महिलाओं की कतार। जागरण
डाॅ.चंदन शर्मा, पटना। Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में महिलाओं ने एक बार फिर इतिहास रच दिया।
रिकॉर्ड 64.66% कुल मतदान में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से कहीं अधिक रही, जो राज्य की राजनीति में उनकी बढ़ती ताकत का प्रमाण है।
लेकिन विडंबना यह है कि राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी बरती है। कुल 1,314 उम्मीदवारों में महज 122 महिलाएं हैं, जो मात्र 9.28% है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह भागीदारी बनाम प्रतिनिधित्व की गहरी खाई को उजागर करता है, जहां महिलाएं वोटर के रूप में तो निर्णायक हैं, लेकिन उम्मीदवार के रूप में हाशिए पर धकेली जा रही हैं।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण के 121 सीटों पर 3.75 करोड़ मतदाताओं में 1.76 करोड़ महिलाएं शामिल हैं।
मतदान के दौरान महिलाओं की सक्रियता ने कई जिलों में रिकॉर्ड तोड़े। बेगूसराय(67.32%), गोपालगंज(64.96%) और मुजफ्फरपुर (64.63%) में महिलाओं का टर्नआउट पुरुषों से 5-10% अधिक रहा।
चुनाव में शानदार रही भागीदारी
मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने कहा, महिलाओं की भागीदारी शानदार रही। यह बिहार के लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है। अधिकारिक आंकड़ा मतगणना के बाद भी आएगा। यह ट्रेंड 2010 से चला आ रहा है।
2010 में महिलाओं का टर्नआउट 54.49% था (पुरुष: 51.12%), 2015 में 60.48% (पुरुष: 53.32%) और 2020 में 59.7% (पुरुष: 54.5%)।
महिलाओं की यह ताकत नीतीश कुमार सरकार की महिला-केंद्रित योजनाओं—जैसे मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (10,000 रुपये की सहायता)और 35% सरकारी नौकरियों में आरक्षण का नतीजा मानी जा रही है।
विपक्षी महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने भी महिलाओं के लिए 30,000 रुपये एकमुश्त सहायता का वादा किया है।
राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद मुकेश कहते हैं, महिलाएं अब जाति से परे वोट दे रही हैं। वे बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा जैसे मुद्दों पर फोकस कर रही हैं।
लेकिन पार्टियां उन्हें टिकट देकर सशक्तिकरण की बात तो करती हैं, काम कम करती हैं। सीनियर जर्नलिस्ट ओमप्रकाश अश्क कहते हैं, महिलाओं का वोट सबको चाहिए, मगर टिकट देने के मामले में परिवारवाद और वंशवाद को ही तवज्जो मिल पाता है।
जमीनी महिलाएं पीछे रह जाती है। इस बार ही सीमा कुशवाहा, रितू जायसवाल जैसी महिलाएं राजद में दावेदार टिकट की दावेदार थी, पर इन्हें दरकिनार कर दिया गया। भाजपा और जदयू ने भी महिलाओं को टिकट देने में बड़ा दिल नहीं दिखाया है।
टिकट वितरण: आंकड़ों में पीछे रह गई पार्टियां
- आरजेडी (महागठबंधन): 144 सीटों पर 24 महिलाओं को टिकट (16.7%) – जैसे वीणा देवी (मोकामा)। लेकिन मोहनिया से श्वेता सुमन का नामांकन रद्द।
- बीजेपी (एनडीए): 160 सीटों पर 13-15 महिलाओं को टिकट (8-9%) – मैथिली ठाकुर (अलीनगर) और शालिनी मिश्रा (केसरिया) प्रमुख।
- जेडीयू (एनडीए): 45 सीटों पर 22 महिलाओं को टिकट (49%) – सबसे आगे, लेकिन कुल में कम प्रभाव।
- कांग्रेस (महागठबंधन): 30 सीटों पर 5 महिलाओं को टिकट (16.7%) – पहली लिस्ट में ही तीन महिलाएं।
- जन सुराज पार्टी (JSP) : 243 सीटों पर 25 महिलाओं को टिकट (10-16%) – युवा महिलाओं पर फोकस, जैसे रितेश पांडेय (करगहर)।
कुल मिलाकर 2020 के 62 महिला उम्मीदवारों के मुकाबले 2025 में मामूली वृद्धि हुई, लेकिन 243 सीटों में 33% आरक्षण की मांग (महिला आरक्षण विधेयक के संदर्भ में) अभी भी अधर में लटकी है।
2020 में 62 महिलाओं में से 26 जीतीं, लेकिन विधानसभा में महिलाओं की संख्या 38 (15.6%) ही रही।
पंचायती राज व महिला नेतृत्व को बढ़ाने में दो दशक से बिहार में काम कर रही शाहिना परवीन साफ कहती हैं- महिलाएं वोट ज्यादा डालती हैं, लेकिन जीत कम हासिल करती हैं, क्योंकि टिकट ही कम मिलते हैं।
राजनीतिक दल 35 प्रतिशत आरक्षण की बस बात करते हैं, हकीकत में टिकट देना नहीं चाहते। पति जेल में हो, चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध हो, ऐसे में महिलाओं को आगे कर चुनाव जीतने का इतिहास रहा है।

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