राहुल गांधी ने लोकसभा में चुनाव आयोग पर जैसे शरारत भरे और इस संवैधानिक संस्था को बदनाम करने एवं देश को गुमराह करने वाले आरोप लगाए, वे उनकी हताशा को ही दर्शाते हैं। वे अपनी नाकामी का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ रहे हैं और वह भी भद्दे तरीके से। चूंकि उनके ऐसे पुराने आरोप ठहर नहीं रहे इसलिए वे कुंठित हो रहे हैं। वे हताशा में हद पार कर रहे हैं। उन्हें यह भी भान नहीं कि वे नेता सदन हैं और उस कांग्रेस के नेता हैं, जिसने देश पर लंबे समय तक शासन भी किया और चुनाव प्रक्रिया में सुधार के कुछ कदम भी उठाए।

क्या कांग्रेस के लिए यह शर्म की बात नहीं कि जिस ईवीएम का उपयोग उसके शासनकाल में शुरू हुआ, उसके पीछे उसके ही बड़े नेता पड़े हैं। हाल के वर्षों में ईवीएम के कथित दुरुपयोग के जो भी आरोप लगे, उन्हें तो सुप्रीम कोर्ट ने भी फर्जी पाया। महाराष्ट्र चुनाव को लेकर लगाए गए आरोप भी फर्जी ही पाए गए। राहुल गांधी ने लोकसभा में चुनाव आयोग के खिलाफ उलटा-सीधा नहीं, उलटा ही उलटा इसलिए बोला ताकि सांसद को मिले अधिकारों के तहत उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सके।

यह ठीक है कि चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के नितांत झूठे और भारतीय लोकतंत्र की छीछालेदर करने वाले आरोपों का कड़ा प्रतिवाद करने के साथ यह कहकर उन्हें बेनकाब भी किया कि वे किस तरह अपने आरोपों का जवाब सुनने उसके समक्ष उपस्थित नहीं हुए। चुनाव आयोग ने बार-बार उन्हें बुलाया, लेकिन लगता है कि वे खुद को इस संवैधानिक संस्था से भी ऊपर समझ रहे हैं। वे गांधी परिवार के सदस्य हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह मुगालता पाल लें कि आम जनता उनके शरारत भरे आरोपों को सच मान लेगी।

जनता का उनके आरोपों पर भरोसा होता तो चुनावों में कांग्रेस की इतनी दुर्गति नहीं हो रही होती। वोट चोरी के आरोप लगा रहे राहुल और उनके साथी यह भूलना भी पसंद कर रहे हैं कि झारखंड और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कौन जीता था? अब यह आवश्यक है कि यदि राहुल गांधी या उनके सहयोगी अथवा कथित लोकतंत्र हितैषी चुनाव आयोग पर सिरे से झूठे आरोप लगाएं तो वह उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे।

यदि ऐसा काम राहुल संसद के बाहर करें तो उनके खिलाफ भी चुनाव आयोग को पुलिस में शिकायत करने के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि कुछ लोग लोकतंत्र बचाने के नाम पर उससे ही खेल रहे हैं। अब यह भी साफ है कि ऐसे लोग मतदाता सूचियों का सत्यापन नहीं होने देना चाहते, भले ही घुसपैठिये वोटर बने रहें। देशद्रोह तो यह है। इस मामले में जनहित याचिकाएं सुनने को आतुर सुप्रीम कोर्ट को भी सक्रिय होना चाहिए।