यह राहत की बात तो है कि भारतीय और चीनी सेना के कोर कमांडरों के बीच लंबी बातचीत के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव घटाने पर सहमति बन गई, लेकिन अब चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ध्यान रहे कि इसी तरह की सहमति छह जून को भी बनी थी, लेकिन सबको पता है कि 15 जून को चीनी सेना ने गलवन घाटी में किस तरह धोखे से हमारे सैनिकों को निशाना बनाया?

गलवन में चीनी सेना की धोखेबाजी यदि कुछ बता रही है तो यही कि वह बिल्कुल भी भरोसे के काबिल नहीं रहा। धोखा देना और फिर शांति-सहयोग की फर्जी बातें करना चीन का स्वभाव बन गया है। ऐसे किसी भी मक्कार देश की बातों पर यकीन करने का अर्थ है खुद को खतरे में डालना। चीन केवल भारत के मामले में ही समझौतों और आपसी समझबूझ को धता बताने में माहिर नहीं है। वह दुनिया भर में मनमानी करने के लिए कुख्यात है।

भारत को चीन से न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि नियंत्रण रेखा पर अपनी चौकसी भी बढ़ानी होगी। हैरत नहीं कि चीनी सेना उसी तरह की हरकत फिर करे जैसी उसने लद्दाख और सिक्किम में की। भारत को चीन से सावधान रहने के साथ ही उसके विस्तारवादी रवैये का प्रतिकार करने के लिए भी तैयार रहना होगा। चीन के प्रतिकार का सबसे सही तरीका यही है कि भारत खुद को आर्थिक रूप से सबल बनाए। आत्मनिर्भर भारत अभियान को वास्तव में जमीन पर उतारने का काम और तेज किया जाना चाहिए। इस अभियान को सफल बनाने में देश के आम लोगों की भी महती भूमिका होगी।

जरूरत चीन के खिलाफ उन्माद पैदा करने की नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि भारत भी एक बड़ी आर्थिक ताकत कैसे बने? इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए चीन एक बड़ी ताकत केवल अपनी आर्थिक नीतियों से ही नहीं, बल्कि अपने लोगों के समर्पण और अनुशासन के कारण भी बना। बेहतर हो कि सरकार के साथ-साथ देश की जनता भी चीन की धोखेबाजी से सही सबक सीखे।