जागरण संपादकीय: निर्धनता से मुक्ति, गरीबी का निवारण बड़ी सफलता
विश्व बैंक की रपट के अनुसार भारत में 2011 से 2023 के बीच 17 करोड़ से अधिक लोग अति निर्धनता से मुक्त हुए जो मोदी सरकार की उपलब्धि है। सरकार की योजनाओं जैसे जन-धन योजना ने गरीबों को आर्थिक सहायता पहुंचाई और भ्रष्टाचार कम किया। उज्ज्वला योजना और मुफ्त अन्न योजना ने भी निर्धनता निवारण में मदद की।
विश्व बैंक की यह रपट मोदी सरकार की एक और उपलब्धि रेखांकित करने के साथ निर्धनता निवारण के प्रयत्नों की सफलता की कहानी भी कहती है कि भारत में 2011 से 2023 के बीच करीब 27 करोड़ लोग अति निर्धनता से मुक्त हुए। इतनी तो कई देशों की कुल आबादी भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि पहले की सरकारों ने लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने के प्रयत्न नहीं किए। उन्होंने किए और वे कुछ हद तक सफल भी रहीं। यह रपट इसकी ओर संकेत भी करती है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि 2014 से 2023 का कालखंड गरीबों के आर्थिक उत्थान में कहीं अधिक सहायक बना। इसके कुछ ठोस कारण हैं। मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को संबल देने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो अनेक योजनाएं चलाईं, उनका क्रियान्वयन कहीं बेहतर तरीके से किया गया। जैसे जन-धन योजना।
इस योजना के चलते करोड़ों लोग बैंकों से जुड़े। प्रारंभ में इस योजना का यह कहकर उपहास उड़ाया गया कि जब गरीब के पास पैसा ही नहीं तो वह बैंक खाता खोलकर क्या करेगा, लेकिन यही बैंक खाते डीबीटी के जरिये सब्सिडी एवं अन्य वित्तीय सहायता सीधे गरीबों तक पहुंचाने का जरिया बने। इससे गरीबों को उनके हिस्से का पूरा पैसा मिला और भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगा। इसी के साथ लोग बैंकों की महत्ता से परिचित हुए और उन्हें मुद्रा सरीखी योजनाओं के तहत लोन लेने में भी आसानी हुई। इससे वे अपना काम-धंधा आसानी से आगे बढ़ा सके।
निःसंदेह जनकल्याण की अनेक योजनाओं ने भी करोड़ों लोगों को निर्धनता की खाई से बाहर निकालने में मदद की। उज्ज्वला रसोई गैस, पीएम आवास जैसी अनेक योजनाओं के साथ करोड़ों परिवारों को मुफ्त एवं रियायती अन्न देने की योजना ने निर्धन वर्ग को बड़ा सहारा दिया। यह उत्साहजनक है कि अत्यधिक गरीबी दर घटकर 5.3 प्रतिशत रह गई है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी 18.4 प्रतिशत से घटकर 2.8 प्रतिशत हुई, वहीं शहरी क्षेत्रों में 10.7 प्रतिशत से घटकर 1.1 प्रतिशत। इस सबके बावजूद इसकी अनदेखी भी नहीं की जानी चाहिए कि जहां करीब 27 करोड़ लोगों को अति निर्धनता से छुटकारा मिला, वहीं करीब साढ़े पांच करोड़ लोग ऐसे हैं, जो तीन डालर प्रतिदिन से कम पर जीवनयापन कर रहे हैं।
साफ है कि निर्धनता निवारण के प्रयासों पर जोर देना जारी रखना होगा। यह काम केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को भी करना होगा। उन्हें यह भी समझना होगा कि जनकल्याण के बहाने रेवड़ी बांटने वाली योजनाएं गरीबों का भला नहीं करतीं। भारत जैसे बड़ी एवं निर्धन आबादी वाले देश में जनकल्याण की योजनाएं चलाई ही जानी चाहिए, लेकिन उनके नाम पर लोगों को केवल सरकारी सहायता पर निर्भर बनाने का काम नहीं किया जाना चाहिए।
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