भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आइसीएमआर ने एक बार फिर यह कहा कि देश अभी तक कोरोना वायरस के व्यापक फैलाव वाले तीसरे चरण में जाने से बचा हुआ है। नि:संदेह यह राहत की बात है, लेकिन इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि इस खतरनाक वायरस से ग्रस्त लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। देखते ही देखते कोरोना वायरस के संक्रमण ने करीब एक हजार लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। माना जाता है कि अभी यह संख्या और बढ़ेगी। मौजूदा हालात में यह स्वाभाविक भी है, लेकिन इसके लिए हरसंभव जतन तो करने ही होंगे कि वैसे हालात न बनने पाएं कि यह पता करना कठिन हो जाए कि कौन किससे संक्रमित हुआ? इसके लिए एक ओर जहां यह जरूरी है कि कोरोना वायरस के संदिग्ध मरीजों का ज्यादा से ज्यादा संख्या में परीक्षण किया जाए वहीं दूसरी ओर यह भी कि हाल में विदेश से लौटे लोगों की कड़ी निगरानी की जाए। इसमें कोई ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए।

यदि कोरोना वायरस का संक्रमण एक बड़ा खतरा बन गया है तो इसकी एक बड़ी वजह बीते लगभग एक माह में विदेश से आए वे लोग ही हैं जिन्होंने या तो अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराने से इन्कार किया या फिर आवश्यक सावधानी का परिचय देने से कन्नी काटी। इनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जिन्होंने यह जानते हुए भी घोर लापरवाही का परिचय दिया कि वे कोरोना वायरस की चपेट में आ सकते हैं। कायदे से इन सबको अपने घर में औरों से अलग-थलग यानी सेल्फ आइसोलेशन में रहना था, लेकिन वे सावर्जनिक स्थलों में इस तरह घूमते और मेल-मिलाप करते रहे जैसे कुछ हुआ ही न हो। यह देशघाती लापरवाही ही कही जाएगी।

विदेश से लौटे जिन लोगों ने अपनी लापरवाही से खुद के साथ देश को संकट में डाला उनमें केवल वही नहीं हैं जो यूरोप या अमेरिका से लौटे। इनमें वे भी हैं जो खाड़ी के देशों से लौटे। चूंकि इनकी संख्या लाखों में है इसलिए उनकी तलाश करना कठिन है, लेकिन इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि ऐसे सब लोगों तक पहुंच बनाई जाए। यह काम केवल सरकारी अमले का ही नहीं है, खुद समाज और खासकर उन लोगों का भी है जिनका कोई परिजन या परिचित हाल में विदेश से लौटा है। उन्हें अपनी ओर से यह पहल करनी चाहिए कि वे अपने ऐसे परिजनों अथवा परिचितों को आवश्यक स्वास्थ्य परीक्षण के लिए विवश करें। इसके साथ ही यह सुनिश्चित करने की जरूरत तो हर देशवासी को है कि लॉकडाउन के इस कठिन दौर में सामाजिक मेल-मेलाप से बचकर रहना है।