सराहनीय फैसला: सुप्रीम फैसले के बाद कोर्ट में दर्ज हो सकेगा आपराधिक मामला
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनके खिलाफ एमपी-एमएलए कोर्ट में आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। जो भी हो यह किसी से छिपा नहीं कि इसके पहले भी कुछ सांसद पैसे के बदले सवाल पूछने के आरोपों से दो-चार हो चुके हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि विधान परिषद और राज्यसभा के चुनावों में पैसे लेकर वोट देने के मामले सामने आते रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों और सांसदों को सदन के अंदर भाषण या वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर आपराधिक मामले से छूट देने के 1998 के अपने फैसले को पलटकर बिल्कुल सही किया। ऐसे किसी फैसले की आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि यह छूट लोकतांत्रिक मूल्यों-मर्यादाओं का मुंह चिढ़ाने वाली तो थी ही, उसका बेजा लाभ भी उठाया जा रहा था। इसका एक प्रमाण तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा हैं, जिनकी कुछ समय पहले लोकसभा सदस्यता इसलिए रद हुई, क्योंकि वह उपहार लेकर संसद में सवाल पूछने की दोषी पाई गईं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनके खिलाफ एमपी-एमएलए कोर्ट में आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। जो भी हो, यह किसी से छिपा नहीं कि इसके पहले भी कुछ सांसद पैसे के बदले सवाल पूछने के आरोपों से दो-चार हो चुके हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि विधान परिषद और राज्यसभा के चुनावों में पैसे लेकर वोट देने के मामले सामने आते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से झारखंड मुक्ति मोर्चे की विधायक सीता सोरेन की मुश्किलें बढ़ना तय है। उन पर आरोप है कि 2012 में राज्यसभा के चुनाव में एक निर्दलीय प्रत्याशी को वोट देने के बदले उन्होंने रिश्वत ली थी।
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से अपने जिस फैसले को पलटा, वह फैसला भी झारखंड मुक्ति मोर्चा के उन सांसदों के मामले में तीन-दो के बहुमत से आया था, जिन पर यह आरोप था कि उन्होंने 1993 में नरसिंह राव सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान रिश्वत लेकर सरकार के पक्ष में वोट दिया। बाद में यह आरोप सही पाया गया और सीबीआइ की जांच में यह भी साबित हो गया कि कितने पैसे किसके खाते में पहुंचे।
जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने यह तो माना कि रिश्वत लेकर वोट देने वाले सांसदों ने उनके भरोसे का सौदा किया है, जिनका वह प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन वे उस विशेषाधिकार के चलते सुरक्षा के अधिकारी हैं, जो संविधान ने उन्हें प्रदान किया है। इस फैसले के चलते विधायकों और सांसदों को एक तरह से मनमानी करने की छूट मिल गई। विधायकों और सांसदों को विशेषाधिकार इसलिए मिले हैं, ताकि वे सदन में बिना किसी भय-संकोच अपनी बात कह सकें।
दुर्भाग्य से इस विशेषाधिकार की मनचाही व्याख्या करते हुए यह मान लिया गया कि विधायक-सांसद सदन में कुछ भी कर सकते हैं और यहां तक कि पैसे लेकर सवाल पूछने के साथ मतदान भी कर सकते हैं। अच्छा हुआ कि अब ऐसा नहीं होगा, लेकिन इसमें संदेह है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राजनीति में शुचिता को स्थापित कर सकेगा। इस संदेह का कारण यह है कि अभी हाल में उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई। भले ही इसके पीछे पैसे की भूमिका न हो, लेकिन वह राजनीतिक अनैतिकता तो है ही।
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