वन संपदा
वन प्रदेश की अमूल्य धरोहर हैं और हिमाचल में यह संपदा 34 करोड़ वर्गमीटर में फैली है। पेड़ों की हमारे जीवन में अहम भूमिका है। ये हमें बहुत कुछ देते हैं, पर बदले में हम स्वार्थ के लिए उन पर कुल्हाड़ी चलाने से भी पीछे नहीं हटते। ग्रामीण क्षेत्रों में मनुष्य की जंगलों पर अधिक निर्भरता रही है। पर आज कहीं सड़क बनाने तो कहीं भवन बनाने के लिए हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं। जंगलों पर वनकाटुओं की बुरी नजर पड़ना दुखद है। प्रदेश में लकड़ी की तस्करी के मामले भी सामने आते रहे हैं। मंडी जिला के धर्मपुर में वन अधिकारियों की लकड़ी से साथ गिरफ्तारी कई सवाल खड़े कर रही है। इस मामले की जांच होनी बाकी है। अगर अधिकारियों ने लकड़ी को विश्रामगृह में इस्तेमाल करना था तो वह सारी प्रक्रिया नियमों के तहत होनी चाहिए थी, ताकि कोई सवाल खड़ा न कर सके। हर साल वनों में लगने वाली आग करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाती है। इसके साथ जंगली जानवर भी मौत का ग्रास बन जाते हैं। दूसरी तरफ वनों में मनुष्यों के बढ़ते हस्तक्षेप का ही नतीजा है कि जंगली जानवर बस्तियों की तरफ आने लगे हैं। खेतों में फसलें उजाड़ते बंदर व गांवों के निकट घूमते हिंसक जानवर अभी तक कई लोगों के शिकार बना चुके हैं। हमीरपुर के भोरंज में आठ साल का बच्चा तेंदुए का शिकार हुआ है। हर साल बरसात में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर पौधे लगाए जाते हैं, पर सही देखरेख न होने से उनमें से सालभर के भीतर कितने पौधे मुरझा जाते हैं यह देखने वाला कोई नहीं। जंगलों को आग से बचाने व रोपे गए पौधों की देखभाल से स्थानीय लोगों को जोड़ना बहुत जरूरी है। वनों की रक्षा हर आदमी का फर्ज है। इस दिशा में सरकार के प्रयास सराहनीय रहे हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश के वनावरण क्षेत्र में 11 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है। यह बढ़ोतरी तभी सार्थक मानी जाएगी जब वनों पर कुल्हाड़ी न चले। प्रदेश के लिए गर्व की बात है कि बॉयोकार्बन परियोजना के बारे में विश्व बैंक से अनुबंध करने वाला पहला राज्य है और आने वाले बीस वर्ष में प्रदेश को कार्बन क्रेडिट के रूप में करोड़ों रुपये मिलेंगे। वनों के संरक्षण के लिए सरकार के साथ आम जनता भी आगे आए यह बहुत जरूरी है। इसके लिए जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]
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