पर्यावरण से खिलवाड़
नए वर्ष का पहला दिन हो, और ठंड न के बराबर हो, चलें तो पसीना निकल आए। इसे क्या कहेंगे? प्रकृति का बिगड़ा मिजाज या फिर पर्यावरण से हमलोगों द्वारा किए जा रहे खिलवाड़ का नतीजा। पहली जनवरी को कोलकाता या यूं कहे दक्षिण बंगाल में न्यूनतम तापमान 17 डिग्री सेल्सियस के पार था, जो पिछले 11 वर्षो की तुलना में कई डिग्री अधिक रहा। जिंदगी की पूरी परिकल्पना को प्रकृति और पर्यावरण की उपेक्षा खतरे में डाल सकती है। जिस तरह से आये दिन हम प्राकृतिक संसाधनों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, उसकी कीमत सभी को चुकानी पड़ रही है। बेहतर है कि हम समय रहते चेत जाएं, और यथासंभव पर्यावरण की रक्षा करें। यह कोलकाता जैसे महानगर के लिए और अधिक जरूरी है, जहां प्रतिदिन हजारों वाहन सड़कों पर दौड़ते हैं, और उनके जहरीला धुआं न सिर्फ आमलोगों के लिए बल्कि पेड़ पौधे के लिए भी संकट पैदा कर रहा है। इस दिशा में सबसे दुखद पहलू है कि लोग तो लोग सरकार की ओर से भी ठोस पहल नहीं हो रही है, जिसके चलते समस्याएं बढ़ रही हैं। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद पर्यावरण पर व्यापक असर डालने वाले 15 वर्ष पुराने वाहनों को हटाया गया, ऑटो एलपीजी गैस से चल रही है, लेकिन टैक्सी, मिनी बस व बड़ी बसों के मामलों में अभी तक सफलता नहीं मिली है। पेड़ पौधों की कटाई, जलाशयों को भरना आदि अब तक नहीं रुका है। प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है जिसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है और नतीजा सामने है कि ठंड के इस मौसम में पंखा और एसी चलाने को लोग मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में जवाबदेही तय होनी चाहिए कि आखिर कौन उसके लिए सार्थक कदम उठाएगा, जिससे पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके, और लोग विभिन्न बीमारियों से बच सकें। पर्यावरणविद् के रूप में सुभाष दत्त ने हाईकोर्ट में मामला दायर कर प्रदूषण रोकने के लिए दवाब बनाते रहे हैं, किंतु जब तक सरकार और आम लोग एक साथ मिल कर कार्य नहीं करेंगे, तब तक हमें सुरक्षित पर्यावरण भी नहीं मिल सकेगा। विकास के नाम पर जिस तरह से महानगर के विभिन्न हिस्सों व अन्य शहरों में पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं, उस पर संबंधित विभागों को नजर रखने की जरूरत है। मानवीय विकास चाहे जितना हो जाए, लेकिन हम दूसरी प्रकृति का नाम निर्माण नहीं कर सकते। आखिर प्रकृति के बीच में ही मानव जिंदगी की सच्चाई है। मशहूर वैज्ञानिक न्यूटन ने कहा था किहमें प्रकृति के साथ दोस्ताना संबंध बनाकर प्रगति करनी चाहिए। यह बात सभी संबंधित विभाग के अधिकारियों को समझनी होगी, तभी हम पर्यावरण के प्रति गंभीर हो सकते हैं। इसके लिए सबसे अधिक जरूरी यह है कि सरकारी व निजी संस्थाएं पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए जागरुकता अभियान चलाएं।
[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]
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