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    हिमाचल की वन संपदा

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    Updated: Thu, 17 Nov 2011 12:12 AM (IST)

    यह संदेश अब जनता तक पहुंचना बहुत जरूरी है कि वनों से वायु होती है और वायु से आयु। अगर हमारा पर्यावरण स्वच्छ होगा तभी सांस लेने के लिए साफ वायु मिल पाएगी। प्रदेश व प्रदेशवासियों के लिए यह बात सुखद कही जा सकती है कि हमारे वन क्षेत्र में वृद्धि के आसार नजर आ रहे हैं। सदियों से हरे-भरे वन व वन संपदा हिमाचल के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाते रहे हैं। इसी के आकर्षण में लोग यहां खिंचे चले आते हैं। 2000 में हिमाचल के पास 1,06,666 करोड़ की वन संपदा थी। ताजा आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल के 37033 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र में 14668 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हरियाली युक्त है। प्रदेश की वन संपदा में वृद्धि की उम्मीद है, जिसका आकलन करने के लिए वन विभाग ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट भोपाल को जिम्मा सौंपा है। प्राचीन काल से हरे-भरे वन मानव जीवन में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं। मनुष्य को प्राण वायु प्रदान करने वाले वनों का विनाश करने वाला भी मानव ही है। अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काटना कहां तक उचित है। आज भी कई स्थानों से पेड़ पर कुल्हाड़ी चलने की सूचनाएं आती रहती हैं। दुर्गम स्थानों में वन माफिया सक्रिय है और चिंताजनक यह है कि पुलिस भी उन तक पहुंच नहीं पाती है। सड़क, भवन या फिर परियोजनाओं के नाम पर वन सदा कटते रहे हैं। स्वच्छ पर्यावरण समय की मांग है और इसके लिए हरे-भरे पेड़ों का होना बहुत जरूरी है। सरकार की तरफ से हर साल कई कार्यक्रम शुरू करके पौधरोपण किया जाता है। स्कूली बच्चे, नेता व स्वयंसेवी संस्थाएं शिद्दत से पौधे लगाते हैं पर यह देखने का प्रयास कोई नहीं करता कि जो पौधे उन्होंने रोपे थे, उनका क्या हुआ। उनकी देखरेखकी जिम्मेदारी किसी की नहीं है। हर साल आग से करोड़ों की वन संपदा नष्ट हो जाती है। इस संबंध में सरकार के सभी प्रयास असफल रहे हैं। रोपे गए पौधों व जंगलों को बचाने में ग्रामीणों की भूमिका अहम हो सकती है। गांवों के निकट वनों को बचाने में जनता की भागीदारी जरूरी है क्योंकि सदियों से ग्रामीण अपनी जरूरतें इन्हीं जंगलों से पूरी करते रहे हैं। शीत मरूस्थल लाहुल-स्पीति का वन क्षेत्र बढ़ना सुखद कहा जा सकता है। सबसे कम वन क्षेत्र वाले जिला हमीरपुर को इससे सबक लेते हुए और प्रयास करने की जरूरत है। अपने स्वार्थ के ंिलए वनों का विनाश न हो और वन संपदा की रक्षा करने के लिए सरकार के साथ जनता भी ईमानदारी से प्रयास करे तभी हरे-भरे प्रदेश की सार्थकता साबित होगी।

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    [स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]

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