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    आपदा के खतरे

    By Edited By:
    Updated: Thu, 16 Jul 2015 03:59 AM (IST)

    जून 2013 में प्राकृतिक आपदा से हुई भीषण तबाही झेलने के बाद उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के ठोस इंतजामो ...और पढ़ें

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    जून 2013 में प्राकृतिक आपदा से हुई भीषण तबाही झेलने के बाद उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के ठोस इंतजामों को लेकर कोशिशें तेज हुई हैं। प्रदेश में अर्ली वार्निग सिस्टम विकसित करने के लिए दो डाप्लर रडार और चार स्वचालित मौसम केंद्रों की स्थापना का भी रास्ता साफ हो गया है। राज्य सरकार की कोशिशें रंग लाई और राज्य की इस विश्व बैंक पोषित योजना पर केंद्र भी सहमत हो गया। चूंकि इस नई तकनीक के जरिए अतिवृष्टि जैसी घटनाओं की सूचना चार घंटे पूर्व मिल सकेगी, लिहाजा राज्य में आपदा प्रबंधन तंत्र को अधिक त्वरित व कारगर बनाने के लिए यह योजना बेहद ही महत्वपूर्ण है। हालांकि, हकीकत यह है कि प्राकृतिक आपदा के खतरों से निपटने के लिए इतनी भर कोशिशें ही पर्याप्त नहीं हैं। हिमालयी राज्य उत्तराखंड का अधिकांश भौगोलिक क्षेत्र भूकंपीय जोन चार व पांच में आता है। ग्लेशियर से निकलने वाली नदियां मानसून सीजन में किस हद तक कहर बरपा सकती हैं, 2013 की आपदा इसका उदाहरण है। सरकार को पर्वतीय क्षेत्रों के उन 451 गांवों पर मंडरा रहे बड़े खतरे को भी गंभीरता से लेने की जरूरत है, जो प्राकृतिक आपदा के मुहाने पर खड़े हैं। इनमें से कई गांव भूस्खलन के कारण खतरे की जद में आए हैं, तो कई गांवों में बाढ़ व भू-धसांव की आशंका बनी हुई है। चिंताजनक पहलू यह है कि आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील श्रेणी में आ चुके इन गांवों के पुनर्वास की उम्मीद साल दर साल धूमिल पड़ती जा रही है। सरकार इनका भौतिक सत्यापन व भूगर्भीय सर्वे तो जरूर कर रही है, मगर सुरक्षित स्थानों पर इनके विस्थापन की कोई ठोस योजना राज्य सरकार के पास नहीं है। प्रदेश की खराब वित्तीय हालत भी इसका एक प्रमुख कारण है। चारधाम यात्रा मार्गो व पहाड़ की कई अन्य प्रमुख सड़कों पर भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के ट्रीटमेंट के लिए भले ही केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय ने करीब एक हजार करोड़ रुपये की दीर्घकालिक योजना तैयार की है, मगर योजना को समय रहते धरातल पर उतारने की चुनौती राज्य सरकार को पूरी करनी होगी। ऐसे में उत्तराखंड में विकास का एक ऐसा मॉडल तैयार करने की जरूरत है, जिसके तहत दैवीय आपदा के संभावित खतरों का निदान भी योजना का खाका तैयार करते समय ही कर लिया जाए। सरकार ने इस दिशा में सराहनीय पहल करते हुए डिजास्टर रिस्क रिडक्शन की मुहिम पर काम शुरू तो कर दिया, मगर इसे समयबद्ध ढंग से क्रियान्वित करना भी बेहद जरूरी है। जब तक यह मुहिम राज्य की कार्यसंस्कृति का हिस्सा नहीं बनेगी, सुरक्षित व समृद्ध उत्तराखंड की परिकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता।

    [स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]

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