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    चोर की दाढ़ी में तिनका

    By Edited By:
    Updated: Thu, 11 Jun 2015 05:32 AM (IST)

    म्यांमार में पूर्वोत्तर के आतंकियों के खिलाफ भारतीय सेना की सफल और साहसिक कार्रवाई के बाद पाकिस्तान

    म्यांमार में पूर्वोत्तर के आतंकियों के खिलाफ भारतीय सेना की सफल और साहसिक कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के नेताओं की ओर से जैसे बयान सामने आए हैं वे चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत को ही चरितार्थ कर रहे हैं। भारत की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया जिस पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अपेक्षित होती, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने म्यांमार में की गई सैन्य कार्रवाई से निकले संदेश को समझने में देरी नहीं की। एक तरह से यह अच्छा ही हुआ कि पाकिस्तान ने परोक्ष रूप से यह मान लिया कि वह भारत में ऐसा कुछ कर रहा है जिसके लिए उसे जवाबदेह भी होना पड़ सकता है और म्यांमार सरीखी कार्रवाई का सामना भी करना पड़ सकता है। नि:संदेह पाकिस्तानी गृहमंत्री यह सही कह रहे हैं कि पाकिस्तान म्यांमार नहीं है। म्यांमार ने तो समय रहते यह समझ लिया कि आतंकियों को पनाह देना उसके अपने हित में नहीं, लेकिन शायद पाकिस्तान यह समझने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं। आतंकवाद को समर्थन देने के तमाम दुष्परिणाम भुगतने के बावजूद अगर पाकिस्तान को यह समझ नहीं आ रहा कि वह आत्मघात के रास्ते पर जा रहा है तो फिर उसके प्रति नरमी दिखाने का कोई मतलब नहीं।

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    किस्म-किस्म के आतंकी गुट पाकिस्तान के लिए ही खतरा बन गए हैं, लेकिन वह भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ सक्रिय ऐसे ही गुटों की पीठ पर हाथ रखे हुए है। यह इकलौता ऐसा देश है जो खुद को आतंकवाद से पीड़ित भी बताता है और आतंकियों को हर तरह का सहयोग और समर्थन भी देता है। इस पर गौर किया जाना चाहिए कि इन दिनों पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की भाषा करीब-करीब वैसी ही है जैसी वहां के आतंकी तत्वों की है। फिलहाल पाकिस्तान के सही रास्ते पर आने के कहीं कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बिल्कुल निष्क्रिय साबित हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि सेना और उसकी खुफिया एजेंसी ने उन्हें उनकी हैसियत बता दी है।

    नि:संदेह म्यांमार की तरह पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई करना मुश्किल है, लेकिन इसे नामुमकिन भी मानकर नहीं चला जाना चाहिए। भारत को ऐसे संकेत देते रहने चाहिए कि अगर उसके सब्र का पैमाना छलका तो वह कुछ भी कर सकता है। यह भारत के हित में है कि पाकिस्तान इसके प्रति सदैव आशंकित बना रहे कि उसके खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई हो सकती है। यह इसलिए और भी जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान सही रास्ते पर आने के लिए तैयार नहीं। भारत ने पिछले दो दशकों में न जाने कितनी बार उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है,लेकिन उसने हर बार पीठ में छुरा घोंपने वाला काम किया है। इस पर आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ढाका में दिए गए बयान पर भी पाकिस्तान में रोना-पीटना मचा है। उसे यह यकीन नहीं हो रहा कि विदेश यात्रा पर गए भारतीय प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से उसका नाम लेकर यह कह सकते हैं कि वह भारत में आतंक फैलाता रहता है और सिरदर्द बन गया है। यह तो वह बात है जो हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर कही जानी चाहिए। पाकिस्तान ने विश्व समुदाय से मोदी के इस बयान का संज्ञान लेने की गुहार लगाई है। इसमें संदेह है कि उसकी कहीं कोई सुनवाई होगी। आतंकी गतिविधियों में लिप्त देश को खरी-खोटी सुनाने के साथ ही भयभीत करने में कोई हर्ज नहीं।

    [मुख्य संपादकीय]