नई दिल्‍ली। लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने को जहां पुलिस प्रशासन मुस्तैद है वहीं लोगों को जरूरी सामान मुहैया कराने का जिम्मा जिला प्रशासन और नगर निकायों के हाथ में है। मदर डेयरी और राज्यों की सरकारी डेयरियां दूध, दही, घी आदि की आपूर्ति कर रही हैं। दिल्ली में घर-घर राशन पहुंचाने की जवाबदेही नागरिक आपूर्ति विभाग की है। सेना और अर्धसैनिक बलों द्वारा रातों-रात सैकड़ों बिस्तर वाले निगरानी एवं इलाज कक्ष तैयार किए जा रहे हैं।

सरकारी स्कूलों में दोपहर भोजनशालाओं में खाना पकाकर जरूरतमंदों में बांटा जा रहा है। सरकारी बैंकों के जनधन खातों में कमजोर तबकों के लिए सरकार द्वारा नकद राशि जमा की जा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस संबंध में सराहनीय पहल करते हुए मनरेगा समेत तमाम पंजीकृत मजदूरों के खाते में राहत रकम भेजने की शुरुआत की जिसके बाद अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी यह काम शुरू किया। इस तरह कोरोना वायरस की जानलेवा छूत से नागरिकों को बचाने-संभालने और उनकी जांचनिगरानी तथा इलाज आदि में चारों ओर सरकारी तंत्र ही मुस्तैद नजर आ रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत जैसे विशाल आबादी और बहुस्तरीय आर्थिक स्थिति वाले देश में सरकारी तंत्र बेहद अहम है। 

कोरोना का सबसे बड़ा सामाजिक असर नागरिकों की दिनचर्या में सरकारी तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में सामने आया है। वर्ष 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और वैश्वीकरण के बाद से सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी तंत्र की भूमिका समेटने और निजी हाथों में तमाम सामाजिक-आर्थिक गतिविधियां सौंप देने का जुमला बार-बार सुनाया जा रहा था। इसी सिद्धांत के तहत टेलीकॉम से लेकर नागरिक उड्डयन, बंदरगाह प्रबंधन, राजमार्ग निर्माण और रखरखाव, स्थानीय निकायों के अनेक कार्यों आदि का निजीकरण किया जा चुका है। अब तो रेलवे की अनेक सेवाएं भी निजी कंपनियों को सौंपी जा रही हैं, पर इस महामारी से नागरिकों को बचाने की मुहिम में सरकारी तंत्र ही अग्रणी भूमिका में है। कोरोना वायरस की जांच, निगरानी और इलाज का काम ज्यादातर सरकारी प्रतिष्ठानों में ही हो रहा है।

लॉकडाउन के प्रतिकूल सामाजिक प्रभाव से निपटने को बैंकों का कर्ज सस्ता करने तथा कर्ज की किस्तों की वसूली तीन महीने टालने का एलान तथा भारतीय स्टेट बैंक द्वारा उस पर अमल भी हुआ है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा गरीबों, किसानों, कामगारों, महिलाओं, बुजुर्गों को सहारा देने के लिए एक करोड़ सत्तर लाख रुपये के राहत पैकेज का एलान पहले ही किया जा चुका है। अनेक राज्य सरकार भी अपनी ओर से अनेक कल्याणकारी उपाय लागू कर रहे हैं ताकि आमजन की मुसीबतों को कम किया जा सके।

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