चाबहार प्रोजेक्ट के जरिये भारत एक तीर से कई निशाने साध सकता है
भारत ने हाल ही में चाबहार प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापारिक गलियारा प्रोजेक्ट में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है। उम्मीद है कि आइएनएसटीसी समन्वय परिषद की बैठक में सदस्य राष्ट्रों द्वारा भारत के प्रस्ताव को मान लिया जाएगा।
विवेक ओझा। आइएनएसटीसी यानी इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ कॉरिडोर, ईरान के सबसे बड़े बंदरगाह बंदर अब्बास से होकर गुजरता है। भारत के विदेश मंत्री ने इस संबंध में प्रस्तावित किया है कि इस कॉरिडोर का काबुल और ताशकंद से होकर जाने वाला स्थल मार्ग आइएनएसटीसी के पूर्वी गलियारे का निर्माण करे। एक तरह से यूं कहें कि भारत अपने कुछ भू-सामरिक और भू-आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर इस अंतरराष्ट्रीय गलियारे के एक पूर्वी गलियारे का निर्माण चाहता है जो अफगानिस्तान से होकर जाएगा।
इस प्रोजेक्ट में ईरान और मध्य पूर्व की भू-आर्थिकी को मजबूत आधार देने की क्षमता है। इसलिए ईरान का मानना है कि इसमें अगर चाबहार प्रोजेक्ट को भी शामिल कर लिया जाए तो ईरान सहित इस क्षेत्र को बड़ा व्यापारिक लाभ होगा। अब ईरान इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए भारत का सहयोग चाहता है। ईरान को याद है कि भारत ने कुछ वर्ष तुर्कमेनिस्तान को अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण गलियारे का भाग बनाने का प्रस्ताव किया था।
परियोजना की संकल्पना : आइएनएसटीसी प्रोजेक्ट को शुरू करने की योजना मूल रूप से भारत, रूस और ईरान ने वर्ष 2000 में सेंट पीटर्सबर्ग में बनाई थी। इसे एक मल्टी मॉडल परिवहन प्रोजेक्ट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई थी। यानी इसे जहाज, रेल और सड़क मार्ग के रूप में विकसित किया जाना है। भारत, रूस और ईरान के अलावा इसमें 10 अन्य सदस्य (कुल 13) व एक पर्यवेक्षक सदस्य देश शामिल हैं। इसमें 10 मध्य एशियाई और पश्चिम एशियाई देशों अजरबैजान, आर्मीनिया, कजाखस्तान, किíगस्तान, ताजिकिस्तान, टर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान और सीरिया सदस्य हैं।
आइएनएसटीसी भारत के लिए मध्य एशिया और यूरेशिया के संसाधन समृद्ध क्षेत्र से जुड़ने के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। यह भारत के 2012 में शुरू किए गए कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी में निहित प्रमुख उद्देश्य यानी मध्य एशिया के देश से मजबूत संबंध निर्माण को साकार करेगा। भारत, अफगानिस्तान और पश्चिम की ओर संपर्क में बड़ा रोड़ा पाकिस्तान रहा है। इस समस्या से निजात दिलाने में भारत को आइएनएसटीसी से मदद मिलेगी, क्योंकि यह कॉरिडोर ईरान के बंदरगाहों चाबहार और बंदर अब्बास तक एक प्रत्यक्ष लिंक उपलब्ध कराता है और ईरान को भी पाकिस्तान अवरोध से परे जाने का अवसर देता है। गौरतलब है कि अफगानिस्तान को भारत से व्यापार के लिए भूमि संपर्क प्रदान करने में पाकिस्तान बाधा उत्पन्न करता रहा है, जबकि इन दोनों के मध्य ट्रांजिट एंड ट्रेड एग्रीमेंट पर वर्ष 1965 में हस्ताक्षर हुआ था जिसमें प्रविधान किया गया था कि अफगानिस्तान पाकिस्तान के कराची बंदरगाह का इस्तेमाल कर किसी अन्य देश को निर्यात-आयात कर सकेगा। समझौते में पाकिस्तान के मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार के लिए अफगान भू-क्षेत्र के इस्तेमाल करने का भी प्रविधान है।
पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान को भारत से व्यापार के लिए भू-संपर्क नहीं देने की चुनौती से निपटने के लिए भारत और अफगानिस्तान द्वारा 2017 में एयर फ्रेट कॉरिडोर खोला गया था जिसके जरिये बिना पाकिस्तानी मार्ग का प्रयोग किए भारत और अफगानिस्तान के मध्य व्यापार के लिए वायु मार्ग अपनाया गया। इससे वैकल्पिक व्यापारिक मार्गो के खोले जाने का महत्व भी स्पष्ट होता है। इसी प्रकार तापी गैस पाइपलाइन परियोजना में यदि पाकिस्तान का उचित सहयोग नहीं मिलता है तो भी आइएनएसटीसी को तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं के विकास में प्रभावी भूमिका निभाने का अवसर हमेशा विद्यमान रहेगा।
आइएनएसटीसी परियोजना का एक बड़ा लाभ भारत और रूस के रिश्ते को मजबूती देने के रूप में हो सकता है। वर्ष 2014 के बाद से जिस प्रकार रूस ने भारत की विदेश नीति में अपने लिए गर्मजोशी की कमी का अनुभव किया, उसे भरने में इस परियोजना की बड़ी भूमिका हो सकती है। रूस को लगता रहा है कि भारत ने अमेरिका के साथ अपनी सामरिक आíथक साङोदारी को बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है। वर्ष 2014 के बाद से रूस ने पाकिस्तान से अपने संबंध बढ़ाने शुरू कर दिए थे। भारत-रूस के मध्य 2018 में वस्तु और सेवाओं का द्विपक्षीय वार्षकि व्यापार 8.2 अरब डॉलर था जिसे 2025 तक बढ़ाकर 30 अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वहीं भारत और अमेरिका के मध्य द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 149 अरब डॉलर पहुंच गया है जिसे दोनों देश निकट भविष्य में बढ़ाकर 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य तय कर चुके हैं। भारत और अमेरिका का प्रतिरक्षा व्यापार भी वार्षकि स्तर पर 20 अरब डॉलर हो गया है। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत की विदेश नीति में रूस को पुन: यथोचित स्थान देने की जरूरत है और इसमें आइएनएसटीसी परियोजना का क्रियान्वयन एक प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
आइएनएसटीसी का एक बड़ा लाभ भारत को यह मिल सकता है कि वह इसके जरिये कई क्षेत्रों में चीन की बढ़ती उपस्थिति पर लगाम लगा सकता है। चाबहार में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे बंदरगाह से भारत की मध्य एशिया में भी मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित होती है। पाकिस्तानी ग्वादर बंदरगाह के पश्चिम में महज 72 किमी की दूरी पर स्थित चाबहार भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को प्रतिसंतुलित करने का अवसर देता है। भारत ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने को आवश्यक माना है और स्थलरुद्ध देश अफगानिस्तान को अपने व्यापार संभावनाओं से जुड़ने और पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण गलियारा एक गेम चेंजर की भूमिका निभा सकता है। यहां यह भी समझना आवश्यक है कि आइएनएसटीसी की सफलता में ईरान की केंद्रीय भूमिका है और इस भूमिका को अधिक से अधिक दिशा देने के लिए भारत और रूस को कार्य करना होगा व ऐसे में दोनों के सामने सबसे बड़ी संभावित चुनौती ईरान मुद्दे पर अमेरिका के दृष्टिकोण के जरिये देखने को मिल सकती है।
अमेरिका ने भारत-ईरान और भारत-रूस ऊर्जा व प्रतिरक्षा संबंधों से नाराज होकर 2019 में भारत को जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस की सूची से बाहर निकालकर भारत को अमेरिकी बाजार से मिलने वाले आíथक लाभ से वंचित कर दिया था। यह जरूर है कि वह राष्ट्रपति ट्रंप का दौर था जिन्हें कई अवसरों पर गैर जिम्मेदारी से काम करने का दोषी पाया गया था, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बाइडन प्रशासन अमेरिका के सर्वोच्च हितों के लिए संरक्षणवादी नीतियां अपनाने से नहीं हिचकेंगे। ऐसे में इस परियोजना के जरिये रूस, ईरान, अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंधों को गति मिलने के क्रम में अमेरिका के सहज दृष्टिकोण को सुनिश्चित करने की चुनौती कहीं न कहीं देखने को मिल सकती है। अमेरिका यदि आइएनएसटीसी परियोजना को सुगम रूप से चलते देख सकता है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण चीन के बेल्ट रोड पहल को अप्रभावी होते देखने की मंशा है। चीन और ईरान के संबंध में भी हाल के वर्षो में गर्मजोशी आई है जिसे अमेरिका नहीं देखना चाहेगा, क्योंकि ये दोनों मिलकर मध्य-पूर्व में अमेरिकी हितों को प्रभावित कर सकते हैं।
जिस चीन को प्रतिसंतुलित करने के लिए भारत अमेरिका आज इतनी प्रतिरक्षा साङोदारियां कर रहे हैं, उसी चीन को मध्य एशिया, ईरान, मध्य-पूर्व, यूरोप और यूरेशिया के क्षेत्रों में अपना वर्चस्व और प्रभाव को बढ़ाते हुए देखना अमेरिका पसंद नहीं करेगा। इस लिहाज से आइएनएसटीसी परियोजना को अमेरिका सरलता-सहजता के साथ लेगा और भविष्य में रूस व ईरान से भारत की बढ़ती नजदीकी का हवाला देकर कोई गलत कदम भारत के खिलाफ नहीं उठाएगा, इसकी पूरी संभावना है।
विदेश नीति में संतुलन साधने की कवायद: कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया व रूसी रेलवेज लॉजिस्टिक्स ज्वाइंट स्टॉक कंपनी के बीच 2020 में आइएनएसटीसी के जरिये कार्गो परिवहन के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया है और वह भी बिना इस भय के कि कहीं अमेरिका कोई आíथक प्रतिबंध न लगा दे। इससे पता चलता है कि इस गलियारे के निर्माण की महत्ता से सभी अवगत हैं। आइएनएसटीसी के हित से जुड़ा एक मुद्दा यह भी है कि यदि भविष्य में रूस और ईरान के संबंधों में कोई समस्या आती है और आíथक व अन्य प्रतिबंधों से मुक्त ईरान एक एनर्जी हब बनने का प्रयास करता है और उसे यूरोप के तेल और गैस बाजारों में बड़ी हिस्सेदारी मिलती है तो यह बात रूस को कितनी स्वीकार्य होगी। यूरोपीय देश रूसी गैस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं। ईरान को अवसर मिले तो वह मध्य-पूर्व और यूरोपीय अर्थव्यवस्था में योगदानकर्ता के रूप में प्रभावी भूमिका में आ जाएगा।
यहां इस बात पर भी विचार किया जा सकता है कि यदि बाल्टिक देशों और जापान जैसे इच्छुक देशों को भी आइएनएसटीसी के दायरे में लाया जाता है तो वैश्विक भू-राजनीति और अर्थव्यवस्था के समीकरण में आने वाला बदलाव जटिलता लाएगा या सरलता। चीन के बेल्ट रोड पहल और मध्य एशियाई देशों के ऊर्जा बाजार से जुड़ने की चाहत किसी से छुपी नहीं है। चीन का टर्की और ईरान से बढ़ता गठजोड़ भी सर्वविदित है। एक प्रमुख कारक जो चीन के बेल्ट रोड पहल की तुलना में आइएनएसटीसी को राष्ट्रों के लिए खासकर यूरोपीय राष्ट्रों के लिए अच्छा विकल्प बनाते हैं वह है चीन द्वारा कोविड महामारी के दौरान यूरोप के देशों को की गई डिफेक्टेड मेडिकल सप्लाई। चीन ने पिछले वर्ष महामारी के दौरान एक वर्चुअल मीटिंग में चार देशों के मध्य सहयोग का आवाहन किया था जिसमें चीन, पाकिस्तान, नेपाल और अफगानिस्तान शामिल थे।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]
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