प्रो. रसाल सिंह : शिवाजी महाराज एक ऐसे साहसी और संकल्पित योद्धा थे, जिन्होंने 17वीं शताब्दी में हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक के रूप में ऐतिहासिक कार्य किया। छह जून, 1674 को अपूर्व भव्यता के साथ वह छत्रपति ‘सर्वोच्च संप्रभु’ के रूप में सिंहासन पर बैठे। उनके राज्याभिषेक के 350 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में महाराष्ट्र सरकार एक से सात जून तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। ऐसे आयोजन पूरे देश में होने चाहिए।

छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिससे संप्रभु और शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य की नींव पड़ी। यह साम्राज्य गुप्त, मौर्य, चोल, अहोम और विजयनगर साम्राज्य की ही तरह शक्तिशाली, सुसंगठित और सुशासित था। कवि भूषण ने शिवराजभूषण और शिवा बावनी जैसी रचनाओं में छत्रपति शिवाजी महाराज की देशभक्ति, वीरता और प्रजावत्सलता का विशद वर्णन किया है। विभाजित और पराजित हिंदू समाज निराश और कुंठित था। लंबे इस्लामी शासन ने उसे असहाय, आत्मविश्वासहीन और अस्थिर बना दिया था। भारत का बौद्धिक परिदृश्य बंजर हो रहा था और सांस्कृतिक सूर्य अस्ताचल की ओर था। शिवाजी ने एक महान हिंदवी साम्राज्य की स्थापना कर न केवल हिंदुओं की सुप्त चेतना को जागृत किया, बल्कि उन्हें संगठित करते हुए विभाजनकारी और दमनकारी इस्लामी शासन को खुली चुनौती भी दी। उन्होंने भारतीय अस्मिता, सनातन संस्कृति को पुनर्जीवित करने और मंदिरों के संरक्षण और निर्माण कार्य पर सर्वाधिक बल दिया।

शिवाजी ने हिंदुओं को संगठित करते हुए एक अपराजेय शक्ति बना दिया। उन्होंने 1646 में आदिल शाही सल्तनत को चुनौती देते हुए तोरण किले पर कब्जा कर लिया। इस साहसिक विजय ने मुगल साम्राज्य और आदिल शाही सल्तनत जैसी दुर्जेय शक्तियों को स्तब्ध कर दिया था। बाद में पुरंदर के युद्ध में उन्होंने फत्तेखान के नेतृत्व वाली विशाल सेना को बुरी तरह पराजित किया। प्रतापगढ़ की लड़ाई में शिवाजी की सेना ने बीजापुर सल्तनत की सेना पर विजय प्राप्त की। उन्होंने मुगल साम्राज्य को तब चुनौती दी, जब वह औरंगजेब के शासन काल में अपने गौरव के चरम पर था। औरंगजेब के जबरन मतांतरण द्वारा भारत के इस्लामीकरण के एजेंडे का विरोध करते हुए गैर-मुस्लिमों के धर्म और संस्कृति का संरक्षण किया। मराठों ने न केवल मुगलों को हराया, बल्कि 18वीं शताब्दी के अधिकांश समय में ब्रिटिश सेना को भी पूरे भारत पर कब्जे से रोका। इस प्रकार शिवाजी द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य ने विदेशी और औपनिवेशिक शक्तियों का निरंतर प्रतिकार किया।

शिवाजी ने छोटे-छोटे किलों का रणनीतिक तंत्र बनाते हुए ‘किले हमारी ताकत हैं’ का सूत्रवाक्य दिया। किलों ने सेना के लिए महत्वपूर्ण संचालन-केंद्रों के रूप में कार्य किया, इससे वे अधिक साधनसंपन्न, शक्तिशाली और स्थापित शत्रु-शक्तियों को चुनौती देने और उन्हें नियंत्रित करने में सक्षम हुए। समुद्री सुरक्षा के सामरिक महत्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने एक दुर्जेय नौसैनिक बेड़ा बनाया। उन्होंने अरब सागर को नियंत्रित करने और अपने साम्राज्य के तटीय क्षेत्रों को सुरक्षित करने के महत्व को समझते हुए ऐसा किया। उनकी नौसेना ने न केवल कोंकण तट को समुद्री खतरों से बचाया, बल्कि हिंद महासागर के व्यापार मार्गों में यूरोपीय शक्तियों के प्रभुत्व को भी चुनौती दी।

शिवाजी की विशिष्टता सैन्य विजय के अलावा सुशासन के क्षेत्र में भी थी। स्थानीय शासन, स्वशासन, त्वरित और निष्पक्ष न्याय प्रणाली और सुव्यवस्थित और समुचित राजस्व संग्रह उनके सुशासन की आधारशिला बने। सत्ता के विकेंद्रीकरण द्वारा लोककल्याण, सम्मान और सुरक्षा हिंदवी स्वराज्य की पहचान थे। उन्होंने व्यक्ति-केंद्रित शासन के स्थान पर व्यवस्था-आधारित शासन के सृजन पर बल दिया।

उनकी एक उल्लेखनीय पहल ‘अष्ट प्रधान’ या आठ मंत्रियों की परिषद का गठन था। इस परिषद में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। नीति-निर्माण और कार्यान्वयन में उनकी निर्णायक भूमिका होती थी। विचार-विमर्श पर आधारित सामूहिक और सहकारी निर्णय-प्रक्रिया ने शासन को पारदर्शी, जवाबदेह और संवेदनशील बनाया। इसके अलावा राजस्व आकलन की नई प्रणाली भी शुरू की गई, जिसमें कर आकलन और संग्रह की एक निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था विकसित की गई। इस नई व्यवस्था ने समुचित राजस्व-संग्रह सुनिश्चित करते हुए भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया। भूमि माप के मानकीकरण और मिट्टी के प्रकार के आधार पर उपज का अनुमान लगाने की शुरुआत की गई। आर्थिक विकास के लिए किसानों को बंजर भूमि पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। बेरोजगार किसानों को कृषि उद्यम शुरू करने के लिए राज्याश्रय भी दिया गया। इन नीतियों से किसानों, कारीगरों और व्यापारियों को बड़ी राहत मिली। इन प्रशासनिक व्यवस्थाओं ने आधुनिक भारत की शासन प्रणाली पर भी व्यापक प्रभाव डाला।

मां जीजाबाई और समर्थ गुरु रामदास की शिक्षा से प्रेरित होकर शिवाजी ने सभी हिंदुओं की एकता को प्रोत्साहित किया और ‘सनातन धर्म’ का प्रचार किया। इसका अर्थ था जातिगत भेदभाव से मुक्त एक ऐसे उदार धर्म को प्रोत्साहन, जिसमें महिलाओं को प्रतिष्ठा और अधिकार देना, कर्मकांडों पर भक्तिभाव को प्राथमिकता देना आदि प्रमुख तत्व थे। इस विरासत ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और स्वातंत्र्योत्तर भारत को भी प्रभावित किया। कुल मिलाकर हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक शिवाजी आधुनिक भारत की नींव रखने वाले एक प्रतापी सम्राट थे। उन्होंने भारत को एक नई दिशा दी।

(लेखक किरोड़ीमल कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)