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    सरल स्वभाव

    By Edited By:
    Updated: Fri, 09 Nov 2012 03:08 AM (IST)

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    स्वभाव का अर्थ है- व्यक्ति का मूल गुण या प्रकृति। मन के मनन के अनुसार कर्म करने की आदत होने पर स्वभाव में सरलता आती है। मनन के विपरीत आचरण करने को स्वभाव की वक्रता कहते हैं। सरल स्वभाव में जैसे हम अंदर से हैं, वैसे ही बाहर से होते हैं, परंतु जब हम बनावटी व्यवहार या छल-कपट करते हैं तो हमारे मन में कुछ होता है और वाणी व व्यवहार में उससे भिन्न कर्म दिखाई देता है। सरल स्वभाव मृदुता और सौहा‌र्द्र से भरा होता है परंतु वक्रतापूर्ण स्वभाव विभिन्न प्रकार का कठोर, कुटिल, चपल आदि होता है। वक्र स्वभाव के व्यक्ति मन की बुराइयों को कर्म में न भी बदलें परंतु उनके मन में घृणा, हिंसा, भोग, भौतिकता, ईष्र्या-द्वेष, असत्य, अन्याय, स्वार्थ और अज्ञान आदि के भाव रहते हैं। इसके विपरीत सरल स्वभाव का व्यक्ति शुद्ध भाव से अपने चिंतन के अनुसार ही आचरण करता है।

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    सरल स्वभाव एक सरल रेखा या ऋजु रेखा के समान सीधा मार्ग है जिसमें कोई घुमाव, छिपाव या जटिलता नहीं होती है। दूसरी ओर वक्र स्वभाव एक वक्र रेखा के समान दिशाहीन घुमाव, छिपाव और टेढ़ेपन से भरा होता है। नेकी की राह सीधी और निर्बाध होती है जो हमें परमेश्वर के निकट ले जाती है। बुराई का मार्ग वक्र और जटिल है जो हमें पतन की ओर ले जाता है। हम देखते हैं कि एक ही माता-पिता के और एक ही माहौल में पले-बढ़े बच्चों के स्वभाव में भिन्नता पाई जाती है। इसका कारण स्वभाव का पूर्वजन्म के संस्कारों से बनना है। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है-''अनुल्वणं वयत जोगुवामषो''। अनुल्वणम् ऐसा कर्म है जिसमें ऋजुता अर्थात सरलता या सीधापन होता है। वक्रता या टेढ़ापन नहीं होता है। ऐसा कर्म करने का स्वभाव विद्या और तप से आत्मा तथा बुद्धि को ज्ञान से शुद्ध करके प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में हम शुभ कर्मो की ओर प्रवृत्त होते हैं जिनमें मन के मनन के अनुसार ही वाणी और कर्मो की एकता होने से स्वभाव में स्वयंमेव एकता होने से हम आत्मोन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं।

    [कृष्णकांत वैदिक]

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