Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    संशय से बचें

    By Edited By:
    Updated: Tue, 07 Aug 2012 06:21 AM (IST)

    शंका, आशंका संदेह के अर्थ में भी जाना जाता है संशय। सामान्य जीवन में भ्रम को भी संशय के साथ जोड़ लिया जाता है। यह प्राय: देखा गया है कि संशय के मन में अंकुरित होने पर बड़ी प्रगाढ़ मित्रता, शत्रुता में परिवर्तित हो जाती है। उसके कारण भिन्न हो सकते हैं। संवादहीनता या किसी के द्वारा तोड़- मरोड़कर मित्रों को सूचित करना या वार्तालाप में अहं को चोट लगना जैसे कारणों से संशय का रोग लग जाता है। संशय मधुर संबंधों के लिए बड़ा घातक सिद्ध होता है। व्यक्ति में संशय का रोग न लगने पाए, इसके लिए सदैव सचेत रहने की आवश्यकता रहती है। संशय के रोग की औषधि बाजार में नहीं मिलती। इस रोग को नष्टप्राय करने के लिए सत्संग, विवेक, पश्चाताप ही सही उपाय हैं। एक औषधि और है वह है पारस्परिक संवाद। मानव जीवन में संशय शारीरिक रोगों की तुलना में कम नहीं है। पौराणिक आख्यान के अनुसार संशय से ग्रस्त दक्ष कुमारी, भोलेनाथ की अद्र्धागिनी सती को सभी जानते हैं। शिवजी राम को प्रिया वियोग में भाव वि ल देखते हैं और उन्हें प्रणाम करते हुए कहते हैं-जय सच्चिदानंद सुखरासी? सती को यहीं संशय का रोग लग गया। उन्हें अपने स्वामी शिव पर विश्वास न हुआ। राम को बिलखते देखकर उन्हें यह लगा कि यह सच्चिदानंद कैसे हो सकते हैं। संशय के रोग से ग्रस्त सती सीता का वेष रखकर राम की परीक्षा लेने गईं। राम ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि वृषकेतु शिवजी कहां हैं। आप अकेले वन में, यह आश्चर्य की बात है। सती को बड़ी मानसिक पीड़ा हुई और उसने अंतिम परिणाम के रूप में यज्ञ की अग्नि में अपने को भस्म कर दिया। इस भयावह संशय के रोग से सदैव बचना चाहिए। संशय की परम औषधि है आत्मनिरीक्षण। जब मनुष्य आत्मा की पहचान कर लेता है तो उसमें परमात्म-भाव का प्रकाश अवतरित होता है। जीवन जीने की कला उसे समझ में आ जाती है। गोस्वामी तुलसीदास ने संकेत किया है-संशय के पक्षी का मन में प्रवेश न होने दें, तभी जीवन की सार्थकता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    [धनंजय अवस्थी]

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर

    comedy show banner
    comedy show banner