ब्रह्म स्वरूप राम
रामनवमी आदर्शो और मर्यादाओं का अवतरण दिवस है, साथ ही शाश्वत, सनातन और चिरंतन सत्य की अभिव्यक्ति का पुण्य क्षण भी। यह तथ्य स्पष्ट है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एवं आद्यशक्ति सीता आदर्शो की स्थापना के लिए अवतरित हुए थे। हजारों वर्षो के बाद भी राम, सीता हमारी प्रेरणा के श्चोत है। वास्तव में पूर्ण रामायण ही आदर्शो का भंडार है-आदर्श राजधर्म, आदर्श भातृधर्म, आदर्श गृहस्थ जीवन, वचनबद्धता के सर्वोच्च भक्ति ज्ञान, त्याग, वैराग्य तथा सदाचार की शिक्षा देने वाला है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भारतीय धर्म साधना मूलत: ब्रह्मा के रूप में इस चराचर जगत में परिव्याप्त होने में अपनी आस्था को व्यक्त करती है। वही एक सूक्ष्म धारणा राम तथा ऊँ की तात्विक एकता की ओर भी सूक्ष्म संकेत करती है। वस्तुत: 'राम' शब्द निराकार एवं सकल बह्मंा के रूप में है तो आश्चर्यजनक रूप में राम ही 'ऊँ' हो जाता है। आदि कवि वाल्मीकि ने रामायण के 'युद्धकांड' में राम को भगवान विष्णु से अभिन्न माना है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि भारतीय मनीषा मर्यादा पुरुषोत्तम राम को सच्चिदानंद ब्रšा मानकर उन्हें सर्वोच्च सत्ता के रूप में पूजती रही है। 'युद्धकांड' में ही कहा है कि विश्व की सृष्टि, स्थिति, अंत की सूत्रधारिणी, आद्यशक्ति सीता जगत का कारण और चेतना शक्ति एवं जगत का रूप हैं। भाषा शास्त्रियों के अनुसार भी सीता शब्द का अर्थ पृथ्वी से उत्पन्न है जो निश्चय ही सृष्टि के सृजन, पोषण एवं संहार की सूत्रधार शक्ति के लिए आया है। राम की शक्ति बनकर ही सीता अवतरित हुईं। महाकवि तुलसीदास जी ने दर्शन के इसी सूक्ष्म तत्व को मनोहारी रूप में व्यक्त करते हुए ब्रह्मंा एवं शक्ति को इस तरह व्यक्त किया है। आइए, हम भी भगवान राम की पावन जयंती रामनवमी के इस पुण्य पर्व पर युगों से हमारे विश्वास एवं आस्था के केंद्र ब्रह्मंा स्वरूप भगवान राम एवं आद्यशक्ति स्वरूप भगवती सीता के अभिन्न युगल को श्रद्धापूर्वक स्मरण करें।
[लाजपतराय सभरवाल]
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