भावुकता
अश्रु या आंसू व्यक्ति के जीवन के अभिन्न अंग हैं। इसका सीधा संबंध व्यक्ति की भावना के गहरे तल से है।
अश्रु या आंसू व्यक्ति के जीवन के अभिन्न अंग हैं। इसका सीधा संबंध व्यक्ति की भावना के गहरे तल से है। मनुष्य कभी-कभी इस अतल-तल को स्पर्श कर भावुक होता है। आंसू अपार दुख, अगाध पश्चाताप और अकथनीय प्रेम के सच्चे संदेशवाहक हैं। इनकी भावनात्मक सामर्थ्य प्रबल होती है, जिसकी अभिव्यक्ति वाणी से नहीं हो सकती। आंसू की बूंदें उस अभिव्यक्ति को प्रकट करने में सफल हो जाती हैं।
बहरहाल, खुशी और दुख की अवस्थाओं में निकलने वाले आंसुओं में भिन्नता होती है। आनंद के अतिरेक से निकले आंसू पीड़ा के आंसुओं से भिन्न होते हैं। आंसुओं की धारा में पीड़ा बह जाती है, इसलिए रोने के बाद मन हल्का होता है। मन स्वयं को अभिव्यक्त करना चाहता है। जब इसकी अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है तो मन परेशान हो उठता है और अपने आप ही रोने लगता है। कभी-कभी व्यक्ति पीड़ा के अतिरेक से गुजरता है। ऐसी स्थिति में आंसू अवरुद्ध हो जाते हैं। व्यक्ति को किसी तरह रोने के लिए विवश किया जाता है, ताकि पीड़ा आंसुओं में बह जाए।
भावों को ठेस लगने पर भी आंसू फूट पड़ते हैं। इसके विपरीत अतिरेक, हर्ष और आनंद में भी आंसू छलक पड़ते हैं। भाव यदि समूचे ढंग से अभिव्यक्त न हों, चाहें वे पीड़ा के हों या खुशी के तो आंसू बनकर बहने लगते हैं। आंसू कब कमजोरी बनते हैं और कब ताकत, यह विचारणीय विषय है। इसके प्रभाव के कारण ही इसे अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाता है। अपनी बातों को मनवाने के लिए आंसुओं का सहारा लेना घोर कमजोरी और कायरता है। व्यक्ति कहीं न कहीं संवेदनशील होता है, भावुक होता है। उसे आंसुओं के सहारे भुनाना अत्यंत कमजोरी की निशानी है, परंतु औरों की पीड़ा से पीड़ित होकर आंसुओं का छलकना उदारता और करुणा का प्रतीक है। सामर्थ्यवान होकर भी पर पीड़ा से पीड़ित न होना निर्दयता की निशानी है। दूसरों के आनंद में, सफलता में, अपार खुशी में बहने वाले आंसुओं को श्रेष्ठ माना जाता है। इन आंसुओं में एक अनकही ताकत व शक्ति छिपी होती है, जो क्रियान्वित होकर बड़े-बड़े श्रेष्ठ कार्यो को अंजाम देती है। आंसुओं की कीमत अनमोल है। इन्हे यूं ही नहीं बहाना चाहिए। आंसुओं के रूप में उमड़ती भावनाओं का दुरुपयोग न हो, बल्कि इन्हें सच्ची भावनाओं का संदेशवाहक बनाना चाहिए।
[डॉ. सुरचना त्रिवेदी]
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