मर्यादा
मर्यादा के अर्थ हैं-न्याय मार्ग में स्थित, सीमा, नीति का बंधन, निश्चित प्रथा या व्यवस्थित नियम आदि।
मर्यादा के अर्थ हैं-न्याय मार्ग में स्थित, सीमा, नीति का बंधन, निश्चित प्रथा या व्यवस्थित नियम आदि। न्याय मार्ग में स्थिति धर्म-मर्यादा है। मनुष्य के कर्तव्य कर्म अनेक हैं, परंतु उनकी अपनी सीमा होती हैं, जिनका उल्लंघन न करते हुए एक आदर्श जीवन बिताना ही मर्यादा पालन करना है। हमारे जीवन में अनेक संघर्ष होते हैं। पल-पल कर्तव्यों और रुकावटों के बीच टकराहट होती है। उस समय यह तय करना आवश्यक हो जाता है कि हम कहां तक बढ़ सकते हैं, यही हमारी मर्यादा कहलाती है। हम परिवार में रहते हैं। हमारे माता, पिता, भाई, बहन और अन्य सभी सदस्यों के बीच रिश्तों की मर्यादाएं होती हैं। इसी प्रकार समाज, ग्राम, राज्य और राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्यों की भी अनेक मर्यादाएं होती हैं जिनका निर्वहन करना हमारा परम दायित्व होता है।
वेदों में मुख्यत: सात मर्यादाएं बताई गई हैं। पहली मर्यादा यह है कि जहां मन मिले हों वहां श्रेष्ठ साधनों से सिद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। दूसरी मर्यादा है-कभी एक दूसरे से रुष्ट न होना। परस्पर भूलों को क्षमा करते हुए ही वातावरण को प्रसन्नतापूर्ण बनाकर ही उन्नति की जा सकती है। तीसरी मर्यादा बड़ों का सम्मान करना है। आयु, धन, बल, पद और विद्या में जो बड़े होते हैं उन्हें शास्त्रों में वृद्ध जन कहा गया है। इनका सदैव सम्मान करने का आदेश दिया गया है। चौथी मर्यादा है- सतर्कता। हर काम सोच-समझकर सावधानी के साथ करना चाहिए। प्रत्येक माता-पिता का कर्तव्य है कि न केवल स्वयं हर निर्णय और कार्य में सावधानी बरतें, बल्कि अपनी संतान को भी संस्कारित कर जीवन पूर्ण सजगता से बिताने के लिए प्रेरित करें। पांचवीं मर्यादा है-सबकी उन्नति करते हुए अपनी उन्नति करना। छठी मर्यादा है उत्तरदायित्वों का तत्परता के साथ निर्वहन करना। इस प्रकार के कार्य और व्यवहारों से जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। सातवीं मर्यादा है-सबके साथ मधुर वचन बोलते हुए अच्छा व्यवहार करना, जिससे सौहार्द उत्पन्न करते हुए वातावरण सुखमय बनाया जा सकता है। भगवान श्रीराम का जीवन इन समस्त मर्यादाओं का प्रमाण रहा है, इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।
[कृष्णकांत वैदिक]
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