आध्यात्मिक दृष्टि
सच पूछा जाए तो इस ब्रह्मांड को समझने के लिए दो दृष्टियों की आवश्यकता है। एक भौतिक दृष्टि और दूसरी आध
सच पूछा जाए तो इस ब्रह्मांड को समझने के लिए दो दृष्टियों की आवश्यकता है। एक भौतिक दृष्टि और दूसरी आध्यात्मिक दृष्टि। भौतिक दृष्टि के संदर्भ में सभी पहले से ही अवगत हैं। अब आध्यात्मिक दृष्टि से इस ब्रह्मांड को समझने का प्रयास किया जाए। अध्यात्म में हमारे संतों ने अपनी बौद्धिक शक्ति का प्रयोग किया, क्योंकि भौतिक शरीर से किसी खास सीमा तक ही ब्रह्मांड को समझा जा सकता है, लेकिन सूक्ष्म शरीर से संपूर्ण ब्रह्मांड को समझा जा सकता है। सूक्ष्म शरीर पंच भौतिक पदार्थो से बाहर होता है। इसके लिए हमें स्वीकार कर लेना होगा कि हमारा भौतिक शरीर और सूक्ष्म शरीर अलग है।
विज्ञान पहले तो सूक्ष्म शरीर को नहीं मानता था, लेकिन अब वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं कि सूक्ष्म शरीर का फोटो भी लिया जा सकता है। प्रो. डगलस ने भी स्वीकार किया है कि शरीर अगर बीमार पड़ता है तो सूक्ष्म शरीर का इलाज पहले किया जाना चाहिए, क्योंकि बाहर की बीमारी भीतर की बीमारी का विस्तार है। वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी स्वीकारा है कि हम जब अपनी स्थूलता छोड़ दें तो असीमित बन सकते हैं। उन्होंने 'टाइम एंड स्पेस' में इसकी चर्चा की है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि हम पदार्थ से बंध गए हैं। जब हम इस स्थूलता को छोड़ दें तभी विराट प्रकृति का दर्शन कर सकते हैं। अध्यात्म कहता है कि इस ब्रह्मांड को समझने के लिए सूक्ष्म शरीर ही समर्थ हो सकता है, क्योंकि वह पदार्थ के साथ बंधा नहीं है। किसी दूसरे लोक में जाने के लिए हमें यान की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन सूक्ष्म शरीर को कहीं भी आने-जाने में यान की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसलिए हमारे संतों ने अपनी आध्यात्मिक शक्ति से अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा इस ब्रह्मांड का अनुभव प्राप्त किया। आज भी जब तक हम अपने सूक्ष्म शरीर की दिव्य शक्तियों का प्रयोग नहीं करेंगे तब तक कोई भी रहस्य समझ में नहीं आएगा। हमारे आध्यात्मिक संतों ने अपने अनुभवों से यह स्पष्ट घोषणा की है कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड किसी दिव्य ऊर्जा का प्रत्यक्षीकरण है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस ब्रह्मांड में केवल ऊर्जा है जो विभिन्न रूपों में दिखती है। विज्ञान भी मानता है कि पदार्थ की अंतिम इकाई ऊर्जा है, तरंग है और अध्यात्म बहुत पहले घोषणा कर चुका है कि यह संसार माया है, पानी का बुलबुला है, जो विभिन्न पदार्थ बनकर दिख रहे हैं।
[आचार्य सुदर्शन महाराज]
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