अहंकार
अहंकार नकारात्मक भाव की चरम सीमा और परम शिखर है। यह फूला हुआ एक गुब्बारा है, जो कब फट जाएगा, कहां वि
अहंकार नकारात्मक भाव की चरम सीमा और परम शिखर है। यह फूला हुआ एक गुब्बारा है, जो कब फट जाएगा, कहां विस्फोट हो जाएगा, कहा नहीं जा सकता। 'मैं ही मैं हूं', में इसकी अभिव्यक्ति होती है। अहंकार अपने अलावा किसी और को बर्दाश्त नहीं कर सकता। किसी और के होने का मतलब है-अहंकार को भीषण चुनौती देना। इसलिए यह विध्वंसात्मक वृत्ति का प्रबल पक्षधर और सृजन का प्रबल विरोधी है। यह विसर्जन में विश्वास नहीं रखता, अपने झूठे स्वरूप में प्रसन्न होता है। अहंकार का अर्थ है-अनंतता के टुकड़े करने का मिथ्या भ्रम। ऋषियों की मान्यता के अनुसार अहंकार भ्रम और भ्रांति है, जो आत्म प्रदर्शन करने के लिए पग-पग पर पाखंड रचने के लिए प्रेरित करता है। इस तथ्य को न समझने वाला अहंकारी होता है और समझने-जानने वाले को यथार्थवादी और बुद्धिमान कहा जाता है। अहंकार से परिस्थिति और परिवेश का आकलन नहीं हो सकता। अहंकार विवेक का प्रतीक नहीं है। यह मूढ़ता का प्रबल पर्याय है। इसमें ग्रहणशीलता नहीं होती। वह दूसरों जैसा श्रेष्ठ बनना नहीं चाहता, उससे कई गुना श्रेष्ठ दिखना चाहता है। इसलिए दूसरों की तुलना में अपने को विशिष्ट मान बैठने पर अहंकार की उत्पत्ति होती है। बलिष्ठता, सुंदरता, संपन्नता, पद, अधिकार आदि उसके अनेक कारण हो सकते हैं। कई बार नहीं, बल्कि बारंबार भ्रम ही उसका निमित्त बना हुआ होता है।
अहंकार से भावुकता का मिलन और संयोग बड़ा ही खतरनाक होता है। यह एक बड़ा विषम दुर्योग है। अहंकारी यदि भावुक प्रकृति का हो तो संदिग्ध चरित्र का निर्माण करता है। यह कब और कैसे व्यवहार करेगा, कहा नहीं जा सकता है। यह दो विरोधी प्रवृत्तियों में जीता है, जहां कोई मेल नहीं है, कोई सामंजस्य-तारतम्य नहीं है। अहंकार का नकारात्मक स्वरूप जितना भयावह और भीषण होता है, उसका विधेयात्मक पक्ष उतना ही सृजनशील हो सकता है। अहंकार की प्रकृति प्राण, साहस, दृढ़ निश्चय और संकल्प से भरीपूरी होती है। अहं प्रधान व्यक्ति का रचनात्मकता की ओर उठा कदम उसे अपार धैर्यवान, सहनशील और सहिष्णु बना देता है। ऐसा संकल्पवान जब एक बार कोई काम हाथ में लेता है तो अपार धैर्य के साथ उसको पूरा करने के लिए संलग्न हो जाता है।
[डॉ. सुरचना त्रिवेदी]
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