Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वास्तविक संन्यास

    By Edited By:
    Updated: Mon, 19 Jan 2015 05:39 AM (IST)

    संन्यासी होना एक असाधारण घटना है। संन्यासी किसी क्षेत्र के अंतर्गत नहीं समाता। वह तो विराट का पुजारी

    संन्यासी होना एक असाधारण घटना है। संन्यासी किसी क्षेत्र के अंतर्गत नहीं समाता। वह तो विराट का पुजारी है और असीम का सहचर। संन्यासी जीवन एक अतिदुर्लभ और अमूल्य जीवन है। जहां भी ये होते हैं, समस्त परिवेश इनकी दिव्य सुवास से भर उठता हैं। इनकी छांव तले इंसानियत पलती-विकसित होती है, परंतु ये किसी की छांव तले पनाह नहीं लेते, केवल परमात्मा के नाम तले रहते हैं। संन्यासी का जीवन त्याग और तप का जीवन होता है। उसका आत्म-तेज सहज आकर्षण पैदा करता है। वह सदा निडर, निर्भीक और आत्मविश्वास से लबरेज होता है। इसकी एक हुंकार समाज और विश्व को हिलाकर रख देती है। वह लोगों की सेवा में और अपनी सत्ता के केंद्र में जीता है। संन्यासी का जीवन संघर्ष का जीवन होता है, उसे इस संसार में कुछ भी पाना नहीं होता। संसार उसके लिए एक मुट्ठी राख के समान होता है, जिसका कोई भी मूल्य नहीं होता। जहां जैसा जो कुछ मिल जाए, प्रभु की कृपा मानकर ग्रहण कर लेता है। उसके सामने निंदा और स्तुति दोनों ही शाब्दिक खेल होते हैं, जिनका कोई अर्थ नहीं होता। अर्थ तो उसके भावों की गहराई में उठता है, संघषरें के पल में वह निखरता है और वैराग्य में संवरता है। वह इन्हीं गहरे अथरें की तलाश में रहता है। एक आदर्श संन्यासी का कोई धर्म नहीं होता। वह सभी प्रकार के धमरें से ऊपर होता है। उसे कोई भी वस्तु, परिस्थिति और व्यक्ति लुभा नहीं सकता। वह सत्य, ज्ञान और आनंद, सच्चिदानंद की दिव्यधारा में सदा नि‌र्द्र्वंद्व भाव से बहता चलता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    आज संन्यास का अर्थ पलायन हो गया है-कर्तव्यों से पलायन। अनेक बाबा खाली बैठे निष्काम भक्ति का राग गाते दिखाई देते हैं, जबकि स्वयं उनकी लोभ-लिप्सा का जाल व्यापक और दूषित होता है। कुछ संन्यासी आज भौतिकता में उलझ गए हैं। कहीं कुछ ऐसा हुआ है, जिससे उनकी मर्यादा घटी है। हमें उन्हें उनकी गरिमा का बोध कराना होगा। मौजूदा संदर्भ में हमें ऐसी दृष्टि विकसित करनी है, जो सच्चे संन्यासी की पहचान कर सके। संन्यासी की अवधारणा भले ही समाज में आज कम या नगण्य दिखाई देती है, फिर भी जिस समाज ने ऐसी उदात्त परिकल्पना की हो वह समाज और राष्ट्र इनसे रिक्त कैसे रह सकेगा, क्योंकि अपनी संस्कृति और समाज को संन्यासी ही दिशा देते रहे हैं।

    [डॉ. सुरचना त्रिवेदी]

    comedy show banner
    comedy show banner