ज्योतिष और विज्ञान
अस्तित्व असीम और अनंत। प्रकृति की गतिविधि में अनेक प्रपंच हैं। कार्य कारण की जटिल श्रृंखला है। कार्य
अस्तित्व असीम और अनंत। प्रकृति की गतिविधि में अनेक प्रपंच हैं। कार्य कारण की जटिल श्रृंखला है। कार्य कारण आधारित प्रयोग सिद्ध ज्ञान विज्ञान है। आइंस्टीन ने 'आइडियाज एंड ओपीनियनंस' में कहा है 'जिसने उन उपकरणों और विधियों का प्रयोग सीख लिया है जो प्रत्यक्ष रूप में वैज्ञानिक प्रतीत होते हैं, मैं उन्हें वैज्ञानिक नहीं मानूंगा। मैं उनकी बात कर रहा हूं जिनमें वैज्ञानिक मानसिकता है। आइंस्टीन का जोर वैज्ञानिक मानसिकता पर है। लंदन से प्रकाशित साइंस इन हिस्ट्री में जेडी बर्नाल ने वैज्ञानिक मानसिकता का खुलासा किया है कि पूछे जाने योग्य सामान्य प्रश्नों के उत्तर सामाजिक विकास के किसी चरण में देना संभव हो, तो उनके उत्तरों का प्रस्तुतीकरण, अनुसंधान, परीक्षण और प्रयोग अंशत: मानसिक अंशत: शारीरिक कायरें से संपन्न हुआ है। इन्हीं कायरें का समुच्चय वैज्ञानिक पद्धति है। अतीत में जिन प्रश्नों के उपयोगी उत्तर दिए जा सकते थे वे अधिकतर गणित, खगोल या भौतिकी के क्षेत्रों के थे। ज्योतिष गणित, भौतिकी आधारित खगोल विज्ञान है। मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी व ज्योतिषी की भेंट पर हल्ला-गुल्ला है। विज्ञान अंधविश्वास नहीं होता बावजूद इसके ईरानी को अंधविश्वासी कहा गया। ईरानी ज्योतिष के आधार पर सरकार चलातीं तो गलती होती। संविधान में विश्वास की स्वतंत्रता है।
ज्योतिर्विज्ञान खगोलीय पिंडों के अध्ययन का विज्ञान है। विज्ञान को अंधविश्वास बताना भी अपने ढंग का अंधविश्वास है। मणिशंकर अय्यर जैसे अध्ययनशील मित्र अंधविश्वासी क्यों नहीं हैं? ज्योतिषी अनेक भविष्यवाणियां करते हैं। वे गलत हो सकती हैं और सही भी। सही हो जाने को संयोग कहा जाता है, लेकिन गलती के आधार पर पूरे विज्ञान को अंधविश्वास। अनेक चिकित्सक सही उपचार नहीं कर पाते। चिकित्सा विज्ञान को अंधविश्वास नहीं कहा जाता। ज्योर्तिविज्ञान का विषय भविष्यवाणी ही नहीं है। भविष्यवाणी से जुड़ा 'फलित भाग' इस विज्ञान का छोटा हिस्सा है। विश्वास है कि भविष्य नहीं जाना जा सकता, लेकिन विरल ब्रह्मांड विज्ञानी स्टीफेन हाकिंग्स ने भविष्य को सदा अज्ञात विषय नहीं माना। उन्होंने दो तीन बरस पहले कहा था कि क्या हम समय के पार जाने वाला विमान बना सकते हैं? अतिगतिशील विमान समय का अतिक्रमण कर ले तो क्या भविष्य में नहीं पहुंच सकता? प्रश्न फिलहाल फैंटेसी है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से दिल्ली तक की विमान यात्रा 35 मिनट की है। गति बढ़ाकर यह 10 मिनट, 5 मिनट या 2 मिनट में भी पूरी हो सकती है। क्या यह शून्य मिनट में भी हो सकती है? तब वर्तमान समय का अस्तित्व क्या होगा?
वैज्ञानिकों के प्रश्नों, प्रयत्नों को अंधविश्वासी नहीं कहा जाता। हाकिंग्स ने पीछे माह जिज्ञासा पर जोर दिया और कहा कि ब्रह्मांड बिना आधार के कैसे लटका है? इस जिज्ञासा पर काम होना चाहिए। हजारों बरस पहले ऋग्वेद के ऋषि ने कहा था सूर्य किस आधार पर लटका हुआ है? हम नहीं जानते, जानना चाहते हैं। इसके बावजूद ऋग्वेद को वैज्ञानिक ग्रंथ नहीं माना जाता। वैदिक ऋषियों ने सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध और बृहस्पति आदि ग्रहों की गतिविधि पर ध्यान दिया था। पृथ्वी सौरमंडल का ग्रह है। खगोल का प्रभाव भूगोल पर भी पड़ता है। वैदिक पूर्वज यज्ञप्रिय उत्सवधर्मा थे। अतिरिक्त जिज्ञासा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भरे-पूरे। उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं के मद्देनजर ग्रहों, नक्षत्रों की गतिविधि पर ध्यान दिया। ज्योतिर्विज्ञान का विकास किया। शिक्षा, कल्प , व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष वैदिक ज्ञान के छह अंग बने।
बेशक अंधविश्वास उचित नहीं होता। न ज्योतिषी पर, न चिकित्सक पर, न दुकानदार पर और न ही स्वयं की क्षमता पर, लेकिन इनसे जुड़े ज्ञान-विज्ञान अंधविश्वास नहीं हैं। आधुनिक विज्ञान का विकास शून्य से नहीं हुआ। अस्तित्व में गति और गति के अध्ययन से कालगणना का विकास वैदिक काल में ही हो चुका था। ऋग्वेद में 12 माह और 720 रात्रि-दिवस जोड़ों का उल्लेख है। लोकमान्य तिलक अंधविश्वासी नहीं थे। उन्होंने नक्षत्र योग के आधार पर ऋग्वेद का रचनाकाल 10-15 हजार वर्ष से भी प्राचीन बताया है। आकाश में अरबों तारे हैं। तारों का समूह नक्षत्र कहा जाता है। एक तारा समूह की आकृति मृगशिर जैसी है, वह मृगशिरा है। तिलक के प्रख्यात शोधग्रंथ का नाम 'ओरायन'-मृगशिरा है। हाथ जैसी आकृति वाला नक्षत्र हस्त है। ऐसे ही 27 नक्षत्र हैं और 9 ग्रह। 7 ग्रह प्रत्यक्ष हैं। इन्हीं के नाम पर 7 दिन। राहु, केतु अति प्रभावकारी होकर भी अदर्शनीय। सवा दो नक्षत्रों से मिलकर बनी 12 राशियां हैं। इन सबकी गति, युति, योग संयोग का गणितीय विवेचन ज्योतिष का मुख्य उपकरण है। ईश्वर वैज्ञानिक रूप में असिद्ध है। ज्योतिर्विज्ञान में उसकी चर्चा तक नहीं।
दरअसल भारत का राजनीतिक सेक्युलरवाद ही अंधविश्वासी है। वे पीरों-मजारों पर चादर चढ़ाते हैं, मजहबी आस्था को आदाब अर्ज करते हैं, लेकिन प्राचीन भारतीय खगोल विद्या, ज्ञान, गणित को अंधविश्वास बताते हैंज् च्योतिष कालगणना का भौतिक विज्ञान है। आर्यभट्ट ने पांचवीं सदी में ही सूर्य के स्थिर होने व पृथ्वी के चक्कर लगाने की घोषणा की थी। कापरनिकस ने यही बात 15वीं सदी में कही। भारत जब सूर्य, चंद्र और तारों से दीप्त सौरमंडल के तमाम रहस्य जान चुका था तब गैलीलियो पृथ्वी को घूमने वाली बताने के कारण नजरबंद रहे। बौद्धिकों की दृष्टि में चर्च का अंधविश्वास पवित्र है और भारतीय प्रज्ञान अंधविश्वास। खगोल, सूर्य, चंद्र और तारे, ग्रह और समूचा सौर मंडल वैदिक काल से ही भारतीय जिज्ञासा रहे हैं। भारत की यही ज्ञान निधि यूनान पहुंची। पाइथागोरस जैसे गणितज्ञ और दार्शनिक भी प्रभाव में आए। कालगणना और खगोल के लिए ही गणित की खोज हुई। ज्
च्योतिष गणित है और गणित अंधविश्वास नहीं होती। गणित के अंक प्रतीक भारत में ही उगे। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार 1 से 10 अंकों केप्रतीक भारत में ही उत्पन्न हुए। अरबों ने उनका व्यापक प्रयोग किया। उन्हर्ें ंहदू अरेबिक अंक कहा जाता है। अरबों से यह अंक यूरोप को मिले। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के लिए गणित जरूरी है। स्थान के अनुसार शून्य के प्रयोग द्वारा अंक की मूल्यवृद्धि भी भारतीय प्रतिभा का चमत्कार है। अंक के दाएं शून्य की शक्ति दस गुनी है और बाएं बेमतलब। ऋग्वेद में संख्यावाची शब्दों की भरमार है-सोम 10 उंगलियों से पीसते हैं। सोम के 10 पात्र हैं। दिशाएं 10 हैं। इंद्र से प्रार्थना है कि वे 20, 30, 40, 50, 60 और 70 घोड़ों के साथ आएं। मैकडनल और कीथ ने वैदिक साहित्य में दस हजार के लिए अयुत, एक लाख के लिए नियुत और 10 लाख के लिए प्रयुत आदि शब्द पाए हैं। गणित का ऐसा विकास सांसारिक है, कालगणना से जुड़ा है। समय की छोटी इकाइयां पल, विपल, घटी आदि भी आश्चर्यचकित करती हैं। सारी दुनिया में इस भारतीय विद्या का प्रभाव है। अमेरिका, जापान, जर्मनी, अरब और इंग्लैंड में भज्। च्योतिष अंधविश्वास नहीं, खगोल और प्रकृति पर उसके प्रभाव के अध्ययन का विषय है।
[लेखक हृदय नारायण दीक्षित, उप्र विधान परिषद के सदस्य हैं]
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