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    किस देश को कहा जाता है 'शुगर बाउल ऑफ द वर्ल्ड', आखिर क्या है इसकी वजह

    Updated: Tue, 09 Dec 2025 04:59 PM (IST)

    दुनिया भर में चीनी की मांग कभी कम नहीं हुई है। इसी वजह से समय-समय पर कुछ देश अपनी विशाल उत्पादन क्षमता के कारण 'शुगर बाउल ऑफ द वर्ल्ड' कहे जाते हैं। क ...और पढ़ें

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    किस देश के पास है 'Sugar Bowl of the World' का खिताब (Image Source: AI-Generated)

    लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। चीनी हमारी रसोई का एक ऐसा हिस्सा है जिसके बिना जिंदगी का स्वाद अक्सर अधूरा-सा लगता है। इसी 'मीठे सोने' के उत्पादन के लिए दुनिया में एक देश को 'Sugar Bowl of the World' का खिताब दिया गया था। दशकों तक इस सुनहरे ताज पर क्यूबा का राज रहा, लेकिन फिर वक्त बदला। क्रांति, राजनीति और आर्थिक चुनौतियों ने क्यूबा की बादशाहत को हिलाकर रख दिया। जिसका फायदा ब्राजील ने उठाया। आज अपने विशाल बागानों के दम पर ब्राजील ने क्यूबा को पछाड़ दिया है और दुनिया में चीनी का बादशाह बना बैठा है। आइए जानते हैं इस दिलचस्प बदलाव की पूरी कहानी।

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    Sugar Bowl of the World

    (Image Source: AI-Generated)

    कैसे क्यूबा बना 'शुगर बाउल ऑफ द वर्ल्ड'

    क्यूबा में गन्ने की कहानी शुरू होती है साल 1523 से, जब स्पेनिश उपनिवेशकों ने यहां इसकी खेती की शुरुआत की। शुरुआत में उत्पादन बहुत कम था, लेकिन 18वीं सदी तक स्थिति बदलने लगी और क्यूबा वैश्विक चीनी बाजार में एक बड़ी ताकत बनकर उभरा।

    बता दें, हैती उस समय दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादकों में गिना जाता था, इसलिए क्यूबा ने प्रतिस्पर्धा के लिए बड़े पैमाने पर गुलाम मजदूरी का इस्तेमाल किया, जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ा। 1790 से 1805 के बीच क्यूबा की चीनी उत्पादन क्षमता 14,000 टन से बढ़कर 34,000 टन हो गई- यानी 142% की रिकॉर्ड बढ़ोतरी।

    जब क्यूबा ने खो दिया अपना 'सुनहरा ताज'

    क्यूबा की स्वतंत्रता के बाद यह उद्योग और भी मजबूत हुआ। अमेरिकी सरकार, क्यूबा सरकार और कई अमेरिकी चीनी कंपनियों ने मिलकर आधुनिक शुगर मिलों में बड़ा निवेश किया, जिससे उत्पादन क्षमता और बढ़ती गई, लेकिन 1959 की क्यूबा क्रांति के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। अमेरिका और क्यूबा के बीच तनाव बढ़ने से अमेरिकी निवेश रुक गया और यह उद्योग तेजी से गिरावट की ओर बढ़ा। राजनीतिक और आर्थिक बाधाओं ने धीरे-धीरे क्यूबा की वैश्विक पकड़ को कमजोर कर दिया और उसका ‘शुगर बाउल ऑफ द वर्ल्ड’ वाला दर्जा छिन गया।

    गन्ने ने बदल दी ब्राजील की तकदीर

    ब्राजील में गन्ना 1516 में, पुर्तगाली शासन के दौरान लाया गया था। पुर्तगालियों ने चीनी को आर्थिक शक्ति और क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने का साधन माना, इसलिए शुरुआती दौर से ही इसे बड़े पैमाने पर विकसित किया गया। इसके बाद डचों ने पेर्नाम्बूको क्षेत्र पर कब्जा किया, जिससे उद्योग में और तेज उछाल आया। बेहतर कृषि तकनीक, बड़े बागान और गुलाम मजदूरी पर आधारित श्रम- इन सभी ने उत्पादन को और मजबूत किया। धीरे-धीरे चीनी ब्राजील के सबसे अहम औपनिवेशिक उद्योगों में शामिल हो गई।

    किस देश के लोग खाते हैं सबसे ज्यादा चीनी?

    आज भी ब्राजील की अर्थव्यवस्था में चीनी की बड़ी भूमिका है। देश के 90% से अधिक उत्पादन का केंद्र दक्षिणी और मध्य क्षेत्रों में है, जो विशाल गन्ने के खेतों और अनुकूल जलवायु के लिए प्रसिद्ध हैं। इन मजबूत प्राकृतिक और आर्थिक आधारों ने ब्राजील को वह मुकाम दिलाया, जो कभी क्यूबा के पास था- दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक।

    चीनी का स्वाद वैश्विक है और इसकी खपत भी। सबसे ज्यादा चीनी सेवन करने वाला देश है संयुक्त राज्य अमेरिका, जहां औसत व्यक्ति रोज करीब 126 ग्राम चीनी लेता है। जर्मनी, नीदरलैंड और आयरलैंड जैसे यूरोपीय देशों में भी खपत काफी अधिक है।

    क्यों बदला ‘शुगर बाउल ऑफ द वर्ल्ड’ का ताज?

    क्यूबा का इतिहास बताता है कि कैसे उपनिवेशवाद, श्रम प्रणाली और विदेशी निवेश ने देश को चीनी के शिखर तक पहुंचाया और राजनीतिक तनावों ने उतनी ही तेजी से उसे नीचे गिराया। उधर, ब्राजील ने अनुकूल जलवायु, विशाल भूमि, मजबूत कृषि ढांचे और लगातार सरकारी-आर्थिक समर्थन के दम पर खुद को दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक बना लिया। कभी क्यूबा को ‘शुगर बाउल ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाता था, लेकिन आज यह पहचान मजबूती से ब्राजील के पास है और फिलहाल इसे पीछे छोड़ना किसी देश के लिए आसान नहीं दिखता है।

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