क्या है Kashmir की ताक-धज्जी दीवारी वास्तुकला, जिसके आगे भूकंप भी हो जाता है बेअसर
क्या आपने कभी सोचा है कि भूकंप पर आने पर भी कुछ इमारतें अपनी जगह पर क्यों खड़ी रहती हैं? जबकि नई बनी बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें पल भर में गिर जाती हैं? अगर नहीं तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। दरअसल Kashmir में सदियों से चली आ रही एक ऐसी ही अद्भुत निर्माण कला है जो इमारतों को भूकंप से बचाती है।

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। भूकंप कुदरत का ऐसा झटका है, जो पलक झपकते ही मजबूत से मजबूत इमारतों को ढहा देता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि Kashmir में सैकड़ों साल पहले बनाई गई इमारतें आज भी खड़ी हैं और भूकंप का असर उन पर लगभग न के बराबर होता है? यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि कश्मीर की पारंपरिक वास्तुकला (Earthquake-Resistant Architecture) का कमाल है, जिसे स्थानीय कारीगरों ने बड़े हुनर और समझदारी से विकसित किया था।
कश्मीर की 'ताक' तकनीक
कश्मीर की पुरानी इमारतों में 'ताक' नाम की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। ताक का मतलब है- ईंट के बने खंभों के बीच बनाई गई खिड़की और उनके बीच की जगह। इस निर्माण शैली में दीवारों और फर्श को लकड़ी की परतों से जोड़ा जाता था। लकड़ी की यह परत भूकंप के समय पूरी इमारत को संतुलन में रखती थी, जिससे दीवारें टूटने की बजाय लचककर झटकों को झेल लेती थीं।
देवदार की लकड़ी का कमाल
कश्मीरी घरों की सबसे बड़ी खूबी थी- देवदार की लकड़ी। यह लकड़ी न सिर्फ मजबूत होती है, बल्कि इसमें समय के साथ सिकुड़ने या फटने की संभावना भी कम रहती है। बता दें, घर की दीवारें, बीम और छत तक में इस लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था। बाहर से दीवारों पर प्लास्टर चढ़ा दिया जाता, लेकिन अंदर पूरा ढांचा लकड़ी पर टिका रहता। यही वजह है कि इमारतें भूकंप आने पर पेड़ों की तरह झूलती हैं और फिर अपनी जगह पर वापस टिक जाती हैं।
कश्मीरी हैसियत का पैमाना
कश्मीर में ताक तकनीक सिर्फ मजबूती का प्रतीक नहीं थी, बल्कि यह सामाजिक प्रतिष्ठा की भी निशानी मानी जाती थी। जितने ज्यादा ‘ताक’ यानी दरवाजे और खिड़कियां, उतना बड़ा घर और उतनी ऊंची हैसियत। श्रीनगर का मशहूर जलाली हाउस इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसमें 12 ताक बनाए गए थे। आज भी यह घर उसी तकनीक की वजह से सलामत खड़ा है।
धज्जी दीवारी और कीटर क्रिबेज
ताक के अलावा कश्मीरी कारीगरों ने दो और तकनीकों का इस्तेमाल किया- धज्जी दीवारी और कीटर क्रिबेज। धज्जी दीवारी में लकड़ी और ईंटों को जाली की तरह पिरोया जाता था, जिससे दीवारें हल्की होते हुए भी मजबूत रहती थीं। वहीं, बड़ी इमारतों को टिकाऊ बनाने के लिए कीटर क्रिबेज तकनीक अपनाई जाती थी। इन सभी शैलियों में एक चीज कॉमन थी- लकड़ी का समझदारी से इस्तेमाल।
भूकंप में खड़े रहे ताक और धज्जी वाले घर
साल 2005 में कश्मीर में आए बड़े भूकंप ने हजारों लोगों की जान ले ली और आधुनिक स्टील-कंक्रीट की कई इमारतें ढह गईं, लेकिन हैरानी की बात है कि ताक और धज्जी दीवारी से बने घर लगभग सुरक्षित रहे। यह साबित करता है कि सदियों पुरानी यह तकनीक आज भी कितनी प्रासंगिक है।
सदियों से भूकंप से बचा रही है यह वास्तुकला
अगर आप श्रीनगर के खानकाह-ए-मौला या अन्य पुरानी मस्जिदों को देखें, तो आपको उनकी छतें पगोड़ा शैली की मिलेंगी, यानी कई मंजिला, ऊंची और शंक्वाकार। ये इमारतें भूकंप आने पर झूलती तो हैं, लेकिन गिरती नहीं। यही पारंपरिक वास्तुकला की सबसे बड़ी खूबी है।
भारतीय कारीगरों की नायाब देन
कश्मीर की ये इमारतें सिर्फ स्थापत्य कला की मिसाल नहीं, बल्कि भारतीय कारीगरों की दूरदर्शिता और हुनर का सबूत भी हैं। आज जब आधुनिक निर्माण शैली बार-बार भूकंप में नाकाम साबित हो रही है, ऐसे में कश्मीर की सदियों पुरानी यह तकनीक हमें टिकाऊ और सुरक्षित वास्तुकला की नई राह दिखाती है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।