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    Samudra Manthan: आखिर क्यों हुआ था समुद्र मंथन, उत्पन्न हुए 14 रत्नों का इस तरह हुआ बंटवारा

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Sun, 06 Aug 2023 03:42 PM (IST)

    Samudra Manthan Story सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद त्रिदेव अर्थात- भगवान विष्णु ब्रह्मा और महेश (शिव) के निर्देशन में क्षीरसागर को मथा गया था। यह मंथन देवताओं और दानवों द्वारा किया गया था। वासुकी नाग की सहायता से समुद्र मंथन किया गया जिसके एक छोर पर सभी देवता गण उपस्थित थे तो दूसरी ओर कमान दानवों ने संभाली हुई थी।

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    Samudra Manthan Story समुद्र मंथन में उत्पन्न हुए थे 14 रत्न।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Samudra Manthan: पौराणिक धर्म ग्रंथों में समुद्र मंथन की कथा मिलती है। जिस दौरान 14 प्रकार के रत्न उत्पन्न हुए थे। इस मंथन में अमृत भी उत्पन्न हुआ था जिसे लेकर देवता और दानवों में महा-संग्राम छिड़ गया था जिसे देवासुर संग्राम के तौर पर जाना जाता है। आइए जानते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान कौन से रत्न उत्पन्न हुए थे और उन्हें किस प्रकार बांटा गया।

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    इस कारण हुआ समुद्र मंथन

    धर्म ग्रंथों के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग ऐश्वर्य, धन और वैभव आदि से हीन हो गया।तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे। यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकी नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया।

    निकले थे ये 14 रत्न

    1. विष- समुद्र मंथन के दौरान सर्वप्रथम कालकूट विष निकला था। जिसके ताप से समस्त सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब इसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया। इस विष के कारण महादेव का कंठ नीला पड़ गया जिस कारण उन्हें नीलकंठ नाम मिला।

    2. कामधेनु- समुद्र मंथन के दौरान दूसरे नंबर पर एक दिव्य गाय उत्पन्न हुई जिसे कामधेनु के नाम से जाना जाता है। यह गाय अग्निहोत्र (यज्ञ) की सामग्री उत्पन्न करने वाली थी, इसलिए ब्रह्मऋषियों ने इसे ग्रहण किया।

    3. उच्चै:श्रवा- समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुए इस सफेद रंग के अश्व को घोड़ो का राजा कहा जाता है। इसे असुरों के राजा बलि ने अपने पास रख लिया।

    4. ऐरावत- यह एक सफेद रंग हाथी था जिसके चार दाँत थे। इस हाथी की चमक कैलाश पर्वत से भी अधिक थी। इसे देवराज इंद्र ने अपना वाहन बनाया।

    5. कौस्तुभ मणि- समुद्र मंथन में पांचवें क्रम पर कौस्तुभ मणि उत्पन्न हुई, जिसे भगवान विष्णु ने अपने हृदय पर धारण कर लिया।

    6. कल्पवृक्ष- इस वृक्ष को “कल्पद्रूम” एवं “कल्पतरू” भी कहा जाता हैं। इच्छापूर्ति वाला एक दिव्य वृक्ष है। इसे देवताओं ने स्वर्ग में स्थापित कर दिया।

    7. रंभा- समुद्र मंथन के दौरान रंभा नाम की एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो ब्रह्मांड में सबसे सुंदर नारी मानी गई। उसकी चाल मन को लुभाने वाली थी। ये भी देवताओं के पास चली गई।

    8. देवी लक्ष्मी- धन की देवी लक्ष्मी भी क्षीर सागर से प्रकट हुईं। असुर, देवता, ऋषि आदि सभी चाहते थे कि लक्ष्मी उन्हें मिल जाएं, लेकिन माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु का वरण किया।

    9. मदिरा- मदिरा अर्थात वारुणी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से ही हुई थी। भगवान की अनुमति से दैत्यों ने इसे ग्रहण किया।

    10. चंद्रमा - पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से ही हुई है। चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया।

    11. पारिजात पुष्प- समुद्र मंथन से पारिजात वृक्ष निकला। इस वृक्ष की खासियत यह थी कि इसे छूने से थकान मिट जाती थी। यह भी देवताओं के हिस्से में गया।

    12. पांचजन्य शंख- समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुआ पांचजन्य शंख विजय का प्रतीक माना जाता है। यह शंख श्री विष्‍णु को मिला।

    13. धन्वन्तरि- समुद्र मंथन से सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले। इन्हें भगवान विष्णु के अंशावतार और आयुर्वेद का जनक माना गया है।

    14. अमृत- समुद्र मंथन से प्राप्त हुआ अंतिम रत्न “अमृत” था। इसके निकलते ही देव-दानवों में इसे ग्रहण करने के लिए झगड़ा होने लगा। अंत में भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिलाकर अमर कर दिया।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'