'गणित सिर्फ पैटर्न नहीं, सोच और सर्वाइवल का तरीका है', एक्सपर्ट ने बताया- हर फैसले के पीछे है मैथ्स
अगर आप भी पढ़ाई खत्म होने पर राहत की सांस लेने के बारे में सोच रहे हो कि गणित से पीछा छूट जाएगा तो आप गलत है। असल जिंदगी में गणित वहां से शुरू होता है जहां किताबें बंद होती हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे एक रिसर्च में दावा किया गया है। जानिए एक्सपर्ट का क्या कहना है इस बारे में ...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मेरा 11 साल का भतीजा पढ़ने में खासा अच्छा है। सभी विषयों में नंबर भी अच्छे लाता है, लेकिन गणित के नाम पर उसको सिरदर्द शुरू हो जाता है या नींद आने लगती है। मेरे भाई का हाल भी कुछ ऐसा ही था। जब 10वीं के बाद स्ट्रीम चुनने की बारी आई तो उसने सबसे पहले गणित से पीछा छुड़ाया, लेकिन फिर भी गणित छूट नहीं पाया। मेरे भाई की तरह अगर आप भी स्ट्रीम चुनकर या पढ़ाई खत्म होने पर राहत की सांस लेने के बारे में सोच रहे हो कि गणित से पूछा छूट जाएगा तो आप गलत है। असल जिंदगी में गणित वहां से शुरू होता है, जहां से किताबें बंद होती हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे एक रिसर्च में दावा किया गया है।
अमेरिका की कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी ने गणित विषय पर एक अध्ययन किया, जिसमें यह पता लगाने की कोशिश की- क्या मुझे कभी गणित की जरूरत होगी? अध्ययन पता चला कि गणित सिर्फ जोड़-घटाव और गुणा-भाग नहीं है, यह एक सोचने का तरीका है।
पढ़ाई खत्म होने पर क्यों नहीं छूटता गणित?
अध्ययनकर्ताओं में शामिल प्रोफेसर मैट यंग बताते हैं कि गणित सिर्फ एक विषय नहीं है, बल्कि वह ढांचा है, जो हर छोटे-बड़े फैसले के पीछे छिपा है। फिर चाहे वो पैसे का हो, समय का हो या फिर प्यार-परिवार और रिश्तों का हो।
ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर मतदाताओं का दिमाग पढ़ने तक जगह गणित नजर आएगा। हमारी हर आदत, हमारा हर एक फैसला किसी न किसी गणितीय पैटर्न पर टिका होता है।
प्रो. मैट यंग आगे कहते हैं, 'ऑनलाइन शॉपिंग में मिलने वाले डिस्काउंट ऑफर भी देखिए परसेंटेज डिफरेंस और प्राइस कंपेरिजन पर बेस्ड होते हैं। वैश्विक ऑनलाइन डेटा प्लेटफार्म स्टैटिस्टा (Statista)- 2023 के आंकड़ों की मानें तो 74 फीसदी ग्राहक किसी प्रोडक्ट की कैलकुलेशन बेस्ड वैल्यू देखकर फैसला लेते हैं।
इसी तरह क्या आप जानते हैं कि सोशल मीडिया पर जो पोस्ट आपकी फीड में सबसे ऊपर नजर आती हैं, वो भी एल्गोरिद्म की गणना का ही परिणाम है। यही हाल बैंकिंग और निवेश सेक्टर का भी है। यहां भी हर फैसला कंपाउंड इंटरेस्ट रिस्क रेश्यो और रिटर्न प्रोजेक्शन के गणित से ही किया जाता है।
साल 2024 के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के उपभोक्ता सर्वे में सामने आया कि 60 प्रतिशत भारतीय उपभोक्ता ईएमआई या ब्याज समझने के लिए कैलकुलेशन ऐप का सहारा लेते हैं। इसी तरह चुनावी रणनीतियों में वोट स्विंग, टर्नआउट मॉडल और सैंपल साइज की गणना तय करती है कि कौन-सा संदेश किस मतदाता वर्ग तक पहुंचेगा।
अगर आपको भी लगता है कि पढ़ाई खत्म होने के बाद गणित से पीछा छूट जाएगा तो ऐसा नहीं होगा। हकीकत यह है कि हम डेटा युग में जी रहे हैं, जहां हर फैसला, हर विज्ञापन और यहां तक कि हर मोबाइल नोटिफिकेशन भी गणितीय पैटर्न से फाइनल किया जाता है।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की स्किल्स आउटपुट रिपोर्ट- 2024 के मुताबिक, जिन लोगों की न्यूमरेसी स्किल्स बेहतर हैं, वे वित्तीय निर्णयों में औसतन 25 प्रतिशत अधिक प्रभावी साबित होते हैं।
रोजमर्रा की जिंदगी से सीखें फॉर्मूला
अगर आपको भी गणित पढ़ना बोरिंग लगता है तो परेशान होने की बात नहीं है। आप रोजमर्रा की जिंदगी से फॉर्मूला सीखने की कोशिश करिए। दरअसल, गणित की शुरुआत आंसर से नहीं, बल्कि पैटर्न से होती है।
गणित से दोस्ती करने के लिए रोजमर्रा की चीजों में नियम खोजें, जैसे- खर्च का हिसाब, दिनचर्या का टाइम टेबल या सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता के पैटर्न। इससे दिमाग को डेटा समझने की आदत पड़ जाती है।
किसी प्रोडक्ट का ऑफर देखकर उसे तुरंत न खरीदें, पहले कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस की छोटी गणना करें। यही रोज का माइक्रो मैथ्स आपको लॉजिकल डिसीजन मेकिंग सिखाता है। मोबाइल या कैलकुलेटर पर निर्भर रहने के बजाय, छोटे जोड़-घटाव मन में करें। यह दिमाग को चुस्त रखता है और कॉग्निटिव एफिशिएंसी बढ़ाता है।
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