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    Lord Shiva: भगवान शिव के गले का आभूषण है सांप, क्या आप जानते हैं इसे धारण करने का कारण

    Updated: Sat, 03 Feb 2024 03:40 PM (IST)

    Mahadev Temple हिंदू धर्म ग्रंथों में शिव जी के जिस प्रकार रूप वेशभूषा और आभूषणों का वर्णन किया गया है वह अन्य किसी देवी-देवता से बिलकुल अलग है। शिव जी सिर पर चंद्रमा धारण किए हुए हैं तो वहीं उनके गले में माला के स्थान पर नागराज विराजमान हैं। वह शरीर पर भस्म रमाते हैं साथ ही उनकी जटाओं से गंगा की धारा बहती है।

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    Lord Shiva भगवान शिव गले में क्यों धारण करते हैं सांप।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Nishkalank Mahadev Temple: भगवान शिव का स्वरूप सभी देवी-देवताओं में सबसे निराला है। भगवान शिव द्वारा गले में आभूषण के रूप में जिस नाग को धारण किए हुए हैं, वह कोई आम सांप नहीं है, बल्कि इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा छिपी हुई है। आइए जानते हैं कि वह नाग कौन है और शिव जी ने उन्हें अपने गले में क्यों धारण किया हुआ है।

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    शिव जी ने ये दिया वरदान

    जिस सांप को आप शिव जी के गले में देखते हैं, उसका नाम वासुकी है। वासुकी भगवान शिव के अनंत भक्त थे। उनकी इच्छा थी कि वह सदैव भगवान शिव के समीप रहे। इन्हें नागों का राजा भी कहा जाता है। यह वहीं सांप हैं जिन्होंने समुद्र मंथन के दौरान रस्सी का काम किया था।

    पर्वत पर लपेटकर मथे जाने के कारण वासुकी नाग का पूजा शरीर लहुलुहान हो गया। इसके साथ ही जब समुद्र मंथन के दौरान विष उत्पन्न हुआ, तो वासुकी ने भी शिव जी की सहायता के लिए विष का कुछ हिस्सा ग्रहण किया।यह देखकर भगवान शिव उनसे प्रसन्न हुए और उनकी सदैव पास रहने की इच्छा की पूर्ति करते हुए शिव जी ने उन्हें अपने गले में धारण कर लिया। तभी से वासुकी अमर हो गए। 

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    यह मिलता है संकेत

    शिव जी द्वारा विषैले सांप को अपने गले में धारण करना, इस बात की ओर भी संकेत करता है कि अगर दुर्जन भी अच्छे कर्म करें, तो ईश्वर उसे स्वीकार करते हैं। ऐसे में व्यक्ति को केवल अच्छे कर्म ही करने चाहिएं, चाहे उसका स्वाभाव कैसा भी हो। 

    यहां भी मिलता है वर्णन

    धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के अलावा वासुकी नाग का वर्णन एक अन्य स्थान पर भी मिलता है। किवदंतियों के अनुसार, जब भगवान श्री कृष्ण के जन्म के दौरान वासुदेव कंस की जेल से निकालकर उन्हें गोकुल ले जा रहे थे, तब यमुना के तूफान में एक भयानक तूफान आ गया। ऐसे में नागराज वासुकि ने ही भगवान श्री कृष्ण और वासुदेव को सुरक्षित रूप में यमुना पार करने में सहायता की थी।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'