Sri Krishna: भगवान कृष्ण ने बताए हैं भक्त के ये 4 प्रकार, जानिए आप किस श्रेणी में आते हैं?
Sri Krishna सभी लोगों को अपने ईष्ट की भक्ति करने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं तो कुछ घर पर रहकर ही भगवान का ध्यान करके उन्हें प्रसन्न करते हैं। सभी अपने तरीके से ईश्वर को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Bhagwat Geeta: संसार में दो तरह के लोग पाए जाते हैं जिनमें से कुछ नास्तिक होते हैं तो कुछ आस्तिक। जो भगवान के प्रति श्रद्धा भाव रखता है उसे आस्तिक कहा जाता है, वहीं जो ईश्वर में आस्था नहीं रखते वह नास्तिक कहलाते हैं। भगवान के प्रति श्रद्धा भाव रखने वालों को भक्त कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने भक्ति के चार प्रकार बताए हैं। आइए जानते हैं भक्ति के 4 प्रकार कौन-कौन से हैं।
ये हैं चार प्रकार के भक्त
भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है। जो इस प्रकार हैं - आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी। भगवत गीता के इस श्लोक में 4 प्रकार के भक्तों का वर्णन मिलता है।
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि- हे अर्जुन! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी- ये चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं। इनमें से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है। उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है।
ये होते हैं जिज्ञासु भक्त
जैसा की इनके नाम से ही ज्ञात होता है जिज्ञासु भक्त अर्थात वह भक्त जिसमें कुछ जानने की जिज्ञासा हो। जो लोग संसार में फैले हुए अनित्य को देखकर ईश्वर की खोज में लगते हैं और ईश्वर की भक्ति करते हैं उन भक्तों को भगवान कृष्ण ने इस श्रेणी में रखा है।
केवल दुख में करते हैं भगवान को याद
आर्त भक्त वह है जो शारीरिक कष्ट आ जाने पर या धन-वैभव नष्ट होने पर, अपना दुःख दूर करने के लिए भगवान को पुकारता है। अर्थात यह भक्त केवल मुश्किल समय में ही भगवान को याद करते हैं। ये भक्त निम्नकोटि से थोड़े श्रेष्ठ होते हैं।
कौन होते हैं अर्थार्थी भक्त
सभी भक्तों में निम्न श्रेणी के भक्त अर्थार्थी माने जाते हैं। यह वह भक्त वह हैं जो भोग, ऐश्वर्य और सुख प्राप्त करने के लिए भगवान का भजन करते हैं। ऐसे लोगों के लिए भगवान से ज्यादा भौतिक सुख सर्वोपरि होता है। यही कारण है कि इन्हें भगवान कृष्ण ने सबसे नीचा दर्जा दिया है।
सर्वश्रेष्ठ हैं ये भक्त
ज्ञानी भक्त वह होते हैं जो बिना किसी कामना के भगवान की भक्ति में लीन रहता है। ज्ञानी भक्त भगवान को छोड़कर और कुछ नहीं चाहता है। इसलिए भगवान ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है। इन भक्तों के विषय में भगवान ने स्वयं कहा है कि जो भक्तजन अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हुए मुझे पूजते हैं, ऐसे साधकों के योगक्षेम (जो वस्तु अपने पास न हो, उसे प्राप्त करना, और जो मिल चुकी हो, उसकी रक्षा करना) को मैं स्वयं वहन करता हूं। जिस व्यक्ति के मन में हर समय केवल परमात्मा ही बसें हों और उनसे बढ़कर दुनिया में उसके लिए अन्य कोई न हो, वही भक्त है। इसलिए ज्ञानी भक्त को भगवान श्री कृष्ण ने सबसे श्रेष्ठ दर्जा दिया है।
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