हवाई सफर पर हैकिंग का साया : हाईजैक, क्रैश और विमान की दिशा भी बदल सकते हैं हमलावर
GPS hacking aviation आसमान में उड़ते विमान पर सुरक्षा का खतरा मंडरा रहा है। उड़ते विमानों पर साइबर हमले हो रहे हैं। GPS हैकिंग और जैमिंग की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है। हाल ही में लंदन से लिथुआनिया जा रहे विमान का GPS हैक होने के कारण उसे पोलैंड डायवर्ट करना पड़ा। इससे क्या-क्या खतरा होते हैं? यहां पढ़ें...

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली/लंदन। हाल में लंदन से लिथुआनिया जा रहे एक विमान को लैंडिंग से पहले जीपीएस (GPS) सिग्नल में खराबी आने के चलते पोलैंड की मोड़ना पड़ा। दरअसल, विमान के जीपीएस को हैक कर लिया गया था। हाल में , कमर्शियल एयरलाइंस को प्रभावित करने वाली जीपीएस हैकिंग (जैमिंग)/ स्पूफिंग की घटनाओं में भारी इजाफा देखने को मिला है। साल 2024 की बात करें तो आखिरी के तीन महीनों में इस तरह की 800 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं।
अब सवाल ये हैं कि आखिर जीपीएस हैकिंग (जैमिंग-Jamming)/ स्पूफिंग क्या है, इससे क्या नुकसान हो सकते हैं और कैसे बचा जा सकता है? एक-एक कर सभी सवालों के जवाब यहां बताते हैं...
जीपीएस हैकिंग (जैमिंग) और स्पूफिंग क्या है?
जीपीएस हैकिंग यानी किसी बाहरी स्त्रोत द्वारा जीपीएस सिग्नल को बाधित किया जाना। फिर जीपीएस सिग्नल जैमिंग किया जाए या स्पूफिंग।
जीपीएस जैमिंग: यह एक साइबर हमला है। इसमें किसी डिवाइस के जीपीएस सिग्नल को बाधित किया जाता है। साइबर अपराधी जैमर डिवाइस से हाई-पावर रेडियो वेव्स भेजते हैं, जो असली जीपीएस सिग्नल को ओवरराइड कर देती हैं और रिसीवर (जैसे- विमान, कार, मोबाइल) को सटीक लोकेशन का डेटा मिलने में बाधा डालती हैं।
जीपीएस स्पूफिंग: यह भी साइबर हमला है। इसमें साइबर अपराधी नकली जीपीएस सिग्नल भेजे जाते हैं, जिससे किसी जीपीएस रिसीवर को गलत लोकेशन, समय या नेविगेशन डेटा दिखता है। आसान शब्दों में कहें तो जीपीएस सिस्टम को धोखा देने की तकनीक है।
जीपीएस हैकिंग विमानों के लिए कितना बड़ा खतरा है?
- जीपीएस सिस्टम गलत दिशा या डेटा दिखा सकता है। इससे विमान को वैकल्पिक रूट लेना पड़ता है, जो सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।
- जीपीएस जैमिंग के चलते पायलट को सटीक दिशा नहीं मिलती, जिससे विमान गलत रास्ते पर जा सकता है।
- पायलट को गलत लोकेशन और समय डेटा मिलने से दूसरे विमानों से टकराने का खतरा बढ़ जाता है।
- खराब मौसम में दृश्यता कम होने पर जीपीएस की बहुत जरूरत होती है, लेकिन जैमिंग की स्थिति में लैंडिंग या टेकऑफ में खतरा बढ़ सकता है।
- विमान और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) के बीच समन्वय में परेशानी हो सकती है।
- कई बार फ्लाइट को गलत हवाई क्षेत्र में भेज दिया जाता है, जिससे वह किसी प्रतिबंधित एयरस्पेस में जा सकता है।
- जीपीएस हैकिंग से आतंकवादियों द्वारा विमान को हाईजैक भी किया जा सकता है।
GPS कैसे काम करता है?
अब सवाल ये है कि जीपीएस सिस्टम कैसे काम करता है? जीपीएस सिस्टम सैटेलाइट से जुड़े रहते हैं, जो सटीक लोकेशन, स्पीड और टाइमिंग डेटा प्रदान करता है। यूजर का डिवाइस इन सिग्नल के समय के अंतर को मापकर लोकेशन तय करता है। अगर समय में अंतर आता है तो लोकेशन गलत हो सकती है।
जीपीएस जैमिंग से कैसे बचा जा सकता है?
यूं तो एंटी-जैमिंग टेक्नोलॉजी लगाई गई है। दूसरी ओर, ब्रिटेन के वैज्ञानिक नई तकनीक विकसित करने में जुटे हैं, जो जैमिंग को बेअसर कर सकती है। नई ऑप्टिकल घड़ियां मौजूदा परमाणु घड़ियों से 100 गुना अधिक सटीक हैं। ये जीपीएस पर निर्भर हुए बिना खुद सटीक समय बताएंगी।
नई तकनीक में क्या चुनौतियां हैं?
नई तकनीक में कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती- इन घड़ियों को इतना छोटा व मजबूत बनाना है कि आसानी से इस्तेमाल हो सकें। फिलहाल, ये उपकरण बेहद महंगे और बड़े हैं।
ब्रिटेन सरकार ने दिसंबर, 2024 में इसके लिए क्वांटम इनेबल पोजीशन नेविगेशन एंड टाइमिंग (Quantum Enabled Position Navigation and Timing - QEPNT) नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य अगले दो से पांच साल में नई नेविगेशन प्रणाली तैयार करना है।
इसका भविष्य क्या है?
यह तकनीक पहले जहाज, सैन्य उपकरण और फिर विमानों में लगाई जाएगी। वैज्ञानिक भविष्य में इसे इतना छोटा बनाना चाहते हैं कि स्मार्टफोन में फिट हो सके। इससे हर व्यक्ति के पास अपना जीपीएस सिस्टम होगा, जिसे हैक न किया जा सके।
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