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असबाब-ए-इत्र से जन्नत-ए-फिरदौस हुआ मेला

-मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के समय से बन रहा इत्र आज भी आ रहा लोगों को पसंद -विदेशी

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 09:41 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 09:41 PM (IST)
असबाब-ए-इत्र से जन्नत-ए-फिरदौस हुआ मेला
असबाब-ए-इत्र से जन्नत-ए-फिरदौस हुआ मेला

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली :

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खुशबू का संबंध सिर्फ महक से नहीं बल्कि मौसम और शरीर की तासीर से भी होता है। इसीलिए कुछ इत्र सर्दी या गर्मी के लिए होते हैं जबकि कुछ हर मौसम के लिए। इतना ही नहीं, रसायन युक्त परफ्यूम या इत्र की खुशबू प्रभावी भले हो, लेकिन त्वचा के लिए ज्यादा बेहतर जड़ी बूटियों एवं मसालों से बना इत्र ही होता है।

प्रगति मैदान में चल रहे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में परफ्यूम और इत्र का महकता बाजार भी दर्शकों को लुभा रहा है। दिलचस्प यह है कि हॉल नं. 9 में विदेशी मंडप के परफ्यूम स्टॉल जहां खाली नजर आते हैं, वहीं हॉल नं. 7 में हुनर हाट में इत्र की स्टॉल पर खासी रौनक देखने को मिलती है। यहां लोग मौसम के अनुरूप आर्गेनिक इत्र पसंद कर रहे हैं।

हुनर हाट में स्टॉल लगा रहे खानदानी अत्तार (इत्र बनाने वाले) हाफिज मो. साबरीन ने बताया कि उनके पुरखे मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के लिए इत्र बनाया करते थे। अब उनकी सातवीं पीढ़ी इत्र बना रही है। उन्होंने बताया कि पुराने जमाने में चंदन और गुलाब महंगे नहीं होते थे। इसलिए हर इत्र में इन्हीं का आधार होता था, मगर समय के साथ-साथ यह महंगे होते गए जबकि रसायन सस्ते मिलने लगे। इसीलिए रसायन युक्त इत्र का बाजार ज्यादा बड़ा हो गया।

मो. साबरीन के अनुसार, अब भी इत्र के शौकीन लोगों का एक बड़ा वर्ग आर्गेनिक इत्र ही पसंद करता है। इन्हें बनाने में मुख्य तौर पर जड़ी-बूटी और मसालों का उपयोग होता है। इनमें से कुछ इत्र एक खास किस्म की जड़ से बने होते हैं जो गर्मी में फायदा पहुंचाते हैं। जन्नत-ए-फिरदौस नाम का इत्र जड़ी बूटियों और मसालों के मिश्रण से बनता है, यह सर्दियों के लिए फायदेमंद है। शमामा तुल अंबर इत्र मसालों से बनाया जाता है जो सर्दियों के मौसम के लिए अधिक बेहतर है। जबकि गुलाब और हीना का इत्र सदाबहार होता है।

मौ. साबरीन ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक विभाग की ओर से हुनर हाट में ऐसे ही करीब 110 कारीगरों को स्टॉल लगाने का मौका दिया गया है, जिनका हुनर काबिलेतारीफ है। साथ ही भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का वाहक भी है।


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